Chandrashekhar Azad : Mithak Banam yatharth
Author:
Pratap GopendraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 440
₹
550
Available
असहयोग आन्दोलन के स्थगन से निराश युवा गुप्त संगठनों से जुड़कर अपनी विचारधारा एवं कार्यक्रमों के द्वारा ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने लगे। इन संगठनों में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ यानी एच.एस.आर.ए. का स्थान सर्वोपरि है और उतना ही विशिष्ट है— एच.एस.आर.ए. के शीर्षस्थ नेता अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का स्थान। मिथकों के ढेर में दबी क्रान्तिकारी विचारधारा भारत के आधुनिक इतिहास लेखन में जितनी दुर्बोध बनी हुई है, उतना ही अज्ञात है आज़ाद का जीवन। सुदूर भाबरा के जंगलों में भील समुदाय के बीच पला-बढ़ा सामान्य शिक्षा-दीक्षा और साधारण शक्ल-ओ-सूरत का एक निर्धन बालक, काशी आकर कैसे एक प्रचण्ड राष्ट्रभक्त में विकसित हुआ और अन्तत: अपनी आहुति देकर राष्ट्र का अभिमान बन गया, इसे समझे बिना स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को पूर्णत: नहीं समझा जा सकता।</p>
<p>यह कृति विश्वसनीय एवं प्राथमिक अध्ययन स्रोतों के गहन विश्लेषण के आधार पर चन्द्रशेखर आज़ाद के जीवन को और सम्पूर्ण क्रान्तिकारी विचारधारा को मिथकों से अलग कर ऐतिहासिक सन्दर्भों में समझने का एक विनम्र प्रयास है।
ISBN: 9788119133970
Pages: 528
Avg Reading Time: 18 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन वस्तुत: आम सहमतियों और व्यापक संयुक्त मोर्चों एवं सम्मिलित जन-आन्दोलन को लेकर राजनीतिशास्त्र की दुनिया में एक ‘नई गतिकी’ को निर्मित करता है, यह विश्व इतिहास में एक नई कड़ी है।
गांधी विमर्श तो न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में बड़े दमख़म के साथ चल रहा है, पर जवाहरलाल के बारे में इस दौर में कुछ ही पुस्तकें बाज़ार में आ रही हैं, गांधी-नेहरू साझा विमर्श एक देर से ही सही लेकिन निहायत ही मौज़ूँ सिलसिला है।
वैश्वीकरण के आक्रामक दौर में नेहरू जो एक स्वतंत्र वैकल्पिक अर्थतंत्र और राज्य सत्ता के स्थपति थे, उन्हें भुला देना अस्वाभाविक नहीं लगता है। इस दौर में मौजूदा राज्य सत्ता से लेकर प्रमुख विपक्ष तक ने वैश्वीकरण और उदारीकरण को स्वीकार कर लिया है। साम्प्रदायिकता की तस्वीर में भी 1992 और 2002 के बाद शताब्दियों से चल रही मुश्तरका संस्कृति में दीमक लग गई है। गांधी को तो वैश्वीकरण के स्टीमरोलर ने बेरहमी से ज़मींदोज़ कर दिया है। ऐसे दौर में गांधी-नेहरू के ऐतिहासिक साझा और उनके कृतित्व पर पुन: रोशनी पड़नी चाहिए।
प्रस्तुत पुस्तक दो महान स्वप्नद्रष्टाओं की यथार्थसम्मत विचारधारा को सप्रमाण रेखांकित करती है।
Uttar Taimoorkaleen Bharat : Vol. 2
- Author Name:
Saiyad Athar Abbas Rizvi
- Book Type:

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Description:
इस पुस्तक में 1399 से 1526 ई. तक के देहली के सुल्तानों के इतिहास से सम्बन्धित समस्त प्रमुख समकालीन एवं बाद के फ़ारसी के ऐतिहासिक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। पहला भाग देहली के सुल्तानों के राज्य से सम्बन्धित है और दूसरा भाग उन प्रान्तीय राज्यों से जिनका प्रादुर्भाव फ़ीरोज़ तुग़लक़ की मृत्यु के उपरान्त ही धीरे-धीरे होने लगा था और जो तैमूर के आक्रमण के उपरान्त पूर्णतः स्वतंत्र हो गए।
सैयद वंश के इतिहास से सम्बन्धित यहया बिन अहमद बिन अब्दुल्लाह सिहरिन्दी की ‘तारीख़े मुबारकशाही’ एवं ख़्वाजा निज़ामुद्दीन अहमद की ‘तबक़ाते अक़बरी’ भाग-1 के उद्धरणों का अनुवाद किया गया है। दूसरे भाग में अफ़ग़ानों के सुल्तानों के इतिहास के अनुवाद सम्मिलित किए गए हैं। इनमें शेख़ रिज़्कुल्लाह मुश्ताक़ी की ‘वाक़ेआते मुश्ताक़ी’, ख़्वाजा निज़ामुद्दीन अहमद की ‘तबक़ाते अकबरी’, अब्दुल्लाह की ‘तारीख़े दाऊदी’, अहमद यादगार की ‘तारीख़े शाही’ एवं मुहम्मद कबीर बिन शेख़ इस्माइल की ‘अफ़सानए-शाहाने हिन्द’ के उद्धरण शामिल हैं।
भाग-2 के इतिहासकारों में ख़्वाजा निज़ामुद्दीन अहमद के अतिरिक्त सभी अफ़ग़ान इतिहासकार हैं। अहमद यादगार का इतिहास 1930 ई. में प्रकाशित हुआ था और ‘तारीख़े दाऊदी’ 1954 ई. में। इनके अतिरिक्त ‘वाक़ेआते मुश्ताक़ी’ और ‘अफ़सानए-शाहाने हिन्द’ अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं और इनकी हस्तलिखित प्रतियाँ भी भारतवर्ष में उपलब्ध नहीं हैं, अतः आवश्यक अंशों का अनुवाद करते समय तत्सम्बन्धी पूरे-पूरे इतिहासों का अनुवाद कर दिया गया है। इस कारण एक ही घटना की कई बार पुनरावृत्ति अनुपेक्षणीय हो गई है। इतिहासकारों तथा उनकी कृतियों का परिचय अनुवाद के प्रारम्भ में प्रस्तुत किया गया है।
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