Rukh

Rukh

Authors(s):

Kunwar Narain

Language:

Hindi

Pages:

128

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

256 mins

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Book Description

वरिष्ठ कवि कुँवर नारायण घनीभूत जीवन-विवेक सम्पन्न रचनाकार हैं। इस विवेक की आँख से वे कृतियों, व्यक्तियों, प्रवृत्तियों व निष्पत्तियों में कुछ ऐसा देख लेते हैं जो अन्यत्र दुर्लभ है। समय-समय पर उनके द्वारा लिखे गए लेख आदि इसका प्रमाण हैं। ‘रुख़’ कुँवर नारायण के गद्य की छठी पुस्तक है। पुस्तक के सम्पादक अनुराग वत्स के शब्दों में ‘पहला हिस्सा स्वभाव में समीक्षात्मक, दूसरा संस्मरणात्मक और वक़्त-वक़्त पर लिखी गई टिप्पणियों का है।’</p> <p>कुँवर जी विभिन्न कृतियों को पढ़ते हुए समीक्षात्मक अभिव्यक्तियों के बहाने अपने तर्कों की जाँच करते हैं। उन पद्धतियों पर भी प्रकाश डालते हैं जिन पर चलकर किसी कविता, उपन्यास या आलोचना के अन्त:पाठ तक पहुँचा जा सकता है। अपने समकालीनों या सहयात्रियों पर कुँवर जी संकोच मिश्रित आत्मीयता के साथ लिखते हैं। संक्षिप्त किन्तु महत्त्वपूर्ण। यह भी कि संस्मरणशीलता के बीच में कई बार अनेक ज़रूरी सूत्र रेखांकित हो गए हैं। नामवर सिंह पर लिखते हुए वे कहते हैं, ‘साहित्य मुख्यत: राजनीतिक समाज नहीं है—कला और संस्कृति की दुनिया है। यह दुनिया बहुत बड़ी भी हो सकती है और बहुत संकुचित भी।</p> <p>एक ऐसे समय में जब राजनीति की नैतिकता का ख़ुद का चेहरा विकृत हो चुका है, उसके संस्कारों की छाया साहित्य पर पड़ना शुभ लक्षण नहीं दीखता।’</p> <p>छोटी टिप्पणियाँ आगे कहीं विस्तार से लिखने या बोलने के सूत्र सरीखे हैं। या, किसी को लिखे गए पत्र के हिस्से। ये टिप्पणियाँ कई बार चकित कर देती हैं। मर्म को छूती हुई। कृष्णा सोबती के लेखन पर कुँवर जी की टिप्पणी है, ‘कृष्णा सोबती के अन्दर अन्याय के ख़िलाफ़ खड़े होने की जो एक दृढ़ता और मज़बूती है, वह उनकी भाषा के लगभग चुनौती-भरे मुहावरे में प्रतिबिम्बित होती है।’</p> <p>समग्रत: एक विशिष्ट भाषिक संस्कार में व्यक्त यह पुस्तक सन्दर्भित विषयों के साथ स्वयं कुँवर नारायण के अन्तर्मन को बूझने का अनूठा अवसर है।

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