Kriti Vikriti Sanskriti
Author:
Satyaprakash MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 300
₹
375
Unavailable
सत्यप्रकाश मिश्र हिन्दी आलोचना में साहित्यिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सन्दर्भों एवं उनसे निःसृत समाजवादी मान-मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में किसी भी कृत और प्रवृत्ति का मूल्यांकन करनेवाले एक सेक्यूलर आलोचक थे। समकालीन हिन्दी आलोचना भाषा को उन्होंने जो आवाज़ दी, वह अपने आप में अकेली और अनोखी है। इस आवाज़ में जहाँ तीक्षा असहमति का स्वर है वहाँ भी सप्रमाण तर्कशक्ति के साथ विषय और सन्दर्भों का विवेकपूर्ण प्रकटन है जिसको पढ़कर लगता है कि हिन्दी आलोचना के लिए इस तरह के आलोचना कर्म की ज़रूरत आज और भी अधिक है, क्योंकि समकालीन हिन्दी आलोचना परिचय-धर्मिता का शिकार हो रही है।</p>
<p>प्रो. मिश्र यह मानते हैं कि आलोचक का कार्य केवल उद्धारक या प्रमोटर का नहीं होना चाहिए। रचनाकार, उसके परिवेश और कृति को समग्रता में समझने के कार्य को वह आलोचना का प्रमुख कार्य मानते हैं। इस पुस्तक में नवें दशक की हिन्दी कविता पर लिखा उनका लम्बा लेख इसका उदाहरण है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी और नन्ददुलारे वाजपेयी के पश्चात् व्यापक सामाजिक चेतना वाले आलोचकों—रामविलास शर्मा, विजयदेव नारायण साही, नामवर सिंह और मैनेजर पाण्डेय की आलोचना-दृष्टि, पद्धति और प्रविधि तथा मूल्यांकन क्षमता की परख करते हुए इस पुस्तक में सत्यप्रकाश मिश्र ने हिन्दी आलोचना के विकास-क्रम को निर्दिष्ट किया है। वे अपने प्रिय आलोचक साही की ही तरह यह मानते थे कि आलोचना के मुहावरे को ग़लत बनाम सही, झूठ या अपर्याप्त सच बनाम सच का रूप ग्रहण करना ही चाहिए। ‘कृति विकृति संस्कृति’, इसी आलोचनात्मक मुहावरे का रूपाकार है।
ISBN: 9788180315305
Pages: 310
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Acharya Hazari Prasad Dwivedi Ki Jai Yatra
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी आलोचना के शिखर-पुरुष नामवर सिंह और उनके प्रेरणा-पुंज गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी मिलकर एक ऐसा प्रकाश-युग्म निर्मित करते हैं जिसकी रोशनी में बीसवीं सदी की न सिर्फ़ आलोचना-दृष्टि, बल्कि सम्पूर्ण रचना-दृष्टि अपना पथ प्रशस्त करती है।
यह पुस्तक इस युग्म की मनीषा का संयुक्त प्रक्षेपण है; इसमें नामवर सिंह की दृष्टि में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी आलोकित होते हैं और आचार्य द्विवेदी के आलोक में नामवर जी की इतिहास-प्रवर्तक आलोचक मेधा प्रकाशित। ये निबन्ध सिर्फ़ आलोचना से सम्बन्ध नहीं रखते, इनमें उपन्यास-सुलभ पठनीयता भी है और संस्मरण, रेखाचित्र और जीवनी जैसी जिज्ञासा-प्रेरक विवरणात्मकता भी। विचार, जैसाकि स्वाभाविक है, निरन्तर इन आलेखों की रीढ़ भी है, मांस भी और
त्वचा भी।
नामवर सिंह के व्यक्तित्व, दृष्टि और प्रतिभा का सबसे सघन और उज्ज्वल प्रतिफलन आचार्य द्विवेदी से सम्बन्धित लेखन में हुआ है, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि वास्तव में आचार्य द्विवेदी ने जिस तरह बाणभट्ट के माध्यम से अपना अन्वेषण किया था, उसी तरह नामवर सिंह ने आचार्य द्विवेदी के माध्यम से अपनी दूसरी परम्परा की खोज की।
Aadhunik Kavita Ka Punarpath
- Author Name:
Karunashankar Upadhyay
