Pratinidhi Kahaniyan : Usha Priyamvada
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
152
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
304 mins
Book Description
उषा प्रियम्वदा को पढ़ना एक साथ बहुत से बिम्बों में घिर जाना है। बिम्ब जो घुमड़ते बादलों की तरह अनायास तैरते चले आते हैं और एक सार्थक संगति में गुँथकर पहले दृश्य का रूप लेते हैं। कहानियों में परम्परा के निर्वहण की अभ्यस्तता और उसे तोड़ देने की सजगता एक साथ गुँथी हुई मिलती है। 1952 से 1989 तक के कालखंड में फैली उषा प्रियम्वदा की कहानियों का अधिकांश साठ के दशक में उनके विदेश प्रवास के बाद आया है। ज़ाहिर है, डायस्पोरा मनोविज्ञान रिवर्स कल्चरल शॉक से उबरने की क्रमिक प्रक्रिया को नॉस्टेल्जिया में तब्दील कर देता है। इसलिए उषा जी की कहानियों की ज़मीन भले ही विदेशी हो गई हो, वहाँ की खुली संस्कृति और उदार वर्जनामुक्त माहौल से सम्बन्धों में सहजता और कुंठाहीनता पनपी हो, लेकिन उनकी नायिका स्वयं को भारतीयता के संस्कारों से मुक्त नहीं कर पाई है। यही वजह है कि दाम्पत्येतर प्रेम सम्बन्ध बनाते हुए भी वह अपराध-बोध और लोकापवाद के भय से ग्रस्त रहती है। सरपट दौड़ते हुए अचानक ठिठककर खड़े हो जाना, और फिर बिना कुछ कहे अपनी खोह में दुबक जाना उनकी स्त्री की विशेषता है। उषा जी बेहद महीन और कलात्मक पच्चीकारी के साथ उसके चारों ओर रहस्यात्मकता का वातावरण बुनती हैं, जो एक सम्मोहक तिलिस्म का रूप धरकर पाठक के भीतर सीढ़ी-दर-सीढ़ी उतरता चला जाता है, ठीक कृष्णा सोबती की लम्बी कहानी 'तिन पहाड़' की जया की तरह।