Yog Vashishth

Yog Vashishth

Language:

Hindi

Pages:

366

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

732 mins

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Book Description

भारतीय मनीषा के प्रतीक ग्रन्‍थों में एक ‘योग वासिष्ठ’ की तुलना विद्वत्जन ‘भगवद्गीता’ से करते हैं। गीता में स्वयं भगवान मनुष्य को उपदेश देते हैं, जबकि ‘योग वासिष्ठ’ में नर (गुरु वशिष्ठ) नारायण (श्रीराम) को उपदेश देते हैं। विद्वत्जनों के अनुसार सुख और दु:ख, जरा और मृत्यु, जीवन और जगत, जड़ और चेतन, लोक और परलोक, बन्‍धन और मोक्ष, ब्रह्म और जीव, आत्मा और परमात्मा, आत्मज्ञान और अज्ञान, सत् और असत्, मन और इन्द्रियाँ, धारणा और वासना आदि विषयों पर कदाचित् ही कोई ग्रन्‍थ हो, जिसमें ‘योग वासिष्ठ’ की अपेक्षा अधिक गम्‍भीर चिन्‍तन तथा सूक्ष्म विश्लेषण हुआ हो। अनेक ऋषि-मुनियों के अनुभवों के साथ-साथ अनगिनत मनोहारी कथाओं के संयोजन से इस ग्रन्‍थ का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। स्वामी वेंकटेसानन्द जी का मत है कि इस ग्रन्‍थ का थोड़ा-थोड़ा नियमित रूप से पाठ करना चाहिए। उन्होंने पाठकों के लिए 365 पाठों की माला बनाई है। प्रतिदिन एक पाठ पढ़ा जाए। पाँच मिनट से अधिक समय नहीं लगेगा। व्यस्तता तथा आपाधापी में उलझा व्यक्ति भी प्रतिदिन पाँच मिनट का समय इसके लिए निकाल सकता है। स्वामी जी का तो यहाँ तक कहना है कि बिना इस ग्रन्‍थ के अभी या कभी कोई आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। स्वामी जी ने इस ग्रन्‍थ का सार प्रस्तुत करते हुए कहा है कि बिना अपने को जाने मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। मोक्ष प्राप्त करने का एक ही मार्ग है आत्मानुसन्‍धान। आत्मानुसन्‍धान में लगे अनेक सन्‍तों तथा महापुरुषों के क्रियाकलापों का विलक्षण वर्णन आपको इस ग्रन्‍थ में मिलेगा। प्रस्तुत अनुवाद स्वामी वेंकटेसानन्द द्वारा किए गए ‘योग वासिष्ठ’ के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘सुप्रीम योग’ का हिन्दी रूपान्‍तरण है जिसे विख्यात भाषाविद् और विद्वान बदरीनाथ कपूर ने किया है। स्वामी जी का अंग्रेज़ी अनुवाद 1972 में पहली बार छपा था जो निश्चय ही चिन्‍तन, अभिव्यक्ति और प्रस्तुति की दृष्टि से अनुपम है। लेकिन विदेश में छपने के कारण यह भारतीय पाठकों के समीप कम ही पहुँच पाया। आशा है, यह अनुवाद उस दूरी को कम करेगा, और हिन्दी पाठक इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक का लाभ उठा पाएँगे।

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