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत पुस्तक भारतेन्दु से लेकर समसामयिक कविता तक में विद्यमान नए पाठ की सम्भावना का सन्धान करते हुए उसका वस्तुनिष्ठ एवं गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें ‘भारतेन्दु का काव्यदर्शन’, ‘शलाकापुरुष महावीर प्रसाद द्विवेदी की नारी चेतना’, ‘साकेत की उर्मिला का पुनर्पाठ’, ‘गुप्त जी की कैकेयी का नूतन पक्ष’, ‘जयशंकर प्रसाद के पुनर्मूल्यांकन के ठोस आयाम’, ‘प्रसाद साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप’, ‘कामायनी में प्रकृति-चित्रण का स्वरूप’, ‘कामायनी : एक उत्तर आधुनिक विमर्श’, ‘स्त्री-विमर्श और प्रसाद काव्य के शिखर नारी चरित्र’, ‘निराला की आलोचना-दृष्टि का विश्लेषण’, ‘दिनकर का कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी का पुनर्पाठ’, ‘शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के काव्य में राष्ट्रीय चेतना’, ‘अज्ञेय के काव्य में संवेदनशीलता’, ‘भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य में गांधीवादी चेतना’, ‘नरेश मेहता का संवेदनात्मक औदात्य’, ‘मुक्तककार बेकल’, ‘अन्तस् के स्वर : कवि मन की पारदर्शी अभिव्यक्ति’, ‘धूमिल अर्थात् कविता में लोकतंत्र’, ‘ग़ज़ल दुष्यन्त के बाद : एक विश्लेषण’, ‘कविता का समाजशास्त्र एवं शोभनाथ यादव की कविताएँ’, ‘कविताओं का सौन्दर्यशास्त्र और शोभनाथ की कविताएँ’, ‘रुद्रावतार : अद्भुत भाषा सामर्थ्य की विलक्षण कविता’, ‘संशयात्मा के ख़तरे से आगाह कराती कविताएँ’, ‘हिन्दी ग़ज़ल का दूसरा शिखर : दीक्षित दनकौरी’, ‘ग़ज़ल का अन्दाज़ ‘कुछ और तरह से भी’’, ‘चहचहाते प्यार की गन्ध से घर-बार महकाते गीत’, ‘सामाजिक प्रतिबद्धता का दलित-स्त्रीवादी वृत्त’, ‘समकालीन हिन्दी कविता : दशा एवं दिशा’ तथा ‘समकालीन कविता के सामाजिक सरोकार’ जैसे विषयों के अन्तर्गत इस युग के समूचे काव्य का विशद् विश्लेषण किया गया है। साथ ही परिशिष्ट के अन्तर्गत ‘जन अमरता के गायक विंदा करंदीकर’ तथा ‘परम्परा एवं आधुनिकता के समरस कवि अरुण कोलटकर’ जैसे शीर्षकों के अन्तर्गत मराठी के दो शिखर कवियों का सम्यक् विश्लेषण किया गया है।
छात्रों, मनीषियों, चिन्तकों तथा सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी यह पुस्तक आधुनिक काव्य पर विशिष्ट अध्ययन होने के साथ-साथ नवीन समीक्षात्मक प्रतिमानों के सन्धान द्वारा उसका पुनर्पाठ तैयार करने का एक गम्भीर और साहसिक प्रयास है।
Dinkar
- Author Name:
Savitri Sinha
- Book Type:

-
Description:
दिनकर जी जब काव्य के क्षेत्र में आए, उस समय हिन्दी में कविता की दो धाराएँ बहुत ही स्पष्ट थीं। एक धारा छायावादी काव्य की थी, जिस पर आक्षेप यह था कि वास्तविकता से ईषद् दूर है। दूसरी धारा राष्ट्रीय कविताओं की थी जो वास्तविकता की अत्यधिक आराधना करने के कारण कला की सूक्ष्म भंगिमाओं को अपनाने में असमर्थ थी।
दिनकर जी ने काव्य-पाठकों का ध्यान विशेष रूप से इसलिए आकृष्ट किया कि उन्होंने कला को वास्तविकता के समीप ला दिया, अथवा यों कहें कि राष्ट्रीय धारा की कविताओं में उन्होंने कला की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भंगिमाएँ उत्पन्न कर दीं। दिनकर जी में शक्ति और सौन्दर्य का जो मणिकांचन-संयोग दिखाई पड़ा, वही उनकी कीर्ति का आधार बना।
प्रस्तुत कृति दिनकर जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विशद् रूप में प्रकाश डालनेवाली हिन्दी में अपने ढंग की पहली पुस्तक है। इस पुस्तक में हिन्दी के अधिकारी लेखकों ने दिनकर जी की कृतियों पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं—दिनकर-साहित्य के जिज्ञासु पाठकों तथा छात्रों के लिए सर्वथा संग्रहणीय।
Meri Dharti Mere Log
- Author Name:
Sheshendra Sharma
- Book Type:

-
Description:
कवि तीखा होता हुआ मनहर है—वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि। कितनी सरल, कितनी कोमल जनान्तिक, फिर भी अभिजात, कितनी आम-अवाम को पुकारती उसकी आवाज़ है। शब्दों का औदार्य, रचना की सुघराई, गिरा की गरिमा, भावों की तीखी सादगी सिद्ध करती है कि—सिम्पल इज़ द कल्मिनेशन ऑफ़ द कॉम्प्लेक्स।
