Tripur Sundari
Author:
R. S. KelkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 140
₹
175
Available
यह उपन्यास आत्मोपलब्धि को लक्षित एक लम्बी यात्रा की कथा है। यात्रा बाहरी उतनी नहीं जितनी आन्तरिक।</p>
<p>विवेक विवाहित युवक है लेकिन वह चाहता है अध्यात्म की राह से वह चरम उपलब्धि, जहाँ वह उस त्रिपुर सुन्दरी माया के साक्षात् दर्शन कर सके जो सम्पूर्ण स्त्री-शक्ति का एकीकृत पुंज है और अखिल सृष्टि जिसके वात्सल्य की छाँह में विश्राम करती है, फलती-फूलती है।</p>
<p>लेकिन अपने मार्गदर्शक गुरु के आश्रम में वह मिलता है श्यामलता से, जो अपने गार्हस्थ्य जीवन को विडम्बनाओं और अपनी अतुल रूप राशि के बीच कोई सामंजस्य नहीं बिठा पाती और साधना की डगर पर चल पड़ती है। विवेक में उसे अपना पूर्ण पुरुष दिखता है, और विवेक उसमें अपनी त्रिपुर सुन्दरी देखता है। बीच में है विवेक की पत्नी प्रियंवदा और उसका दु:ख।</p>
<p>एक लम्बा द्वन्द्व और अन्त में वह आत्मबोध जो विवेक अर्थात् पुरुष को स्त्री रूप में अपने चहुँओर उपस्थित शक्ति का साक्षात्कार करता है। वह जान लेता है कि नारी पुरुष की वासना-तृप्ति का साधन नहीं है, वह केवल उसकी सिद्धि का माध्यम है, और स्त्री की सिद्धि है सृष्टि का विकास।</p>
<p>विवेक के गुरु, स्वामी जी अन्त में बताते हैं कि संसार में रहो, सभी कर्म प्रभु-स्मृति को जाग्रत रखकर करो। और अपने दृष्टि-क्षेत्र में व्याप्त स्त्री-शक्ति में निहित त्रिपुर सुन्दरी को देखो।</p>
<p>अहं की क्षुद्रता और परम की असीमता के द्वन्द्व को उद्घाटित करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
ISBN: 9788180311932
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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प्रत्यक्षत: कोई अनावश्यक प्रतीत होनेवाला वाक्य लिखें या अपने कथन को दोहराएँ। ऐसे स्थलों पर
प्राय: शैली की माँग का दबाव ही ज़िम्मेदार होता है। इस प्रकार का अनुशासित लेखन दुर्लभ–सा है,
ख़ास तौर से ऐसी शैली में जहाँ भाषाई चमत्कार और आधुनिक जीवन के विविध सन्दर्भ–संकेतों का
खुलकर उपयोग किया गया हो। कुछ अलग–अलग स्थितियों, घटनाओं और फंतासियों को लेकर ही
उपन्यास का ताना–बाना तैयार किया गया है, पर उनका अन्तर्गुम्फन ऐसा है जो सहज रूप से
उपन्यास को एकसूत्रता में बाँध लेता है।
Kasch Ka Vinash
- Author Name:
Roberto Calasso
- Book Type:

-
Description:
इस शानदार पुस्तक में, ‘द मैरिज ऑफ़ कैडमस एंड हारमनी’ के ख्यात लेखक, रॉबर्तो कलासो उस कोड का रहस्य खोल देते हैं जिसे बॉदिलेयर आधुनिक कहता है—फ्रेंच रिवॉल्यूशन से चलकर निरन्तर घातक होती द्वितीय विश्वयुद्ध तक की कालावधि। टैलीरॉ के फ़्रांस से लेकर विख्यात अफ़्रीकन शहर कश तक, लेनिन के रूस और कम्बोडिया के नरसंहारी खेतों तक, कलासो हमें मिथकों, साहित्य, कला और विज्ञान की लुभावनी भूल-भुलैयों से होकर सभ्यता के केन्द्र में लाते हैं जहाँ वे इतिहास के गुह्यतम रहस्यों का उद्घाटन करते हैं। आवाज़ों और वार्तालापों से भरी-पूरी, आश्चर्यजनक, पहेली बुझाती, यह गहन पुस्तक पढ़कर भूल जानेवाली चीज़ नहीं है। यह किसी प्राचीन पुस्तकालय की गन्ध की भाँति स्मृति में बसी रह जाती है।
—सुनील खिलनानी, ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’, बुक रिव्यू
