Albert Einstein
Author:
Gunakar MuleyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Science0 Reviews
Price: ₹ 560
₹
700
Available
विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन (1879-1955 ई.) द्वारा प्रतिपादित आपेक्षिता-सिद्धान्त को वैज्ञानिक चिन्तन की दुनिया में एक क्रन्तिकारी खोज की तरह देखा जाता है। क्वांटम सिद्धान्त के आरम्भिक विकास में भी उनका बुनियादी योगदान रहा है। इन दो सिद्धान्तों ने भौतिक विश्व की वास्तविकता को समझने के लिए नए साधन तो प्रस्तुत किए ही हैं, मानव-चिन्तन को भी बहुत गहराई से प्रभावित किया है। इन्होंने हमें एक नितान्त नए अतिसूक्ष्म और अतिविशाल जगत के दर्शन कराए हैं। अब द्रव्य, ऊर्जा, गति, दिक् और काल के स्वरूप को नए नज़रिए से देखा जाने लगा है।<
आपेक्षिता-सिद्धान्त से, विशेषज्ञों को छोड़कर, अन्य सामान्य जन बहुत कम परिचित हैं। इसे एक ‘क्लिष्ट’ सिद्धान्त माना जाता है। बात सही भी है। भौतिकी और उच्च गणित के अच्छे ज्ञान के बिना इसे पुर्णतः समझना सम्भव नहीं है। मगर आपेक्षिता और क्वांटम सिद्धान्त की बुनियादी अवधराणाओं और मुख्य विचारों को विद्यार्थियों व सामान्य पाठकों के लिए सुलभ शैली में प्रस्तुत किया जा सकता है—इस बात को यह ग्रन्थ प्रमाणित कर देता है। न केवल हमारे साहित्यकारों, इतिहासकारों व समाजशास्त्रियों को, बल्कि धर्माचार्यों को भी इन सिद्धान्तों की मूलभूत धारणाओं और सही निष्कर्षों की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। आइंस्टाइन और उनके समकालीन यूरोप के अन्य अनेक वैज्ञानिकों के जीवन-संघर्ष को जाने बग़ैर नाजीवाद-फासीवाद की विभीषिका का सही आकलन क़तई सम्भव नहीं है।
आइंस्टाइन की जीवन-गाथा को जानना, न सिर्फ़ विज्ञान के विद्यार्थियों-अध्यापकों के लिए, बल्कि जनसामान्य के लिए भी अत्यावश्यक है। आइंस्टाइन ने दो विश्वयुद्धों की विपदाओं को झेला और अमरीका में उन्हें मैकार्थीवाद का मुक़ाबला करना पड़ा। वे विश्व-सरकार के समर्थक थे, वस्तुतः एक विश्व-नागरिक थे। भारत से उन्हें विशेष लगाव था। हिन्दी माध्यम से आपेक्षिता, क्वांटम सिद्धान्त, आइंस्टाइन की संघर्षमय व प्रमाणिक जीवन-गाथा और उनके समाज-चिन्तन का अध्ययन करनेवाले पाठकों के लिए एक अत्यन्त उपयोगी, संग्रहणीय ग्रन्थ—विस्तृत ‘सन्दर्भो व टिप्पणियों’ तथा महत्तपूर्ण परिशिष्टों सहित।
ISBN: 9788126725366
Pages: 534
Avg Reading Time: 18 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Author Name:
Narsingh Dayal
- Book Type:

- Description: बैंगन के पौधे में बैंगन ही क्यों, टमाटर क्यों नहीं? ख़रगोश से ख़रगोश ही क्यों पैदा होता है? कौए काले ही क्यों होते हैं, उजले क्यों नहीं? —सभ्यता के आरम्भ काल से ही ऐसे कई सवालों से मनुष्य टकराता रहा है। ‘अथ श्री जीन कथा’ पुस्तक आनुवंशिक विज्ञान के ऐसे तमाम सवालों का जवाब व्याख्या सहित देती है। बीसवीं सदी की शुरुआत में ग्रिगोर मेंडल द्वारा प्रतिपादित आनुवंशिकी आज एक सम्पूर्ण और प्रौढ़ विज्ञान बन चुकी है। मात्र सौ सालों के अल्पकालिक इतिहास में ही इस विज्ञान ने आणविक जीव विज्ञान, जैव-प्रौद्योगिकी और जीनोमिकी जैसे नए विज्ञानों को जन्म दे दिया है। नरसिंह दयाल के अथक श्रम की सुफल यह पुस्तक जीन विज्ञान की ऐतिहासिक कथा-यात्रा को हमारे सामने प्रस्तुत करती है। यात्रा के प्रमुख पड़ावों को इसमें समाहित किया गया है। विषय को बीस अध्यायों में विभक्त किया गया है जिनमें जीन-कथा को लेखक ने क़िस्से और कहानी की शैली में कहने का सफल प्रयास किया है। हालाँकि ये बीस कहानियाँ नहीं, कहानियों जैसी ज़रूर हैं, जिन्हें लेखक ने अत्यन्त सरल और प्रवाहमयी भाषा में लिखा है।
Bhartiya Vigyan Ki Kahani
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

- Description: मध्ययुग तक भारतीय विज्ञान किसी भी अन्य देश के विज्ञान से पीछे नहीं था। हमारे देश में चरक, सुश्रुत, आर्यभट, वराहमिहिर, नागार्जुन तथा भास्कराचार्य (1150 ई.) जैसे महान वैज्ञानिक हुए। आरम्भ में अरबों ने भारतीय विज्ञान से लाभ उठाया और फिर यूरोप में इसका प्रचार-प्रसार किया। आज सारे संसार में प्रयुक्त होने वाली शून्य पर आधारित स्थानमान अंक-पद्धति मूलतः भारत का आविष्कार है। विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने संसार को बहुत कुछ दिया है, और अन्य देशों से बहुत कुछ लिया भी है। भारतीय विज्ञान की कहानी ज्ञान-विज्ञान के इसी आदान-प्रदान की चर्चा से शुरू होती है। आगे पाषाणयुग, ताम्रयुग की सिन्धु सभ्यता तथा वैदिक काल की वैज्ञानिक उपलब्धियों की जानकारी दी गई है। तदनन्तर विषयानुसार भारतीय विज्ञान के विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। लेखक स्वयं विज्ञान के अध्येता थे, इसलिए भारतीय विज्ञान के इस विवेचन को उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही प्रस्तुत किया। संसार के सभी विकसित देशों के स्कूल-कॉलेजों में ‘विज्ञान का इतिहास’ पढ़ाया जाता है। हमारे देश के विज्ञान के विद्यार्थियों को भी प्राचीन भारत के विज्ञान की थोड़ी-बहुत जानकारी अवश्य होनी चाहिए। इतिहास के विद्यार्थियों को तो भारतीय विज्ञान की उपलब्धियों की जानकारी अवश्य ही होनी चाहिए। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर यह पुस्तक लिखी गई है और यह हिन्दी में एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है। अध्यापक तथा सामान्य पाठक भी इस पुस्तक को उपयोगी पाएँगे।
Chemical Technology Futurity
- Author Name:
Dr.Sanjay Rout
- Book Type:

