Lekin

Lekin

Authors(s):

Gulzar

Language:

Hindi

Pages:

108

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

216 mins

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Book Description

साहित्य में ‘मंज़रनामा’ एक मुकम्मिल फ़ार्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयाँ अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इंटरप्रेटेशन हो जाता है। मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ार्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है। ‘लेकिन’...ठोस यक़ीन, पार्थिव सबूतों और तर्क के आधुनिक आत्मविश्वास पर प्रश्नचिह्न की तरह खड़ा एक ‘लेकिन’, जिसे गुलज़ार ने इतनी ख़ूबसूरती से तराशा है कि वैसी किसी बहस में पड़ने की इच्छा ही शेष नहीं रह जाती जो आत्मा और भूत-प्रेत को लेकर अक्सर होती रहती है। इस फ़िल्म और इसकी कथा की लोमहर्षक कलात्मकता हमें देर तक वापस अपनी वास्तविक और बदरंग दुनिया में नहीं आने देती जिसे अपने उद् दंड तर्कों से हम और बदरंग कर दिया करते हैं। यह पुस्तक इसी फ़िल्म का मंज़रनामा है...पठनीय भी दर्शनीय भी।

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