Gada Tola
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
144
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
288 mins
Book Description
पहले अन्दर मारी जाती है नदी/तब मिटता है नक़्शे से गाडा टोला। गाडा टोला यानी नदी टोला। राही डूमरचीर की ये कविताएँ नदी, पहाड़, जंगल और उनके साथ बसे मनुष्यों के विस्थापन, विलोप और निर्वासन से उपजे अफ़सोस और पीड़ा की कविताएँ हैं। कुछ ‘बनने’ के लिए या सिर्फ़ ‘जी सकने’ के लिए लोग अपनी ज़मीनों से उठकर शहरों की ओर निकल जाते हैं, पहाड़ उन्हें रास्ता देते हुए पीछे रह जाते हैं, नदियाँ भी, सखुआ के जंगल भी। राही अकसर इस विवशता की सबसे भीतरी कोर से अपनी कविता उठाते हैं। इसके लिए उन्होंने अपना एक खुला मुहावरा गढ़ा है, जो ख़बरों से भी कोई मार्मिक कविता निकाल लेता है, चिट्ठियों और संवादों से भी। इस तरह वह जीवन जस-का-तस सम्प्रेषित हो पाता है, जिसकी पीड़ा को कवि हम तक पहुँचाना चाहता है। ‘ऐदेल किस्कू’ और ‘हिम्बो कुजूर’ जैसी कई कविताएँ हैं, जो इसी प्रविधि से पंक्ति-दर-पंक्ति और सघन होती जाती हैं। ‘गीतों के आयोजन को तुम लोग सुरों का महासंग्राम कहते हो’—कहा रिमिल टुडू ने। राही जीवन के इस पहलू को भी देखते हैं जो जंगल से दूर सभ्यता के बीच गढ़ा जा रहा है, जहाँ ज्ञान किताबों में बन्द है, और किताबें अलमारियों में। सभ्यता की विडम्बनाओं को आईना दिखाते हुए, एक कवि के रूप में राही समय के, प्राकृतिक अवयवों के, पेड़ों, पत्तों, दूब, पानी, बच्चों और नदियों के मन से बतियाते हैं और हर हाल में उनके पक्ष में खड़े रहते हैं— अच्छा आप उसी गाँव के हैं न/जहाँ मन्दिर के किनारे नदी है देवघर के उस भले मानुष से कहा मैंने—जी नहीं/उस गाँव का हूँ/जहाँ नदी के किनारे मन्दिर है।