ऐसा लगता है कि कलासो ने इस माँग करती और कुरेदनेवाली पुस्तक को बनाने में कम से कम एक राष्ट्रीय पुस्तकालय को खँगाला होगा। इसकी विषय-वस्तु आधुनिक मस्तिष्क का छिछलापन है और आधुनिक संस्कृति की कार्य-विधि के कारण ही जिसका कलासो ऐसी बारीकी और योग्यता से विश्लेषण करते हैं...मैं उस विशेषण का प्रयोग करने में हिचक रहा हूँ जिसके योग्य यह पुस्तक सर्वथा है : मास्टरपीस (श्रेष्ठ रचना)...सभी महान पुस्तकों की भाँति यह पुस्तक हमें अधिक पढ़ती है और हम इसे कम पढ़ते हैं और कला या चिन्तन की महान रचनाओं के समान ही, यह आपको अपना जीवन बदलने के लिए विवश कर सकती है।
—जे टॉल्सन, ‘सिविलिजे़शन’
‘द रुइन ऑफ़ कश’ दो विषय लेती है : प्रथम है टैलीरॉ और दूसरा है बाक़ी सब चीज़ें, और बाक़ी सब चीज़ों में वे सब चीज़ें शामिल हैं जो मानव इतिहास में घटित हुई हैं, सभ्यता की शुरुआत से लेकर आज तक...। यह एक ऐसी पुस्तक है जो अपने आपको एक भटकन और आवारापन में उजागर करती है, अपनी कल्पना, मनमर्ज़ी और कभी न तृप्त होनेवाली जिज्ञासा से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, और बनी हुई है टुकड़ों से, उद्धरणों और इधर-उधर भटकने से, कहानियों, लघुकथाओं और कहावतों से—यह सब इसलिए कि इसे एक अविरल आनन्द के साथ पढ़ा जा सके।
—इटालो काल्विनो, ‘पैनेरामा मेस’
Khwab Ke Do Din
- Author Name:
Yashwant Vyas
- Book Type:

-
Description:
मैं बुरी तरह सपने देखता रहा हूँ। चूँकि सपने देखना-न-देखना अपने बस में नहीं होता, मैंने भी इन्हें देखा। आप सबकी तरह मैंने भी कभी नहीं चाहा कि स्वप्न फ़्रायड या युंग जैसों की सैद्धान्तिकता से आक्रान्त होकर आएँ या प्रसव पीड़ा की नीम बेहोशी में अखिल विश्व के पापनिवारक-ईश्वर के नए अवतार की सुखद आकाशवाणी के प्ले-बैक के साथ।
मीडिया के ईथर में तैरते हुए 1992 की नीम बेहोशी में ‘चिन्ताघर’ नामक लम्बा स्वप्न देखा गया था और चौदह बरस बाद अपने सिरहाने रखी 2006 की डायरी में जो सफे मिले, उनका नाम था—‘कॉमरेड गोडसे’। ऐसे जैसे एक बनवास से दूसरे बनवास में जाते हुए ख़्वाब के दो दिन।
कुछ लोग कहते हैं, तब अख़बारों के एडीटर की जगह मालिक के नाम ही छपते थे, चौदह साल बाद कहने लगे इश्तहारों और सूचनाओं के बंडलों पर जो एडीटर का नाम छपता है, वह मालिक के हुक्म बिना इंच भर न इधर हो, न उधर। कुछ लोग कहते हैं, बड़ा ईमान था जो हाथ से लिखते थे, चौदह साल बाद कहने लगे छोटा कम्प्यूटर है लाखों-लाख पढ़ते हैं।
तब एक लड़का था जो ‘चिन्ताघर’ में घूमता, मुट्ठियों में पसीने को तेजाब बनाता, दियासलाई उछालना चाहता था। चौदह साल बाद दो हो गए, जो ज़ोरदार मालिक और चमकदार एडीटर के चपरासी और साथी की शक्ल में आत्माओं के छुरे उठाए फिरते हैं। पहले दिन से चौदह बरस बाद के बनवासी दिन टकरा-टकरा कर चिंगारियाँ फेंकते हैं। इन चिंगारियों में हुई सुबह ख़्वाबों को खोल-खोल दे रही है।
आज इस सुबह सपनों की प्रकृति के अनुरूप भयंकर रूप से एक-दूसरे में गुम काल, स्थान और पात्रों के साथ मैं अपने सपनों की यथासम्भव जमावट का एक चालू चिट्ठा आपको पेश करता हूँ।
Bambai Dinank
- Author Name:
Arun Sadhu
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
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