- Description: Chemical Technology Futurity is a book written by Dr. Sanjay Rout, an expert in the field of chemical engineering and technology development. This book provides readers with an extensive overview of the current state of chemical technology as well as a glimpse into its future potentials. It examines how advances in chemistry can be used to create new products, materials and processes that will shape our world for generations to come. The first section of Chemical Technology Futurity focuses on the history and fundamentals behind some major breakthroughs in chemistry over recent decades such as nanotechnology, biotechnology, fuel cells and green energy technologies like solar power or wind turbines . Dr Brantley then goes on to discuss how these advancements have impacted society thus far – from improved health care options through better drug delivery systems or cheaper food production techniques - before delving into their potential applications for tomorrow’s world including artificial intelligence (AI), robotics , 3D printing , renewable resources management etc.. He also looks at what challenges may arise along this journey towards technological progress such as ethical considerations when it comes to AI-driven decision making or environmental issues due increasing levels pollution caused by industrial activities . Overall Chemical Technology Futurity is an insightful read which offers readers invaluable insight into both present day achievements within chemistries realm but also its possible futures developments if we are able tap properly use all available resources wisely while remaining conscious about any associated risks involved along way .
Nakshatra Lok
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

- Description: हमारी आकाश-गंगा में क़रीब 150 अरब तारे हैं और ज्ञात ब्रह्मांड में हैं ऐसी अरबों आकाश-गंगाएँ। तो क्या अखिल ब्रह्मांड में नक्षत्रों या तारों की संख्या का अनुमान भी लगाया जा सकता है? असम्भव। फिर भी अनजाना नहीं है हमसे हमारा यह नक्षत्र-लोक। पिछले क़रीब डेढ़ सौ वर्षों की खगोल-वैज्ञानिक खोजों ने नक्षत्रों के बारे में अभूतपूर्व तथ्यों का पता लगाया है—उनकी सबसे कम और अधिक की दूरियाँ, तात्त्विक संरचना, ज्वलनशीलता और उनके हृदय में लगातार होती उथल-पुथल—कुछ भी तो रहस्यमय नहीं रह गया है। उनका एक जीवन है और अपने आपसे जुड़ी ‘दुनिया’ में एक सार्थक भूमिका भी। लेखक के शब्दों में तो “ये जन्म लेते हैं, तरुण होते हैं, इन्हें बुढ़ापा आता है और अन्त में इनकी ‘मृत्यु’ भी होती है।” अपने विषय के प्रख्यात विद्वान और सुपरिचित लेखक गुणाकर मुळे ने पूरी पुस्तक को परिशिष्ट के अलावा छह अध्यायों में संयोजित किया है। ये हैं—‘तारों-भरा आकाश’, ‘नक्षत्र-विज्ञान का विकास’, ‘आकाशगंगा : एक विशाल तारक-योजना’, ‘तारों का वर्गीकरण’, ‘तारों का विकास-क्रम’ तथा ‘प्रमुख तारों की पहचान’। परिशिष्ट में उन्होंने आकाश में सर्वाधिक चमकनेवाले बीस तारों की विस्तृत जानकारी दी है और कुछ प्रमुख आँकड़े भी। तारों के इस वैज्ञानिक अध्ययन की मूल्यवत्ता और उद्देश्य के बारे में यदि लेखक के ही शब्दों को उद्धृत करें तो तारों की “एक वैज्ञानिक भाषा है। इस भाषा को आज हम समझ सकते हैं। यह भाषा है—तारों की किरणों की भाषा। अपनी किरणों के माध्यम से तारे स्वयं अपने बारे में हम तक जानकारी भेजते रहते हैं। यह जानकारी हमें फलित-ज्योतिषियों की पोथियों में नहीं, बल्कि वेधशालाओं की दूरबीनों, वर्णक्रमदर्शियों और कैमरों आदि से ही प्राप्त हो सकती है।” साथ ही “मानव-जीवन पर नक्षत्रों के प्रभाव को जन्म-कुंडलियों से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक उपकरणों से जाना जा सकता है।” कहने की आवश्यकता नहीं कि यह पुस्तक न केवल हमारे ज्ञान-कोष को बढ़ाती है, बल्कि हमारा वैज्ञानिक संस्कार भी करती है।
Koutuka Vijnana
- Author Name:
R B Gurubasavaraj
- Book Type:

- Description: DESCRIPTION AWAITED
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