Dulari Chachi
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
320
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
640 mins
Book Description
‘दुलारी चाची’ रोज-रोज बदल रहे भारतीय ग्रामीण समाज का आख्यान है। दिलचस्प यह है कि परिवर्तन की यह कथा उन तमाम जड़ताओं को अनावृत करती चलती है जो इस समाज की प्रगति की राह में सदियों से रोड़ा बनी हुई हैं। जाति के आधार पर ऊँच-नीच का वर्चस्ववादी विभाजन; धर्म, संस्कृति और परम्परा के नाम पर के नाम पर कुरीतियों का महिमामंडन, स्त्रियों की परवशता और उपेक्षा ऐसे ही रोड़े हैं जिनको लेखक ने खासे व्यंग्यात्मक अन्दाज में वर्णित किया है। वह दिखलाता है कि हमारे समाज की कथित महानताओं की नींव इन्हीं रोड़ों-पत्थरों पर टिकी हुई है, वास्तविक प्रगति के लिए उन्हें जल्द से जल्द उखाड़ फेंकना आवश्यक है। यह उपन्यास उस सत्ता-संरचना को करीने से उजागर करता है जिसमें उच्चासन पर बैठी जमात के वर्चस्व के पारम्परिक हथियारों की धार, बदल रहे वक्त के दबाव में, भोथरी होती जा रही है जबकि हमेशा से दबाए गए लोग अब मुखर हो रहे हैं। विशेष यह कि इस बदलाव की वाहक हैं वे स्त्रियाँ जो अब तक अपने मायके के गाँव और पति-पुत्र के नाम से ही अस्तित्व पाती रही हैं, जिन्हें ताउम्र उनके नाम से पुकारा तक नहीं गया। यह चन्द्रकिशोर जायसवाल की लेखनी का कौशल है कि इस उपन्यास में यथार्थ और स्वप्न एक-दूसरे से बिल्कुल घुलमिल गए हैं। यथार्थ जो असहज करता है, बेचैन करता है और स्वप्न जो आश्वस्त करता है, प्रेरित करता है। वस्तुतः ‘दुलारी चाची’ केवल वर्तमान का अंकन नहीं करता बल्कि उन रास्तों को भी रेखांकित करता चलता है जो हमारे समाज को इच्छित भविष्य तक ले जाने वाला है। एक अत्यन्त पठनीय और संग्रहणीय कृति।