
Mohan Rakesh Rachanawali : Vols. 1-13
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
3000
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
6000 mins
Book Description
मोहन राकेश हिन्दी के सर्वाधिक ‘एक्सपोज़्ड’ रचनाकार माने जाते हैं। राकेश का जीवन और लेखन ‘घर’ नामक मृगमरीचिका के पीछे बेतहाशा भागते एक बेसब्र, बेचैन, व्याकुल और ज़िद्दी तलाश का पर्याय है।</p> <p>रचनावली का यह पहला खंड—‘अन्तरंग’—उनके इसी ‘अपना आप’ पर केन्द्रित है। यह खंड लेखक के पेचीदा जीवन के बहिरंगी बहुरूपों को दिखाने के साथ–साथ अन्तरंग के गुह्य प्रदेशों के विचित्र रहस्य–लोक के गवाक्ष भी खोलता है। इसका पहला अंश अधूरा ‘आत्मकथ्य’ है। इसके बाद ‘चींटियों की पंक्तियाँ <strong>:</strong> ज़मीन से काग़ज़ों तक’, ‘देखो बच्चू!’ और मृत्यु से लगभग दो महीने पहले रजिन्दर पॉल द्वारा लिया गया एक ऐसा साक्षात्कार है, जो उनके उदास, असुरक्षित, अस्थिर एवं अकेले आरम्भिक जीवन की प्रामाणिक और दिलचस्प झाँकी प्रस्तुत करता है।</p> <p>इस खंड के अन्त में 1950 से 1958 तक उनके द्वारा लिखी गई डायरी को रखा गया है। राकेश के अन्तर्विरोधी जटिल चरित्र एवं उनके साहित्य को सही परिदृश्य और उचित सन्दर्भ में समझने के लिए यह खंड महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।