Jatil Rog Saral Upchar

Jatil Rog Saral Upchar

Authors(s):

Yatish Agarwal

Language:

Hindi

Pages:

188

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

376 mins

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Book Description

कायासुख ही जीवन की सबसे बड़ी दौलत है। मन और शरीर बीमार और लाचार हों, तो जीवन की हर प्राप्ति, हर ख़ुशी आधी-अधूरी और बेमायने-सी लगने लगती है। पर जीवन की रौ में आदमी अक्सर ही इस साधारण से सत्य को भुला बैठता है। बिरले ही ऐसे होते हैं जो शुरू से ही तन्दुरुस्ती का महत्त्व समझते हैं और उसी के रास्ते पर चलते हैं। पर ज़्यादातर लोग न तो क़िस्मत के इतने धनी होते हैं, न ही आनुवंशिक काठी के, और न ही समय से चेतते हैं कि जीवन की सबसे बड़ी दौलत उनके पास बनी रहे। यंत्रवत् जीवन की चकाचौंध में जीता आदमी जब होश सँभालता है, तब तक अक्सर वह अपनी उदासीनता की क़ीमत दे चुका होता है। उसके असंयमित रहन-सहन, खान-पान, चाल-चलन में कब कौन-सा अंग बीमार हो जाता है, इसका भी उसे तब पता चलता है जब पानी सर तक चढ़ चुका होता है। इस भँवर से बचकर निकलने के लिए दुगुने संकल्प की ज़रूरत होती है। न सिर्फ़ दवा की अनिवार्यता होती है, बल्कि जीने का ढंग भी बदलना पड़ता है। तभी कहीं जीवन ढंग से आगे बढ़ पाता है। सबसे अच्छा तो यह है कि आदमी शुरू से ही जगा रहे। बचाव इलाज से लाख गुना अच्छा है। उसी में शहनाई की मिठास है। क़ुदरत के साधारण नियमों का अनुसरण करना इसका सत्य-सार है। आपके जीवन में सुख का अमृत-कलश सदा भरा रहे, यही मेरी प्रार्थना है। किसी समय रुग्णता के बादल घिर आएँ, चारों तरफ़ अँधियारा दिखे, तब भी यह कृति आपको उस घटाटोप अँधेरे से बाहर खींच लाए, तभी इसकी रचना सफल समझूँगा।

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