Pracheen Bharat Ke Mahan Vaigyanik
Author:
Gunakar MuleyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Science0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
पाश्चात्य देशों के वैज्ञानिकों के बारे में अंग्रेज़ी तथा भारतीय भाषाओं में काफ़ी साहित्य उपलब्ध है। इन वैज्ञानिकों के बारे में स्कूल-कॉलेजों के अध्यापकों से भी विद्यार्थियों को थोड़ी-बहुत जानकारी मिल ही जाती है, पर खेद की बात है कि अपने देश के चरक, सुश्रुत, आर्यभट तथा भास्कराचार्य जैसे चोटी के वैज्ञानिकों के बारे में हमारे विद्यार्थियों को नहीं के बराबर जानकारी है।
विद्यार्थियों और सामान्य पाठकों को दृष्टि में रखकर प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन भारत के दस वैज्ञानिकों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इन वैज्ञानिकों के ग्रन्थ तो प्राप्त हैं, किन्तु इनके जीवन के बारे में हमें ठोस जानकारी नहीं मिलती। मूल ग्रन्थ संस्कृत भाषा में होने से प्रस्तुत पुस्तक की सीमा में विषयों की विशद व्याख्या सम्भव नहीं थी, इसके बावजूद यह पुस्तक प्राचीन भारत के विज्ञान एवं वैज्ञानिकों का प्रारम्भिक परिचय कराने में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है।
ISBN: 9788126717156
Pages: 110
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन (1879-1955 ई.) द्वारा प्रतिपादित आपेक्षिकता-सिद्धान्त को वैज्ञानिक चिन्तन की दुनिया में एक क्रान्तिकारी खोज की तरह देखा जाता है। इस सिद्धान्त ने विश्व की वास्तविकता को समझने के लिए एक नया साधन तो प्रस्तुत किया ही है, मानव चिन्तन को भी गहराई से प्रभावित किया है। अब द्रव्य, गति, आकाश और काल के स्वरूप को नए नज़रिए से देखा जा रहा है। सन् 1905 में ‘विशिष्ट आपेक्षिकता’ का पहली बार प्रकाशन हुआ, तो इसे बहुत कम वैज्ञानिक समझ पाए थे, इसके बहुत-से निष्कर्ष पहेली जैसे प्रतीत होते थे। आज भी इसे एक ‘क्लिष्ट’ सिद्धान्त माना जाता है। लेकिन इस पुस्तक में आपेक्षिकता के सिद्धान्त को, गणितीय सूत्रों का उपयोग किए बिना, इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि इसकी महत्त्वपूर्ण बातों को सामान्य पाठक भी समझ सकते हैं। संसार की कई प्रमुख भाषाओं में अनूदित इस पुस्तक के लेखक हैं, ‘नोबेल पुरस्कार’ विजेता प्रख्यात भौतिकवेत्ता लेव लांदाऊ और उनके सहयोगी यूरी रूमेर। परिशिष्ट में इनका जीवन-परिचय भी दिया गया है। इतिहास-पुरातत्त्व और वैज्ञानिक विषयों के सुविख्यात लेखक गुणाकर मुळे ने सरल भाषा में इस पुस्तक का अनुवाद किया है। कई वैज्ञानिक शब्दों और कथनों को स्पष्ट करने के लिए अनुवादक ने पाद-टिप्पणियाँ भी दी हैं। साथ ही, परिशिष्ट में ‘विशिष्ट शब्दावली’ तथा ‘पारिभाषिक शब्दावली’ के अलावा अल्बर्ट आइंस्टाइन की संक्षिप्त जीवनी भी जोड़ी गई है, चित्रों सहित। हिन्दी माध्यम से ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन करनेवाले पाठकों के लिए आपेक्षिकता सिद्धान्त के शताब्दी वर्ष में यह पुस्तक एक अनमोल उपहार की तरह है।
Sansar Ke Mahan Ganitagya
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