—डॉ. भगवतशरण उपाध्याय
यह कृति सिखाती है कि किस तरह कवि संवेदना में जनवादी और क्रान्तिकारी हो सकता है। यह काव्य स्वाद और आग एक साथ देता है। इस आग से रूपान्तरित व्यक्तित्व आदमी नहीं रहता, वह क्रान्ति का अस्त्र बन जाता है, जिसे इतिहास इस्तेमाल करता है।
—डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
शेषेन्द्र के काव्य में भारतीय आत्मा की लाक्षणिक अभिव्यक्ति है। इसकी बनावट बौद्धिक नहीं, हार्दिक और आत्मिक है। यह केवल मस्तिष्क को उत्तेजित करके नहीं छोड़ देता बल्कि एक गहितर वेदना और संवेदना से हमें भीतर ही भीतर गला देता है।
—वीरेन्द्र कुमार जैन
शेषेन्द्र तेलगू-काव्य के ही नहीं, बल्कि विश्व-काव्य के आशा-सूर्य हैं। कविता-रहस्य जितना वह जानते हैं, उतना अन्य आधुनिक कवि कम जानते हैं। श्रमिक-जीवन की भूमिका पर आधारित ‘मेरी धरती : मेरे लोग’ बीसवीं शती की जिह्वा और आगामी पीढ़ियों की हृदय-ध्वनि है। शेषेन्द्र वह कवि हैं जिसे राजेश्वर ने अपनी ‘काव्य-मीमांसा’ में इस तरह वर्णित किया है—वायं पताकामिव यस्य दृष्ट्वा जनः कवीनाम अनुपृष्ठ मेति।
—डॉ. सरगूकृष्ण मूर्ति
Kannada Varnamale
- Author Name:
Anupama K Benachinamardi
- Rating:
- Book Type:

- Description: This book is tailored for individuals with an interest in mastering the Kannada alphabet. It elucidates the pronunciation of each Kannada letter using English phonetics. Moreover, the book incorporates sensory words that captivate children's interest. Another distinctive aspect of this book is its presentation of vowels and consonants within the context of natural phenomena. Our aim is for children to forge a deeper connection with nature through this book.
Vichar Ka Dar
- Author Name:
Krishna Kumar
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी गद्य का स्वरूप साठ के दशक में बदलना शुरू हो चुका था। सत्तर के दशक में यह बदलाव कई विधाओं में प्रकट हुआ। लोकतांत्रिक चेतना के फैलाव से पैदा हुए तनावों के अलावा शिक्षा और संचार के आधुनिक माध्यमों का विस्तार गद्य को जिज्ञासा और समझ की नई ज़मीनें तोड़ने के लिए तैयार कर रहा था। इस विकास को कुंठित करनेवाली ताक़तें—अंग्रेज़ी की चौधराई, राज्याश्रित हिन्दी की राजनीति और उत्तर के समाज में फैली सामन्ती प्रवृत्तियाँ भी—पोषण पा रही थीं; विचार का डर हमें इन ताक़तों को समझने में मदद दे सकता है।
इस पुस्तक में संकलित पद्य पिछले दो दशकों में प्रकाशित कृष्ण कुमार की वैचारिक रचनाशीलता की बानगी तो देता ही है, इस समूचे दौर की गतिशील प्रवृत्तियों का बिम्ब भी प्रस्तुत करता है। विषयों की दृष्टि से ये लेख, निबन्ध और संस्मरण हिन्दी समाज के सरोकारों का पैमाना कहे जा सकते हैं। अर्थ और राजनीति से लेकर साहित्य, संचार और मनोरंजन के तेज़ी से बदलते हुए ढाँचों के बीच तकनीक, भाषा, फ़िल्म-संगीत, स्त्री, साम्प्रदायिक हिंसा और पत्रकारिता जैसे सन्दर्भों की जाँच इस कृति को एक नई तरह का, बहुत फैला हुआ पाठक समुदाय देती है।
Ramchandra Shukla
- Author Name:
Malayaj
- Book Type:

-
Description:
