Ek Aur Madhushala
Author:
Dr. Suresh PrasadPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
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Price: ₹ 160
₹
200
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789380183435
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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उन्होंने संस्कृत की शास्त्रीय आलोचना और पश्चिम की आलोचना-पद्धति का गहरा अध्ययन किया लेकिन उनमें से किसी का अनुसरण करने के बजाय अपने लिए नई आलोचना-पद्धति की तलाश की। उन्हें हिन्दी का पहला आधुनिक आलोचक माना जाता है। परम्परा और आधुनिकता-सम्बन्धी उनकी विद्वत्ता, चिन्तन-मनन और दृष्टिकोण के चलते उचित ही उन्हें ‘हिन्दी का इलियट’ कहा गया है।
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आलोचक, लेखक, अध्यापक, सम्पादक नलिन विलोचन शर्मा का हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है। आलोचना, कविता, कहानी, निबन्ध, अनुवाद, पुस्तक समीक्षा आदि सभी विधाओं में उनकी लेखनी अबाध गति से चली है। वे आधुनिकता के प्रबल प्रवक्ता थे तो परम्परा के भी उतने ही गहरे जानकार थे। प्रगतिवाद बनाम आधुनिकता के विवाद से अलग वे आलोचना के एक तीसरे धरातल की खोज में रत रहे। शिविरबद्धता के विरुद्ध उनका तीक्ष्ण आलोचनात्मक संघर्ष रहा।
जिन कार्यों को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और उनकी धारा के आलोचकों ने अनावश्यक जानकर छोड़ दिया था, उसकी क्षतिपूर्ति नलिन जी ने अपनी आलोचना में की। यही एक आलोचक के रूप में उनकी उपलब्धि है। मसलन गौण कवियों के महत्त्व का रेखांकन, तात्त्विक शोध, उपन्यास की सैद्धान्तिक और व्यावहारिक आलोचना का विकास, प्रेमचन्द का कलात्मक दृष्टि से और परम्परा का आधुनिकता की दृष्टि से मूल्यांकन और तत्पश्चात् एक निष्कर्ष देना।
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आलोचक, लेखक, अध्यापक, सम्पादक नलिन विलोचन शर्मा का हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है। आलोचना, कविता, कहानी, निबन्ध, अनुवाद, पुस्तक समीक्षा आदि सभी विधाओं में उनकी लेखनी अबाध गति से चली है। वे आधुनिकता के प्रबल प्रवक्ता थे तो परम्परा के भी उतने ही गहरे जानकार थे। प्रगतिवाद बनाम आधुनिकता के विवाद से अलग वे आलोचना के एक तीसरे धरातल की खोज में रत रहे। शिविरबद्धता के विरुद्ध उनका तीक्ष्ण आलोचनात्मक संघर्ष रहा।
नलिन जी ने समीक्षा को अत्यन्त उत्तरदायित्वपूर्ण काम मानते हुए न सिर्फ प्रेमचन्द, शुक्ल, निराला आदि रचनाकारों पर बहुत प्रभावशाली आलोचना लिखी बल्कि अपने समकालीन रचनाकारों की रचनाओं पर भी लिखा और उनके माध्यम से आलोचना के कुछ प्रतिमान गढ़ने का प्रयास किया। आधुनिक उपन्यास के विषय में उनका कहना था कि इसे सुबन्धु, दंडी, बाणभट्ट की लुप्त परम्परा के तहत पुनर्जीवित नहीं किया गया बल्कि यह साहित्य का वह पौधा था जिसे अगर सीधे पश्चिम से नहीं लिया गया तो भी उसका बांग्ला कलम तो जरूर लिया गया था। वे कहते थे, समृद्धि और ऐश्वर्य की सभ्यता महाकाव्य में अभिव्यक्ति पाती है तो जटिलता, वैषम्य और संघर्ष की सभ्यता उपन्यास में।
इस तीसरे खंड में उनके द्वारा लिखे गए सम्पादकीय, फुटकर आलेख, नोट्स, समीक्षाएँ और कुछ पुस्तकों की उनके द्वारा लिखी गई भूमिकाएँ संकलित हैं। ये सम्पादकीय 'दृष्टिकोण' और 'साहित्य' त्रैमासिक के 1950-60 की अवधि में लिखे गए। इन सम्पादकीयों में उन्होंने हिन्दी के शोध, भाषा, लिपि, हिन्दी-टंकण, आवरण-सज्जा और लेखकों के सरोकारों पर लिखा है। वे हिन्दी को सिर्फ साहित्य की नहीं, बल्कि तमाम ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनाना चाहते थे।
इस खंड में संकलित सामग्री का महत्त्व यह है कि इनके मार्फत हम नलिन जी के अध्यवसाय के साथ-साथ उनके रूप में एक आलोचक और शिक्षक की तैयारी से रूबरू होते हैं।
