
Mokshawan
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
312
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
624 mins
Book Description
वृन्दावन को कृष्ण की क्रीड़ा-स्थली के रूप में जाना जाता है। श्रद्धा<strong>, </strong>भक्ति और समर्पण का यह केन्द्र वर्षों से न सिर्फ़ भारत बल्कि दुनिया-भर के कृष्ण-प्रेमियों को आकर्षित करता आ रहा है।</p> <p>लेकिन इस धार्मिक नगरी का एक पक्ष और है<strong>—</strong>यहाँ रहनेवाली विधवाएँ और उनका त्रासद जीवन। देश-भर से वे स्त्रियाँ जिन्हें विधवा हो जाने के बाद अपने घर या ससुराल<strong>, </strong>कहीं भी ठिकाना नहीं मिलता<strong>, </strong>वे वृन्दावन चली आती हैं। वे चाहे जिस आयु की हों।</p> <p>प्रतिष्ठित कथाकार और अपने हर उपन्यास के लिए व्यापक अध्ययन करनेवाले भगवानदास मोरवाल ने <strong>‘</strong>मोक्षवन<strong>’ </strong>में इसी विषय को उठाया है। इसके लिए उन्होंने वृन्दावन में काफ़ी समय भी बिताया और सम्बन्धित सामग्री की खोज-बीन की।</p> <p>इस कथाकृति में आज के वृन्दावन<strong>, </strong>उसके मन्दिरों<strong>, </strong>परम्पराओं<strong>, </strong>गलियों-मुहल्लों<strong>, </strong>देवस्थानों आदि का एक विराट दृश्य रचते हुए<strong>, </strong>वे विधवाओं के दैनिक दुखों<strong>, </strong>जीवन-चर्या<strong>, </strong>वृन्दावन के धािर्मक वातावरण में उनकी दृश्यता का एक प्रामाणिक और मार्मिक चित्र प्रस्तुत करते हैं।</p> <p>कहानी कोलकाता से आई युवा विधवा हरिदासी की है<strong>, </strong>जो मोक्ष की इस यात्रा में अत्यन्त दुख सहन करते हुए अन्तत: संसार को विदा कह देती है और भारतीय संस्कृति से जुड़े कई ऐसे सवालों को उठा जाती है जिन पर हमारा समाज अकसर मौन रहता है।</p> <p>वृंदावन के साथ-साथ इस उपन्यास में बंगाल की लाल सौंधी मिट्टी की महक और कपास के सफ़ेद फूलों की कोमल बेचैनी भी रह-रहकर पाठक को उद्वेलित करती है।