
Vishwas Aur Andhvishwas
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
144
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
288 mins
Book Description
विश्वास क्या है? कब वह अन्धविश्वास का रूप ले लेता है? हमारे संस्कार हमारे विचारों और विश्वासों पर क्या असर डालते हैं? समाज में प्रचलित धारणाएँ कैसे धीरे-धीरे सामूहिक श्रद्धा और विश्वास का रूप ले लेती हैं। टेलीविज़न जैसे आधुनिक आविष्कार के सामने मोबाइल साथ में लेकर बैठा व्यक्ति भी चमत्कारों, भविष्यवाणियों और भूत-प्रेतों से सम्बन्धित कहानियों पर क्यों विश्वास करता रहता है? क्यों कोई समाज लौट-लौटकर धार्मिक जड़तावाद और प्रतिक्रियावादी-पश्चमुखी राजनीतिक और सामाजिक धारणाओं की तरफ़ जाता रहता है?</p> <p>क्या यह संसार किसी ईश्वर द्वारा की गई रचना है? या अपने कार्य-कारण के नियमों से चलनेवाला एक यंत्र है? ईश्वर के होने या न होने से हमारी सोच तथा जीवन-शैली पर क्या असर पड़ेगा? वह हमारे लिए क्या करता है और क्या नहीं करता? क्या वह ख़ुद ही हमारी रचना है? मन क्या है, उसके रहस्य हमें कैसे प्रकाशित या दिग्भ्रमित करते हैं? फल-ज्योतिष और भूत-प्रेत हमारे मन के किस ख़ाली और असहाय कोने में सहारा बनकर आते हैं? क्या अन्धविश्वासों का विरोध नैतिकता का विरोध है? क्या धार्मिक जड़ताओं पर कुठाराघात करना सामाजिक व्यक्ति को नीति से स्खलित करता है? या इससे वह ज्यादा स्वनिर्भर, स्वायत्त, स्वतंत्र और सुखी होता है?</p> <p>स्त्रियों के जीवन में अन्धविश्वासों और अन्धश्रद्धा की क्या भूमिका होती है? वे ही क्यों अनेक अन्धविश्वासों की कर्ता और विषय दोनों हो जाती हैं? इस पुस्तक की रचना इन तथा इन जैसे ही अनेक प्रश्नों को लेकर की गई है। नरेंद्र दाभोलकर के अन्धविश्वास या अन्धश्रद्धा आन्दोलन की वैचारिक-सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पृष्ठभूमि इस पुस्तक में स्पष्ट तौर पर आ गई है जिसकी रचना उन्होंने आन्दोलन के दौरान उठाए जानेवाले प्रश्नों और आशंकाओं का जवाब देने के लिए की।