4 आलोचक, लेखक, अध्यापक, सम्पादक नलिन विलोचन शर्मा का हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है। आलोचना, कविता, कहानी, निबन्ध, अनुवाद, पुस्तक समीक्षा आदि सभी विधाओं में उनकी लेखनी अबाध गति से चली है। वे आधुनिकता के प्रबल प्रवक्ता थे तो परम्परा के भी उतने ही गहरे जानकार थे। प्रगतिवाद बनाम आधुनिकता के विवाद से अलग वे आलोचना के एक तीसरे धरातल की खोज में रत रहे। शिविरबद्धता के विरुद्ध उनका तीक्ष्ण आलोचनात्मक संघर्ष रहा।
नलिन जी कहानी को ‘शोधना’ समझते थे। उनके मुताबिक ‘कहानीकार बिन्दु में केन्द्रित विराट और पूर्ण सत्य का उद्घाटन करता है। कहानीकारों के दो काम होते हैं—बिन्दु फैले नहीं और बिन्दु पर से निगाह विचले नहीं। पिंड में ब्रह्मांड का सत्य देख लेना कृच्छ्र-साधना है, यह संत ही नहीं कहानीकार भी जानते हैं।’ यही उनके कहानीकार की आधार-भूमि थी। जितने समय में कुछ लोगों ने उपन्यास पूरे कर लिए उतना समय उन्होंने एक-एक कहानी को दिया। उनका कहानी-लेखन ढाई दशकों में फैला है। इस दौरान कई कहानी आन्दोलन चले लेकिन उन्होंने खुद को उनसे अलग रखा। उनकी कहानियों में सामाजिक समस्याएँ, मनुष्य की मनोग्रन्थियाँ, यौन-मनोविज्ञान और प्रेम जैसे विषय प्रमुख हैं।
कविता में प्रयोगवाद के बरक्स ‘नकेनवाद’ जैसी अवधारणा का सूत्रीकरण नलिन जी ने ही अपने सहयोगी कवियों केसरीकुमार और नरेश के साथ मिलकर किया जिसका उद्देश्य, उनके अनुसार, प्रयोगवाद की आत्मा की रक्षा था। वे अनुवाद में भी दखल रखते थे। मुख्यतः अंग्रेजी से हिन्दी में किए गए उनके अनुवादों को मानक के तौर पर देखा गया। उनका आत्मपरक लेखन उनके व्यक्तिगत और रचनात्मक जीवन का महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
रचनावली के इस चौथे खंड में नलिन जी की सभी उपलब्ध कहानियाँ, कविताएँ, संस्मरण, निबन्ध, डायरी, अनुवाद और साक्षात्कार सम्मिलित किए गए हैं।
5. आलोचक, लेखक, अध्यापक, सम्पादक नलिन विलोचन शर्मा का हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है। आलोचना, कविता, कहानी, निबन्ध, अनुवाद, पुस्तक समीक्षा आदि सभी विधाओं में उनकी लेखनी अबाध गति से चली है। वे आधुनिकता के प्रबल प्रवक्ता थे तो परम्परा के भी उतने ही गहरे जानकार थे। प्रगतिवाद बनाम आधुनिकता के विवाद से अलग वे आलोचना के एक तीसरे धरातल की खोज में रत रहे। शिविरबद्धता के विरुद्ध उनका तीक्ष्ण आलोचनात्मक संघर्ष रहा।
उन्होंने भाषा और साहित्य को अलग-अलग करके नहीं देखा। इस दृष्टि से हम नलिन जी के अंग्रेजी में लिखे साहित्य को देखते हैं तो पाते हैं कि उनमें औपनिवेशिक दौर की भाषाई हीनता या श्रेष्ठता की ग्रन्थि नहीं है।
रचनावली के इस पाँचवें और अन्तिम खंड में नलिन जी की अंग्रेजी में लिखी रचनाएँ रखी गई हैं जिनमें तीन कहानियाँ, दो साहित्य और संस्कृति पर लिखे गए वैचारिक निबन्ध और किसी रचनाकार या शख्सियत पर लिखी एकमात्र प्रबन्ध पुस्तक जगजीवन राम शामिल हैं। यह बाबू जगजीवन राम की जीवनी है जो जगजीवन राम अभिनन्दन समिति, पटना के लिए 1954 में लिखी गई। यह जीवनी और इस खंड की अन्य रचनाओं को देखने-पढ़ने के बाद ‘क्लासिक’ अंग्रेजी का जो एक सहज प्रवाह मिलता है, कहीं-कहीं ‘सबलाइम्स’ की जो बानगी मिलती है, उससे नलिन जी की अंग्रेजी का पता चलता है।
नलिन जी द्वारा लिखित इस जीवनी पर गांधीवाद का प्रभाव है। इसलिए बाबू जगजीवन राम को एक 'हरिजन' नेता के रूप में ही इस जीवनी में चित्रित किया गया है। आज कुछ लोग इस किताब को बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के विरोध में भी रेखांकित कर सकते हैं लेकिन देशकाल में जाकर देखेंगे तो पाएँगे कि यह जीवनी उनके विरोध में नहीं बल्कि उनके मूल्यों और प्रतिमानों के सहयोग में ही है।
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