Manipuri Kavita Meri Drashti Mein
Author:
DevrajPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
हिन्दी में मणिपुरी कविता के इतिहास एवं आलोचनात्मक अध्ययन पर केन्द्रित यह प्रथम कृति है। देवराज पिछले दो दशकों से मणिपुर में कार्यरत हैं और वहाँ हिन्दी प्रचार-प्रसार आन्दोलन तथा मणिपुरी साहित्य से निकट से जुड़े हैं। उनके प्रयास से विपुल परिमाण में मणिपुरी साहित्य हिन्दी में आ चुका है और हिन्दी की अनेक कृतियाँ मणिपुरीभाषी पाठकों को उपलब्ध हो चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से मणिपुरी साहित्य के विविध पक्षों के सम्बन्ध में उनकी दृष्टि अधिक पैनी और तटस्थ है।<br>हिन्दी में भारतीय भाषाओं के साहित्य सम्बन्धी आलोचना तथा इतिहास ग्रन्थों की कमी नहीं है, किन्तु यह कृति कुछ अलग हटकर एक समर्थ भारतीय भाषा के काव्य का मूल्यांकन करते समय अन्य भारतीय भाषाओं और कुछ भारतेतर भाषाओं के साहित्य को भी ध्यान में रखती है। इससे अन्य भाषाओं के बीच मणिपुरी भाषा और उसके साहित्य का वास्तविक महत्त्व रेखांकित हो जाता है। यह वैशिष्ट्य इस पुस्तक को साहित्य के अध्ययन की परम्परा में अभिनव स्थान प्रदान करता है।<br>लेखक ने इसे इतिहास-ग्रन्थ नहीं कहा है, फिर भी पाठक इसकी सहायता से मणिपुरी कविता के इतिहास की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ग्रन्थ का दूसरा खंड मणिपुरी भाषा में अनूदित-प्रकाशित होकर व्यापक स्वीकृति और प्रशंसा प्राप्त कर चुका है। यह इस ग्रन्थ की प्रामाणिकता के लिए पर्याप्त है। अभिव्यक्ति में निजता और लालित्य के कारण समग्र सामग्री कथा-साहित्य की सी रोचकता से परिपूर्ण है।<br>—प्रो. ऋषभदेव शर्मा
ISBN: 9788183610551
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में शमशेर, केदार, नागार्जुन, अज्ञेय, गोपाल सिंह नेपाली के कृतित्व का मूल्यांकन तत्कालीन ऐतिहासिक सन्दर्भ में किया गया है। इसके साथ ही यह पुस्तक प्रगतिशील आन्दोलन के बारे में फैलाई गई भ्रान्तियों को तोड़ती है और दुराग्रहों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश करती है।
Kavya Bhasha Par Teen Nibandh
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Rating:
- Book Type:

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Description:
काव्य-भाषा सम्बन्धी चिन्तन समकालीन आलोचना के केन्द्र में आ गया है। हिन्दी में, इस विषय पर मौलिक दृष्टि से लिखी गई पुस्तकें बहुत कम हैं। प्रख्यात आलोचक डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी के आलोचनात्मक चिन्तन का प्रमुख प्रतिमान काव्य-भाषा रही है। इस पुस्तक में उन्हीं के लिखे हुए तीन निबन्ध संकलित हैं जिनकी हिन्दी आलोचना में प्रशंसा होती रही है।
इस विषय पर इन निबन्धों का ऐतिहासिक और वैचारिक महत्त्व है।
Taar Saptak : Siddhant Aur Kavita
- Author Name:
Bodhisatwa
- Book Type:

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Description:
हिन्दी कविता के इतिहास में तार सप्तक का ऐतिहासिक महत्त्व है। काव्य-चेतना के दो युगों के सन्धि-बिन्दु पर मौजूद इस संकलन से गुज़रे बिना छायावाद, प्रगतिवाद और छायावादोत्तर कविताओं के बाद की हिन्दी कविता को नहीं समझा जा सकता। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक इसका कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं हो पाया। हिन्दी के सुपरिचित कवि और अध्येता बोधिसत्व का यह शोध-प्रबन्ध इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
पाँच विस्तृत अध्यायों में सुनियोजित इस पुस्तक में तार सप्तक के इतिहास, उसकी युगीन आवश्यकता, सम्पादन-प्रक्रिया और उससे जुड़े विवादों से आरम्भ करके हिन्दी के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में उसका चरणबद्ध विवेचन किया गया है। तार सप्तक में शामिल कवियों के काव्य-चिन्तन का विस्तृत अध्ययन-सर्वेक्षण और उनकी काव्यगत विशेषताओं पर शोधकर्ता ने अपनी कवियोचित अन्तर्दृष्टि का प्रयोग करते हुए कई मूल्यवान निष्कर्ष प्राप्त किए हैं।
सप्तक के पहले और दूसरे संस्करणों में प्रकाशित कवि-वक्तव्यों में आए परिवर्तनों की तरफ़ भी लेखक की जिज्ञासा गई है, और उनके सूक्ष्म अध्ययन से उसने जानने की कोशिश की है कि कवियों के वक्तव्यों में आए ये बदलाव किस प्रवृत्ति के सूचक हैं—अन्विति के, अन्तर्विरोध के या विकास के।
कहने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी कविता के एक ऐतिहासिक मोड़ पर केन्द्रित यह गम्भीर अध्ययन न सिर्फ़ छात्रों, बल्कि कविता के इतिहास में रुचि रखनेवाले हर पाठक के लिए उपादेय सिद्ध होगा।
Nagarjun Antrang Aur Srijan-Karm
- Author Name:
Murli Manohar Prasad Singh +1
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक नागार्जुन के अन्तरंग जीवन, व्यक्तित्व और उनके सम्पूर्ण कृतित्व पर सृजनकर्मियों तथा समालोचकों द्वारा लिखे गए लेखों का संचयन-संकलन है। आत्म-साक्षात्कार के अन्तर्गत 'आईने के सामने' में बाबा नागार्जुन ने अपने ही व्यक्तित्व और सृजनधर्मी स्वभाव का खुलासा किया है। इसके अलावा मनोहर श्याम जोशी द्वारा बाबा से ली गई भेंटवार्ता तथा उनके ग्रामीण परिसर में परिवार समेत पूरे परिवेश का आँखों देखा हाल इब्बार रब्बी ने प्रस्तुत किया है। संस्मरण खंड के अन्तर्गत रामविलास शर्मा, रामशरण शर्मा मुंशी, शोभाकान्त, खगेन्द्र ठाकुर आदि की टिप्पणियाँ हैं। समालोचना खंड में अनेक ठोस साहित्यिक सन्दर्भों में तीस आलेखों का संचयन किया गया है। इन आलेखों में स्त्री-विमर्श, जनोन्मुख जीवन यथार्थ, संगीत तत्त्व, मूर्तिमत्ता और नागार्जुन के काव्य की व्यंग्यात्मकता पर विचार किया गया है। इस खंड में अन्तिम आलेख उनके मैथिली साहित्य पर केन्द्रित है। यह किताब नागार्जुन के कृतित्व के विविध पक्षों को उद्घाटित करती है, इसीलिए यह अपनी सार्थकता रखती है।
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