Nirman-Purush Dr. Ambedkar Ki Samvidhan-Yatra
Author:
Anoop BaranwalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 260
₹
325
Available
आज़ादी के समय देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भावी शासन-व्यवस्था में सामन्तवाद को प्रभावी होने से बचाना था। समाज में व्याप्त सामन्तवाद के ख़िलाफ़ लड़ते रहनेवाले बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा संविधान-निर्माण के दौरान इस चुनौती से किस तरह निपटा गया? इसका जवाब खोजने के साथ संविधान में ‘देश के नाम’, ‘राज्यक्षेत्र’, ‘मूल अधिकार’, ‘नीति-निर्देशक सिद्धान्त’ से सम्बन्धित अनुच्छेद 1 से 51 तक के प्रावधानों को अन्तिम रूप देने के लिए संविधान सभा में हुई बहस को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।</p>
<p>बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की जीवनी में रूचि रखनेवाले देशवासियों के समक्ष आज़ादी के आन्दोलन में डॉ. अम्बेडकर की भूमिका को सन्देह के घेरे में रख तरह-तरह के सवाल किए जाते हैं, इस पुस्तक में इसका भी जवाब खोजने का प्रयास किया गया है।</p>
<p>देश की ग़ुलामी के लिए उत्तरदायी रही भारतीय समाज की सामन्तवादी प्रवृत्ति को समाप्त करने एवं देश को आन्तरिक ग़ुलामी से मुक्त कराने में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा किए गए संघर्ष और उनके विचार का विश्लेषणात्मक अध्ययन इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।</p>
<p>बिलकुल विपरीत परिस्थिति में भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश के लिए सर्वमान्य संविधान के निर्माण में डॉ. अम्बेडकर एवं अन्य संविधान निर्माताओं की भूमिका का भी विश्लेषणात्मक अध्ययन इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।
ISBN: 9789352211968
Pages: 329
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘जे.एन.यू. में नामवर सिंह’ दरअसल स्वयं जे.एन.यू. वासियों की अपनी गाथा है—अपने को उस स्वप्नदर्शी विश्वविद्यालय से जोड़ने की—उसे निरन्तर सुरक्षित रखने और बनाते जाने की अपनी दास्तान...
इसमें पुरानी यादें भी हैं, कसक भी है और ख़ुशी भी। ख़ुशी उस यूनिवर्सिटी से जुड़ने की जो न केवल अध्ययन—अध्यापन और शोध में निरन्तर नए प्रयोग कर रही थी, बल्कि जो अपनी
ईंट-कंकरीट की इमारतों के प्रकृति के साथ संयोजन में भी अनूठापन रच रही थी।
जिस समय जे.एन.यू. की इमारतें अरावली की पहाड़ियों पर उभर रही थीं, उस समय यूँ तो पर्यावरण की रक्षा पर इतना बल न था—पर वह यूनिवर्सिटी ही क्या जो भविष्योन्मुखी न हो—जो परम्परा से जुड़ती और उससे संवाद न करती हो—जो सर्वहितकारी और जीवन्त न हो...
तो जे.एन.यू. स्मृति भी है और प्रकृति भी...
Zinda Hone ka Sabut
- Author Name:
Jabir Husain
- Book Type:

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Description:
लोग कहते हैं, ‘सूरज को अँधेरी खाई में गिरते देखना अशुभ है।’ ‘अँधेरी खाई में कहाँ गिरता है सूरज। वह तो बस एक करवट लेकर हरे–भरे खेतों में उगी फ़सलों के बीच छिप जाता है, कुछ घंटों के बाद दोबारा अपना सफ़र शुरू करने के लिए। एक बार, आसमान पर छाये बादलों के एक आवारा टुकड़े ने खेतों की गोद में गिरते सूरज को पूरी तरह अपनी मुट्ठियों में बन्द कर लिया था। हम
दोनों कुछ लम्हों के लिए काँप गए थे। हमारे शहर का सूरज डूबने के पहले ही काले धब्बों की ओट में छिप गया था। मुझे नहीं मालूम, उस दिन और क्या हुआ था, पर मेरी और तुम्हारी आँखों ने कुछ लम्हों के बाद ही देखा कि सूरज आवारा बादलों की मुट्ठी से निकलकर दोबारा आसमान और ज़मीन जहाँ मिलते हैं, वहाँ दूर–दूर तक फैल गया और इसकी लाल–सुर्ख किरणों ने पूरे क्षितिज को अपने विशाल दायरे में समेट लिया।
जिन पाठकों ने जाबिर हुसेन की पिछली डायरियाँ पढ़ी हैं, उन्हें इस संकलन का नया कथा–शिल्प ज़रूर पसन्द आएगा।
Atmakatha : Rajendra Prasad
- Author Name:
Rajendra Prasad
- Book Type:

- Description: Autobiography of Rajendra Prasad
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