विस्मरण के इस हाहाकारी उत्सवी दौर में भुला दिए गए विलक्षण कवि-आलोचक मलयज और उनकी पुस्तक ‘रामचन्द्र शुक्ल’ की पुनर्प्रस्तुति का साहित्यिक और अकादमिक महत्त्व निर्विवाद है। मलयज की आलोचना पद्धति के कायल वे सब लोग हैं, जिन्होंने उनका लिखा कुछ भी पढ़ा है। भौतिक रूप से मिले छोटे से जीवन में मलयज ने सृजन के कई मानक स्थापित किए। यह पुस्तक भी अपने संक्षिप्त कलेवर में ही एक प्रतिमान की तरह है। मलयज ने एक अपूर्व आलोचक-चिन्तक के रूप में रामचन्द्र शुक्ल का जिस प्रकार मूल्यांकन किया है, उसका सानी कोई दूसरा नहीं है। यह अकारण नहीं है कि इस पुस्तक को सम्पादित करने वाले सुप्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने अपनी भूमिका का शीर्षक ही दिया था—मलयज की संघर्ष मीमांसा। मलयज रामचन्द्र शुक्ल की ‘रस-मीमांसा’ के बड़े प्रशंसक थे। उनकी अन्तर्दृष्टि मलयज की अन्तर्दृष्टि में उसी प्रकार घुली है जिस प्रकार दाल में नमक घुल जाता है। लेकिन यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि दाल में नमक का बहुत महत्त्व है लेकिन वह पूरी दाल नहीं है। वह उसका एक घटक भर है। कहने की आवश्यकता नहीं कि रामचन्द्र शुक्ल के दाय को स्वीकार करते हुए मलयज ने नया बहुत कुछ जोड़ा और हिन्दी आलोचना को गहरी विश्वसनीयता भी दी। हिन्दी के युवा आलोचकों के लिए मलयज की विश्लेषण पद्धति और भाषा में सीखने के लिए बहुत कुछ है। उनकी आलोचना एक पाठशाला की तरह है।
—जितेन्द्र श्रीवास्तव
Nirala Aur Muktibodh : Chaar Lambi Kavitayen
- Author Name:
Nandkishore Naval
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी में लम्बी कविता का इतिहास नया नहीं है, भले उसे पारिभाषिक अभिधा मुक्तिबोध की लम्बी कविताओं से प्राप्त हुई हो। पुराने कवियों को छोड़ दें, तो लम्बी कविता द्विवेदी-युग के कवियों से लेकर समवर्ती युग के कवियों तक ने लिखी है। हिन्दी के महत्त्वपूर्ण युवा आलोचक नंदकिशोर नवल ने अध्ययन के लिए चार लम्बी कविताएँ चुनी हैं। उनमें से दो निरालाकृत हैं और दो मुक्तिबोधकृत। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये चारों कविताएँ हिन्दी की चर्चित और विवादास्पद ही नहीं, महान कविताएँ भी हैं, जिनके सोपानों पर चरण रखते हुए हिन्दी कविता ने ऊँचाई प्राप्त की है।
लम्बी कविता का सम्बन्ध निश्चय ही केवल आकार से न होकर प्रकार से भी है। इसे संयोग ही कहेंगे कि लेखक द्वारा चुनी गई चारों कविताएँ चार तरह की हैं। ‘सरोज-स्मृति’ के चित्रों को यदि स्मृति का सूत्र गुम्फित करता है, तो 'राम की शक्ति-पूजा' कथा के सहारे आगे बढ़ती है। ‘ब्रह्मराक्षस’ और ‘अँधेरे में’ दोनों ही फ़ैंटास्टिक कविताएँ हैं, लेकिन एक की फ़ैंटेसी जहाँ एक अखंड रूपक के रूप में है, वहीं दूसरे की फ़ैंटेसी एक पूरी चित्रशाला है। नवल ने बड़ी सूक्ष्मता से चारों लम्बी कविताओं के शिल्पगत वैशिष्ट्य को उद्घाटित करते हुए उनकी उस अन्तर्वस्तु पर प्रकाश डाला है, जो कि उससे अभिन्न है।
समकालीन हिन्दी आलोचना में रचना से साक्षात्कार की बहुत बात की जाती है, लेकिन उसका सामना होने पर प्राय: आलोचक बग़ल से निकल जाते हैं। नवल ने रचना के अन्तर्लोक में प्रवेश करते हुए उसके उस बृहत्तर सन्दर्भ को हमेशा याद रखा है, जिसमें ही कोई रचना अपनी सार्थकता अथवा प्रासंगिकता प्राप्त करती है। ‘निराला और मुक्तिबोध : चार लम्बी कविताएँ’ नामक उनकी यह आलोचना-पुस्तक हिन्दी कविता के मर्मग्राहियों के लिए निश्चय ही उपयोगी बनी रहेगी।
Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Jaishankar Prasad
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

-
Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
आधुनिक हिन्दी साहित्य के शुरुआती निर्माताओं में से एक जयशंकर प्रसाद भारतीय संस्कृति के मूल्यवान तत्वों को साहित्य में पुनर्स्थापित करने वाले लेखक-चिन्तक हैं। उन्होंने दिखाया कि साहित्य इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार है कि वह दर्शन की गहराइयों को अपने भीतर जगह दे। उन्होंने इतिहास के नायकों को अपना साहित्य नायक बनाया और परम्परा से निरन्तर संवादरत रहे लेकिन वे अतीतजीवी नहीं थे। आज जब राजनीतिक पूर्वाग्रहों से लैस होकर इतिहास का उत्खनन किया जा रहा है ऐसे में हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब उस धुन्ध को साफ करने में हमारी मदद करेगी जिसकी गिरफ्त में इतिहास और वर्तमान दोनों ही डूबे हुए हैं।
