
Utkrishta Prabandhan Ke Roop
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
184
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
368 mins
Book Description
प्रबन्धन आत्म-विकास की एक सतत प्रक्रिया है। अपने को व्यवस्थित-प्रबन्धित किए बिना आदमी दूसरों को व्यवस्थित-प्रबन्धित करने में सफल नहीं हो सकता, चाहे वे दूसरे लोग घर के सदस्य हों या दफ़्तर अथवा कारोबार के। इस प्रकार आत्म-विकास ही घर-दफ़्तर, दोनों की उन्नति का मूल है। इस लिहाज़ से देखें, तो प्रबन्धन का ताल्लुक़ कम्पनी-जगत के लोगों से ही नहीं, मनुष्य मात्र से है। वह इनसान को बेहतर इनसान बनाने की कला है, क्योंकि बेहतर इनसान ही बेहतर कर्मचारी, अधिकारी, प्रबन्धक या कारोबारी हो सकता है।</p> <p>‘उत्कृष्ट प्रबन्धन के रूप’ को विषयानुसार चार उपखंडों में विभाजित किया गया है : स्व-प्रबन्धन, नेतृत्व-कला, औद्योगिक सम्बन्ध तथा कॉरपोरेट-संस्कृति। प्रबन्धन कौशल के विशेषज्ञ लेखक ने इस पुस्तक में आत्मसम्मान, वैचारिक स्पष्टता, सफलता और विफलता की अवधारणा, व्यावसायिक निर्णय-प्रक्रिया में धैर्य और प्राथमिकता-क्रम की अहमियत, रचनात्मक दृष्टिकोण, प्रबन्धन के मानवीय पहलू, कर्मचारियों में सकारात्मक नज़रिया तथा प्रतिभा का सदुपयोग आदि बिन्दुओं पर व्यावहारिक कोण से विचार किया है।</p> <p>प्रबन्धन के विद्यार्थियों और आम पाठकों के लिए एक मार्गदर्शक पुस्तक।