- Description: वैज्ञानिकों ने भौतिक जगत् के अन्वेषण के लिए गणित का उपयोग परमावश्यक माना है। लेकिन इतने महत्त्व का विषय होते हुए भी अंग्रेज़ी तक में गणित के इतिहास और गणितज्ञों के बारे में जानकारी देनेवाले ज़्यादा ग्रन्थ नहीं हैं। जो हैं, उनमें भारत या पूर्व के अन्य देशों की गणितीय उपलब्धियों के बारे में बहुत कम सूचनाएँ मिलती हैं। इस दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक की उपादेयता स्वयंसिद्ध है। यह इसलिए और भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि हिन्दी में यह अपने विषय की सम्भवतः पहली कृति है। इस ग्रन्थ में विद्वान लेखक ने यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड (300 ई.पू.) से लेकर जर्मन गणितज्ञ डेविड हिल्बर्ट (1862-1943) तक संसार के उनचालीस गणितज्ञों के जीवन और कृतित्व का परिचय दिया है। इनमें पाँच भारतीय गणितज्ञ भी हैं—आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, महावीराचार्य, भास्कराचार्य और रामानुजन, जो संसार के श्रेष्ठ गणितज्ञों के समुदाय में स्थान पाने के निश्चय ही अधिकारी हैं। हम न्यूटन, गॉस, आयलर, रीमान, कान्तोर आदि महान गणितज्ञों के गणितीय सिद्धान्तों के बारे में पढ़ते हैं, उनका उपयोग करते हैं। मगर इन गणितज्ञों के संघर्षमय जीवन के बारे में हमारी जानकारी नहीं के बराबर होती है। प्रस्तुत ग्रन्थ में गणितज्ञों को कालक्रमानुसार रखा गया है, इसलिए इस ग्रन्थ से प्राचीन काल से लेकर वर्तमान सदी के आरम्भ काल तक के गणित के बहुमुखी विकास की भी सिलसिलेवार जानकारी मिल जाती है। ग्रन्थ के अन्त में पारिभाषिक शब्दावली, सहायक ग्रन्थ-सूची, नामानुक्रमणिका, विषयानु- क्रमणिका आदि के छह परिशिष्ट हैं। संसार के महान गणितज्ञों के जीवन और कृतित्व से सम्बन्धित यह प्रेरणाप्रद जानकारी इस ग्रन्थ में मिलेगी, हिन्दी में पहली बार
Pascal
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

- Description: सामान्यत: हम मान लेते हैं कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। लेकिन पास्कल जीवन-भर अजीर्ण और अनिद्रा से पीड़ित रहे। फिर भी 39 वर्ष की अल्पायु में गणित के क्षेत्र में इतना मौलिक कार्य कर गए कि आज उन्हें न केवल फ़्रांस का, अपितु संसार का एक महान गणितज्ञ माना जाता है। बालक पास्कल की शिक्षा घर पर ही हुई, पिता की देखरेख में। वह इतने प्रतिभाशाली थे कि 12 वर्ष की आयु में, किसी की सहायता के बिना, स्वयं ही यूक्लिड की ज्यामिति के कई प्रमेयों को सिद्ध कर डाला। इसमें वह प्रमेय भी शामिल था, जिसके अनुसार त्रिभुज के तीन भीतरी कोणों का योग दो समकोणों के बराबर होता है। गणित को पास्कल की एक और महान देन है—सम्भाविता-सिद्धान्त। ताश के पत्तों के खेल से उपजे सवालों को हल करने के प्रयासों में इस सिद्धान्त का जन्म हुआ था। आज सम्भाविता-सिद्धान्त एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है; यह सिद्धान्त प्रकृति की लीलाओं के मूल में पैठा हुआ है। हिन्दी के विशिष्ट विज्ञान-लेखक गुणाकर मुळे ने गहन शोध के बाद ख़ास तौर पर किशोर पाठकों के लिए यह पुस्तक तैयार की थी जिसमें पास्कल के जीवन के साथ-साथ उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों की भी सरल भाषा में जानकारी दी गई है। यह पुस्तक किशोरों के मानस को एक वैज्ञानिक दिशा प्रदान करती है।
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