Bhartiya Dharmik Chetna Ke Ayam
- Author Name:
Ravinandan Singh
- Book Type:

-
Description:
दुनिया के सभी धर्म एक ही दिशा में संकेत करते हैं। पूजा-पद्धतियाँ, धर्म-ग्रन्थ, धार्मिक सिद्धान्त संकेत मात्र हैं, किन्तु हम इन संकेतों को ही धर्म समझ लेते हैं और धर्मों की आन्तरिक एकता को समझ नहीं पाते। पूरी मनुष्य जाति धर्म के इन संकेतों को लेकर विभाजित एवं संघर्षरत है। ये संकेत जिस ओर इशारा करते हैं, उस गन्तव्य तक हमारी दृष्टि ही नहीं जा पाती। ऊपर से देखने पर पूरी मनुष्यता ही धार्मिक दिखाई पड़ती है, किन्तु ऐसा वास्तविकता में नहीं है। अगर ऐसा होता तो दुनिया के सारे दुःख-सन्ताप मिट जाते। किन्तु बाहर धर्म के संकेतों में वृद्धि हो रही है और उसी अनुपात में मनुष्य अशान्त होता जा रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक धर्म के संकेतों के माध्यम से भारत की सर्वांगीण चेतना को समझने की कोशिश करती है। प्रागैतिहासिक युग से अब तक भारत की धार्मिक चेतना को क्रमिक रूप से उद्घाटित करना ही पुस्तक का उद्देश्य है। इस विषय पर सामग्री बिखरी होने के कारण विद्यार्थी एवं शोधार्थियों को कठिनाई होती है। इस कठिनाई से निजात पाने की कोशिश में ही इस पुस्तक की रचना हुई है। भारतीय इतिहास के कालक्रमानुसार नवीनतम अनुसन्धानों एवं शोधों को सम्मिलित करते हुए पुस्तक को समृद्ध बनाया गया है। यह पुस्तक सिविल सेवा के प्रतियोगी छात्रों, विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों के भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के छात्रों तथा सामान्य जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त लाभप्रद एवं उपयोगी है।
Hindi Bhasha Ka Samajshastra
- Author Name:
Ravindranath Shrivastava
- Book Type:

-
Description:
प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने ‘हिन्दी भाषा का समाजशास्त्र’ पुस्तक की योजना ही नहीं, इसकी पूर्ण रूपरेखा भी अपने जीवन-काल में ही निर्मित कर ली थी। प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी भाषा और उसकी बोलियों को व्यापक सामाजिक घटकों से सम्बद्ध करके देखती है। यह अध्ययन निश्चित ही हिन्दी भाषा-समुदाय से जुड़े अनेक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है।
अल्पसंख्यक भाषा-समुदायों की भाषाओँ का मिश्रण, स्थिर बहुभाषिकता का विकास, भाषा का मानकीकरण और आधुनिकीकरण, भाषा-विकास में भाषा-नियोजन की भूमिका आदि कुछ ऐसे ही प्रश्न हैं, जिन्हें हिन्दी भाषा-समाज को केन्द्र में रखकर प्रो. श्रीवास्तव ने उठाया है और उनकी विवेचना-व्याख्या की है। एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं संग्रहणीय कृति।
Prayojanmoolak Hindi
- Author Name:
P. Lata
- Book Type:

-
Description:
स्वतंत्र भारत में हिन्दी विविध रूपों में प्रयुक्त होती है। इस पहलू का अध्ययन ‘प्रयोजनमूलक अध्ययन’ कहलाता है! मुम्बइया बाज़ार में ग्राहक दुकानदार से कहता है—“हम को फ्रेश भाजी माँगता है।” यह भी हिन्दी है। स्वास्थ्य-विज्ञान का यह वाक्य भी हिन्दी है—“मानव का रक्तचाप सन्तुलित रखना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।”
हिन्दी भाषा के ऐसे विविध प्रयोजनों में अब प्रशासन सबसे महत्त्वपूर्ण हो गया है। स्वतंत्र भारत की सरकार ने हिन्दी को राजभाषा का पद दिया तो उसके प्रशासनिक स्वरूप का अध्ययन जोरों से होने लगा। इसी के फलस्वरूप अब प्रकाशन-क्षेत्र में प्रयोजनमूलक हिन्दी पर कई पुस्तकें मिलती हैं। डॉ. लता की यह पुस्तक इस दिशा की नवीनतम रचना है।
