
Wah Phir Nahin Aai
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
96
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
192 mins
Book Description
"लेकिन शायद हम झूठ से अलग रह ही नहीं सकते। हमारा सामाजिक जीवन भी तो एक तरह का व्यापार है—आर्थिक न भी सही, भावनात्मक व्यापार, यद्यपि यह अर्थ हमारे अस्तित्व से ऐसे बुरी तरह चिपक गया है कि हम इससे भावना को मुक्त रख ही नहीं पाते। इस व्यापार में माल नहीं बेचा जाता या ख़रीदा जाता, बल्कि भावना का क्रय-विक्रय होता है। हमारा समस्त जीवन ही लेन-देन का है, और इसलिए झूठ की इस परम्परा को तोड़ सकने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है। सामाजिक शिष्टाचार निभाने के लिए मैं निकल पड़ा। और कोई काम भी तो नहीं था मेरे पास।" नारी सनातन काल से पुरुष की लालसा का केन्द्र है। जीवन के संघर्षों में फँसकर अभागी नारी को संसार के प्रत्येक छल-कपट का सहारा लेना पड़ता है। किन्तु आधुनिक जीवन-संघर्षों की विषमता में ममता का सम्बल जीवन-नौका के लिए महान आशा है। भगवती बाबू का यह उपन्यास आकार में छोटा होकर भी अपनी प्रभावशीलता में व्यापक है, जिसकी गूँज देर तक अपने भीतर और बाहर महसूस की जा सकती है।