Lipika
Author:
Rabindranath ThakurPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
‘लिपिका’ रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सबसे पहला गद्य-काव्य संग्रह है। किन्तु इसकी केवल एक को छोड़कर और कोई रचना कविता के तौर पर, यानी कविता आवृत्ति के छन्द के हिसाब से कभी प्रस्तुत नहीं की गई। ‘प्रश्न’ नाम की रचना को सन् 1911 में, पुस्तक प्रकाशित होने के तीन साल पहले, ‘भारती’ पत्रिका में कविता के छन्द के अनुसार छापा गया था। तो भी अगस्त, 1922 में पुस्तक प्रकाशित करने के समय कविगुरु ‘लिपिका’ को कविता-संग्रह के तौर पर छापने का साहस नहीं कर पाए। उन्होंने स्वयं ही लिखा है : ‘छापने के समय वाक्यों को पद्य की तरह तोड़ना नहीं हुआ—मैं तो मानता हूँ कि इसका कारण मेरी कायरता ही था।’
जो भी हो, ‘लिपिका’ वह कृति है जो मनुष्य के हृदय और बुद्धि की गहरी परतों को सर्वश्रेष्ठ कला के माध्यम से ऊपर उभारकर पाठक के सामने रख देती है। हर रूपक को पढ़कर एक दर्शन होता है और साथ-साथ अपने-आपको टटोलने की तरफ़ एक इशारा भी मिलता है।
इस कृति की तरफ़ हिन्दी साहित्य जगत का ध्यान उतना नहीं गया है, जितना, मैं मानता हूँ, जाना चाहिए। मेरे लिए तो इसका अनुवाद करना आनन्द का एक बड़ा स्रोत रहा है। इसके कारण गुरुदेव का जो सामीप्य मिला, वह अपूर्व और बड़ा महत्त्वपूर्ण है। पाठकों के साथ इसमें भागीदारी करने का मौक़ा मिला है, उसके लिए कृतज्ञ हूँ।
—भूमिका से
ISBN: 9788126720095
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Author Name:
Ali Sardar Zafari
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Description:
साहित्य के हज़ारों साल लम्बे इतिहास में जिन चन्द काव्य-विभूतियों को विश्वव्यापी सम्मान प्राप्त है, ग़ालिब उन्हीं में से एक हैं। उर्दू के इस महान शायर ने अपनी युगीन पीड़ाओं को ज्ञान और बुद्धि के स्तर पर ले जाकर जिस ख़ूबसूरती से बयान किया, उससे समूची उर्दू शायरी ने एक नया अन्दाज़ पाया और वही लोगों के दिलो-दिमाग़ पर छा गया। उनकी शायरी में जीवन का हर पहलू और हर पल समाहित है, इसीलिए वह जीवन की बहुविध और बहुरंगी दशाओं में हमारा साथ देने की क्षमता रखती है।
काव्यशास्त्र की दृष्टि से ग़ालिब ने स्वयं को ‘गुस्ताख़’ कहा है, लेकिन यही उनकी ख़ूबी बनी। उनकी शायरी में जो हलके विद्रोह का स्वर है, जिसका रिश्ता उनके आहत स्वाभिमान से ज़्यादा है, उसमें कहीं शंका, कहीं व्यंग्य और कहीं कल्पना की जैसी ऊँचाइयाँ हैं, वे उनकी उत्कृष्ट काव्य-कला से ही सम्भव हुई हैं। इसी से उनकी ग़ज़ल प्रेम-वर्णन से बढ़कर जीवन-वर्णन तक पहुँच पाई। अपने विशिष्ट सौन्दर्यबोध से पैदा अनुभवों को उन्होंने जिस कलात्मकता से शायरी में ढाला, उससे न सिर्फ़ वर्तमान के तमाम बन्धन टूटे, बल्कि वह अपने अतीत को समेटते हुए भविष्य के विस्तार में भी फैलती चली गई। निश्चय ही ग़ालिब का यह दीवान हमें उर्दू-शायरी की सर्वोपरि ऊँचाइयों तक ले जाता है।
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