लता वर्षों से प्रयोजनमूलक हिन्दी सिखाती रही हैं। अतएव उन्होंने बहुत से प्रामाणिक ग्रन्थों का मनन-मन्थन करके यह नवनीत निकाला है। अनुभवी प्राध्यापिका ने छात्रों की ज़रूरत पहचानकर उनसे न्याय किया है। पुस्तक की भाषा स्पष्ट व सरल है जो तकनीकी लेखन की पहली शर्त है।
Premchand : Ek Talaash
- Author Name:
Shriram Tripathi
- Book Type:

-
Description:
‘प्रेमचन्द : एक तलाश’ रचनात्मक आलोचना का एक अनूठा उदाहरण है। आलोचक श्रीराम त्रिपाठी ने वस्तुत: हिन्दी और उर्दू में समानरूपेण समादृत अमर कथाशिल्पी मुंशी प्रेमचन्द को उनकी रचनाओं में तलाश किया है।
‘प्रस्तावना’ में श्रीराम त्रिपाठी लिखते हैं—जिस तरह कबीर हिन्दू–मुस्लिम के नहीं, समाज के निम्नतम, मगर मेहनतकश लोगों के साथ हैं, उसी तरह प्रेमचन्द हैं। वे न हिन्दी के हैं, न उर्दू के। वे हिन्दी–उर्दू के हैं। देवनागरी लिपि का मतलब हिन्दी नहीं होता और न फ़ारसी लिपि का मतलब उर्दू। प्रेमचन्द को समझने के लिए उनके श्रेष्ठतम से रू-ब-रू होना पड़ेगा। यह तभी सम्भव है, जब दोनों भाषाओं की रचनाओं की तुलना करके श्रेष्ठतम को छाँटकर अलग किया जाए और वही दोनों भाषाओं में अनुवादित होकर नहीं, लिप्यन्तरित होकर पहुँचे। मसलन, ‘ईदगाह’, ‘नमक का दारोग़ा’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ का उर्दू रूप निश्चित तौर पर हिन्दी रूप से श्रेष्ठ है। फिर, क्यों न हिन्दी पाठकों को वही मुहैया कराया जाए। आजकल हिन्दी की रचनाओं में धड़ल्ले से देशज, अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी के शब्द आते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उनके अर्थ फुटनोट में दे दिए जाते हैं, तो प्रेमचन्द के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता।
पुस्तक की सामग्री तीन खंडों में है—लिप्यन्तर, तुलना और समीक्षा। उपसंहार के अन्तर्गत भी अत्यन्त उपयोगी सामग्री है। उदाहरणार्थ, पुस्तक में विवेचित कहानियों की उर्दू व हिन्दी में प्रथम प्रकाशन की सूचना। साथ ही, इन कहानियों में आए उर्दू शब्दों के अर्थ। निस्सन्देह, प्रेमचन्द की रचनात्मक मानसिकता को समझने में यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Mahadevi
- Author Name:
Indranath Madan
- Book Type:

-
Description:
‘छायावाद के वसन्त वन की सबसे मधुर, भाव-मुखर पिकी’ महादेवी वर्मा के काव्य का सन्तुलित मूल्यांकन जितना उपेक्षित है, उतना ही उपेक्षित रहा है। इनके काव्य के सम्बन्ध में अनेक असंगत धारणाएँ भी रूढ़ हो चुकी हैं, अनेक भ्रान्तियाँ फैल चुकी हैं।
सवाल उठता है कि क्या महादेवी वर्मा का रचनात्मक व्यक्तित्व विभाजित है जो इनकी गद्य-रचनाओं में सामाजिक चेतना को आत्मसात् किए हुए है और काव्य-रचनाओं में पलटा खाकर असामाजिक या आध्यात्मिक रूप धारण कर लेता है? क्या इनका व्यक्तित्व अद्वैतवाद और बौद्धमत के परस्पर-विरोधी तत्त्वों से निर्मित है? क्या महादेवी की सृजन-प्रक्रिया इन विपरीत स्थितियों के तनाव में गतिशील है? इन तमाम सवालों, भ्रान्तियों आदि का सार्थक निराकरण करने की दिशा में पहला और प्रमुख कदम है यह पुस्तक।
इनकी कविता के रूढ़िगत मूल्यांकन से छुटकारा पाना इसलिए भी आवश्यक है कि युगबोध बदल चुका है और इसके बदलने पर हर कृति या हर कृतिकार को फिर से आँकने की आवश्यकता अनुभव होने लगती है।
‘राधाकृष्ण मूल्यांकन माला’ की इस पुस्तक में अधिकारी सम्पादक ने ऐसी अमूल्य सामग्री का संयोजन किया है जो अलग-अलग आलोचना-पुस्तकों, पत्रिकाओं तथा शोध-ग्रन्थों में बिखरी हुई थी और जिसे एकत्र पाना दुर्लभ था। इसमें विद्वान रचनाकारों ने महादेवी वर्मा के रचनात्मक व्यक्तित्व, उनके चिन्तन व कला पक्षों का समग्रता से आत्मीयतापूर्वक मूल्यांकन किया है।
