
Anubhav
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
165
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
330 mins
Book Description
अश्वत्थामा के माथे पर के सदा बहते घाव की तरह मनुष्य की पेशानी पर भी प्रकृति ने एकाकीपन का एक ज़ख़्म बड़ा है। इस ज़ख़्म को भरने के सफल-असफल प्रयासों का नाम जीवन है। सामाजिक क्षेत्र में, महत्त्वाकांक्षा का दामन थाम, कुछ कर गुज़रने की ललक इस घाव को किन्हीं अंशों में भरने में सहायक होती है। परन्तु मन के एकाकीपन का ज़ख़्म सदा रिसता रहता है। पारसी पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास की नायिका खोर्शेद की छोटी-सी दुनिया कमज़ोर दिमाग़ माँ, प्यारे पेसी अंकल, आया मेरी तथा इब्राहीम पॉववाले तक सीमित है, जहाँ प्रेम एवं विश्वास से घिरी, वह अपने छोटे-छोटे सुखों को लेकर सन्तोष से जी रही है। जिस स्कूल में वह पढ़ी है, वहीं नौकरी पा जाना उसके सुख की पराकाष्ठा है। यहाँ उसका सम्पर्क होता है दो भाइयों से। केखुशरू यानी केकी, जो दफ़्तर में उसका बॉस है, और मीनोचेहेर या मीनू जो उसकी इच्छा, आकांक्षाओं का केन्द्र बिन्दु है। वक़्त आने पर उसे अपने जन्म की हक़ीक़त से अवगत कराया जाता है। यह जानकारी उसकी छोटी-सी दुनिया को क्षत-विक्षत कर देती है। जब वह कुछ सँभलती है तो पाती है कि अब न उसके पास कोई भूतकाल बचा है, न आगे कहीं भविष्य ही दिखाई देता है। पेसी अंकल, आया मेरी, इब्राहीम पॉववाला, सभी का साथ छूट जाता है। माँ को वह स्वयं अलग करती है। फिर एक दौर आता है जिसमें ज़िद और हिम्मत के बल पर वह नियति द्वारा, अपने हिस्से में बाँटी गई, इस असमानबाजी में, बाहरी पहलू पर तो विजय हासिल कर लेती है, पर आन्तरिक पहलू पर, प्राप्त अनुभव को ही लक्ष्य मानकर उसे अन्तत: समझौता करने के लिए विवश होना पड़ता है।