Aadhunik Kavita Yatra
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत पुस्तक ‘आधुनिक कविता-यात्रा’ में प्रमुखतः छायावाद के उदय तक का विवेचन हुआ है। छायावाद और परवर्ती काव्य के महत्त्वपूर्ण विकास-क्रमों को इस ग्रन्थ में उठाया गया है।
आधुनिक हिन्दी कविता के राष्ट्रीय संस्कार परिवर्तन या विकास-क्रम का उल्लेख भी किया गया है। एकाधिकार देशभक्ति की सामान्य मानवीय वृत्ति सचेतन होकर राष्ट्रीयता का रूप ग्रहण करती है। और यों यह स्वचेतन राष्ट्रबोध आधुनिक संवेदना का पहला महत्त्वपूर्ण कारण और प्रमाण दोनों है।
आशा है, यह पुस्तक विधार्थियों, शोधार्थियों तथा अध्यापकों का मार्गदर्शन करने में सफल सिद्ध होगी।
Kalpana Ka Ant Yahan
- Author Name:
Arundhati Roy
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Kavita Ki Zameen Aur Zameen Ki Kavita
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
‘आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ’, ‘छायावाद’ और ‘कविता के नए प्रतिमान’ जैसी कविता-केन्द्रित पुस्तकों के लेखक प्रो. नामवर सिंह के अब तक असंकलित कविता-केन्द्रित निबन्धों का संकलन है—‘कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता’। ये निबन्ध लगभग पाँच दशकों की विस्तृत अवधि में लिखे गए थे। संस्कृत कविता से लेकर प्रगतिशील काव्यधारा और नई कविता के कवियों पर केन्द्रित निबन्ध यहाँ एक साथ संकलित हैं। साथ ही साथ कविता के प्रतिनिधि कवियों ब्रेख़्त और विशेषत: पाब्लो नेरुदा पर केन्द्रित अनेक निबन्ध यहाँ मौजूद हैं। पुस्तक का केन्द्र प्रगतिशील और नई कविता है। ‘ज्ञानोदय’ में ‘नई कविता पर क्षण भर’ शृंखला तथा उस समय के अन्य निबन्धों में हमें सहज ही ‘कविता के नए प्रतिमान’ जैसी प्रबन्धात्मक और संवादी पुस्तक के आलोचनात्मक मानस का विकास दिखाई देता है। बाद में विकसित हुई अनेक अवधारणाएँ यहाँ बीज रूप में मौजूद हैं।
नागार्जुन-शमशेर पर लिखे गए निबन्धों से गुज़रते हुए हम सहज ही लक्षित कर सकते हैं कि ये निबन्ध ‘कविता के नए प्रतिमान’ पुस्तक की काव्य-दृष्टि का विस्तार और स्पष्टीकरण एक साथ है। एक हद तक उसमें छूट गए महत्त्वपूर्ण रचना-संसार को फ़ोकस में लाने का एक गम्भीर प्रयास भी। एक तरह का प्रत्याख्यान। एक आलोचना प्रयास के केन्द्र में यदि मुक्तिबोध हैं तो दूसरे के केन्द्र में हैं नागार्जुन और त्रिलोचन। कहना न होगा कि इन शीर्ष कवियों के माध्यम से प्रगतिशील काव्यधारा का खंडित रहा परिदृश्य इस तरह नामवर के आलोचना संसार में रचनात्मक पूर्णता के साथ उपस्थित हो पाया है।
Hindi Dalit Sahitya : Samvedana Aur Vimarsh
- Author Name:
P.N. Singh
- Book Type:

-
Description:
दलित रचनाकार और विमर्शकार चाहे जितना भी शहादती तेवर अपनाएँ, अपने पूर्व के कम्युनिस्टों की तुलना में इन्होंने सुरक्षित विकेट पर ही खेला है। अपराध-बोध से पीड़ित पारम्परिक चेतना सुरक्षात्मक रही है अथवा चुप। प्रगतिशील चेतना ने भी विरोध न कर दलित साहित्य संवेदना के कतिपय अतिरेकों के विरुद्ध मात्र सावधान किया है। इसकी आलोचना मित्रवत् रही है।
प्रथम आधुनिक दलित होने का गौरव पटना के दलित कवि ‘हीरा डोम’ को दिया जा सकता है जिनकी एक कविता ‘अछूत की शिकायत’, सरस्वती में 1914 में प्रकाशित हुई थी। इसमें दलित पीड़ा का मार्मिक अंकन है। 1914 में अपने जाति-नाम ‘डोम’ का उल्लेख उनके दलितवादी स्वर का भी परिचायक है।
...कुल मिलाकर, इसके राजनीतिक क्षितिज पर जो घटित हुआ है, लगभग वही इसके साहित्यिक फलक पर भी। अब दलित बुद्धिधर्मी पारम्परिक जातिबद्ध सोच से मुक्त किसी रैडिकल सामाजिक विवेक एवं नैतिकता के अग्रधावक नहीं लगते। इसी कारण ये अपने नव-अगड़ों की शिनाख़्त से बचते हैं। आरम्भिक सर्जनात्मक विस्फोट के बाद दलित कविता ने अपने लिए कोई नया पथ अन्वेषित करने की चिन्ता नहीं दिखाई।
Shabd Parspar
- Author Name:
Niranjan Dev Sharma
- Book Type:

-
Description:
कृष्णा सोबती अद्वितीय लेखिका हैं। कहानी, उपन्यास, संस्मरण, साक्षात्कार, संवाद जिस भी विधा में उन्होंने काम किया, विलक्षण किया। शब्द की सत्ता पर उनका विश्वास अटूट है, और साहित्यिक तथा वास्तविक जीवन-व्यवहार में मानवीय मूल्यों के प्रति उनका आग्रह अबाध। वे अपने मूल्यों को लेखक के तौर पर भी जीती हैं, और नागरिक के तौर पर भी। जैसा कि इस पुस्तक में निरंजन देव ने लक्ष्य किया है, ‘शब्द कृष्णा सोबती की ताक़त रहे हैं और उनके विरोध और औज़ार भी...केवल रचनात्मक लेखन में नहीं, बल्कि पत्र तक प्रेषित करने के मामले में वह शब्दों की ताक़त और उनके चयन को लेकर सजग रही हैं।’
कृष्णा सोबती की विलक्षण उपस्थिति हिन्दी समाज को उचित गर्व का कारण देती है।
निरंजन देव ने इस विलक्षण उपस्थिति के सभी पहलुओं को परखने की कोशिश की है। आरम्भिक कहानियों से लेकर कृष्णा सोबती के हशमत अवतार तक पर, ‘बुद्ध का कमंडल’ तक पर निरंजन ने संवेदनशील आलोचनात्मकता से सम्पन्न विचार किया है। यह विचार कृष्णा सोबती के लेखकीय विकास का प्रामाणिक चित्र प्रस्तुत करने के साथ ही, उनके साहित्यिक-सांस्कृतिक सरोकारों का विश्वसनीय लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है।
कृष्णा सोबती के समग्र रचनात्मक अवदान पर केन्द्रित मुकम्मल किताब, बल्कि किताबों की ज़रूरत बनी हुई है, निरंजन देव की ‘शब्द परस्पर’ इस ज़रूरत को पूरी करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। मुझे विश्वास है कि कृष्णा सोबती के पाठकों के बीच यह एक ज़रूरी किताब मानी जाएगी।
Muslim Navjagran Aur Akbar Allahabadi Ka 'Gandhinama'
- Author Name:
Virendra Kumar Baranwal
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी में सम्भवत: यह पहली किताब है जिसमें अकबर इलाहाबादी के ‘गांधीनामा’ की पृष्ठभूमि में मुस्लिम नवजागरण, उसके विविध पक्षों तथा उसमें योगदान देनेवाले प्रमुख उन्नायकों के अवदान के बारे में इतनी बारीक चर्चा की गई है। इसमें शाह वली उल्लाह से लेकर मौलाना आज़ाद तक जैसे विख्यात युगपुरुषों के अवदान पर विचार तो किया ही गया है, इसके अलावा दो ऐसे विचारकों के योगदान पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है जिनके सम्बन्ध में बहुत कम लोग जानते हैं। मिर्ज़ा अबू तालिब और मौलवी मुमताज़ अली दो ऐसे ही नाम हैं। मिर्ज़ा अबू तालिब को मुस्लिम जगत में आधुनिकता की पहली आहट निरूपित किया गया है और मौलवी मुमताज़ अली को पहले मुस्लिम नारीवादी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
हिन्दू नवजागरण के प्रवर्तक राजा राममोहन राय और मुस्लिम नवजागरण के उन्नायक सर सैयद अहमद ख़ाँ के नेतृत्व वाली अलग-अलग ये दोनों धाराएँ बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में महात्मा गांधी पर आकर एक बार एक हो जाती हैं। अकबर इलाहाबादी का ‘गांधीनामा’ दोनों पुनर्जागरणों के मिलन-बिन्दु का काव्य है। अकबर को व्यंग्य और विनोद के कवि के रूप में ही प्राय: सीमित कर दिया जाता है, उनकी कविता का प्रबल उपनिवेश विरोधी स्वर अकसर रेखांकित नहीं हो पाता। दरअसल गांधी जी की तरह वह भी पश्चिमी सभ्यता के अन्धाधुन्ध नक़ल और मशीनों के ख़िलाफ़ थे। इस तरह गांधी और अकबर के विचारों में अद्भुत समानता है। ‘गांधीनामा’ में यह स्वर बहुत अच्छी तरह से मुखर है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...