Kuchh Yaden, Kuchh Baten
Author:
AmarkantPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
इस पुस्तक में हिन्दी के शीर्षस्थ कथाकार अमरकान्त के संस्मरणों, आलेखों तथा साक्षात्कारों को संकलित किया गया है जो अत्यन्त दिलचस्प एवं महत्त्वपूर्ण हैं। इन रचनाओं में एक बड़े लेखक की परिवेश तथा सृजन-सम्बन्धी परिस्थितियों और संघर्ष-कथा के साथ, उन अग्रजों एवं साथी लेखकों को आदर और आत्मीयता के साथ याद किया गया है जिनसे उन्हें प्रेरणा, प्रोत्साहन और स्नेह मिला।</p>
<p>यहाँ प्रगतिशील आन्दोलन तथा नई कहानी आन्दोलन की वे घटनाएँ, बहसें और विवाद भी हैं, जिनसे कभी साहित्य जगत् हिल गया था। परन्तु अमरकान्त जी ने इन आन्दोलनों की विशेषताओं और उपलब्धियों के साथ, उनके अन्तर्विरोधों तथा दुर्बलताओं का तर्क-सम्मत विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है और परिवर्तित समय में कहानी तथा प्रगतिशील लेखन की नई भूमिका को भी रेखांकित किया है।</p>
<p>इन रचनाओं के बीच कहानी लेखन की ओर प्रेरित करनेवाले अमरकान्त जी के शिक्षक बाबू राजेश प्रसाद तथा डॉ. रामविलास शर्मा हैं। इनके साथ भैरवप्रसाद गुप्त, प्रकाशचन्द्र गुप्त, शमशेर, मोहन राकेश, अमृत राय, रांगेय राघव, नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, शेखर जोशी आदि के अनूठे संस्मरण भी हैं। निश्चय ही प्रत्येक हिन्दी लेखक तथा साहित्य-प्रेमी पाठक के लिए यह जानना ज़रूरी है कि साहित्य-इतिहास के इन प्रतिष्ठित रचनाकारों के सम्बन्ध में अमरकान्त क्या सोचते हैं।</p>
<p>मूल्यांकन की नई दृष्टि, हिन्दी के कथा-परिदृश्य पर डाली गई रोशनी और जीवन्त कथा-शैली के कारण यह संकलन जहाँ साहित्यिक कृति के रूप में उत्कृष्ट है, वहीं ऐतिहासिक दस्तावेज़ की तरह मूल्यवान भी।
ISBN: 9788126709502
Pages: 147
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘मंज़िल अब भी दूर’ मुम्बई के कर्मठ साम्यवादी नेता और ट्रेड यूनियन आन्दोलन के अगुआ व्यक्तित्व—गंगाधर चिटणीस द्वारा लिखित मराठी पुस्तक ‘मंज़िल अजून दूरच!’ का स्वतंत्र हिन्दी अनुवाद है। स्व. कॉ. चिटणीस ने अपने 50-60 वर्षों के अनुभवों के आधार पर स्थिति का आकलन कर भारत के ट्रेड यूनियन आन्दोलन में एटक, मुम्बई गिरणी कामगार यूनियन और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के योगदान, कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा समय-समय पर की गई ग़लतियों, राजनीति का आकलन करने में हुई भूलों, कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन और इन सबके कारण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, एटक, वामपंथी आन्दोलन, ट्रेड यूनियन आन्दोलन और भारतीय राजनीति पर हुए विपरीत प्रभावों; पार्टी द्वारा आपातकाल को दिए गए समर्थन, उसके पार्टी पर हुए विपरीत प्रभावों, मुम्बई की मिलों में हुई डॉ. दत्ता सामन्त की ऐतिहासिक असफल हड़ताल आदि तमाम घटनाओं का निष्पक्ष विवेचन, समालोचन व आकलन किया है। आत्मकथा के रूप में लिखी इस पुस्तक में लेखक ने अपने स्वयं के पिछले साठ वर्षों के अनुभवों के आधार पर समय-समय पर होनेवाली घटनाओं जिसमें भारत में ट्रेड यूनियन आन्दोलन, कम्युनिस्ट आन्दोलन, राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय घटनाएँ, विशेषकर मुम्बई के साथ-साथ भारत के एक समय के वैभवशाली टेक्सटाइल उद्योग व उसके श्रम आन्दोलन, स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक की सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक स्थिति का एक ईमानदार लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। कॉ. चिटणीस पक्के आशावादी थे। ‘मंज़िल’ दूर होते हुए भी उन्हें पक्का विश्वास था कि एक न एक दिन इस देश का संघर्षरत अवाम मंज़िल पर ज़रूर पहुँचेगा। समाज की भलाई के लिए उसे पहुँचना ही होगा। यह किताब इन सारी घटनाओं का प्रामाणिक दस्तावेज़ है जिसे प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह कम्युनिस्ट विचारधारा में विश्वास रखता हो या विरोधी हो, ज़रूर पढ़ना चाहिए।
Anasakt Aastik : Jainendra Kumar Ki Jeewani
- Author Name:
Jyotish Joshi
- Book Type:

- Description: जैनेन्द्र कुमार हिन्दी के केवल मूर्धन्य कथाकार ही नहीं है अपितु प्रखर राष्ट्रवादी चिन्तक-विचारक भी है। वे हिन्दी भाषा में सोचने-विचारने वाले अन्यतम व्यावहारिक भारतीय दार्शनिक भी हैं तो भारत सहित वैश्विक राजनीति पर गहरी दृष्टि रखनेवाले प्रबुद्ध राजनैतिक विशेषज्ञ भी। वे स्वाधीनता आन्दोलन के तपोनिष्ठ सत्याग्रही भी रहे जिन्होंने स्वाधीनता मिलने के बाद भी अपने समग्र जीवन और लेखन क्रो सत्याग्रह बनाया। उन्होंने जो लिखा और जिया वह हमेशा एक नई राह की खोज का करण बना। कहानी और उपन्यास को नई भाषा, शिल्प तथा अधुनातन प्रविधियों में ढालकर जैनेन्द्र ने उन विषयों को प्रमुखता दी, जिन पर विचार करने का साहस पहले न किया जा सका। इसमें प्रमुखता से वह स्त्री उभरी, जिसे सदियों से उत्पीड़ित किया जाता रहा है। अपने दर्शन में आत्म को प्रतिष्ठित करनेवाले, विचारों में भारतीय-राष्ट्र-राज्य को अधिकाधिक सर्वोदय में देखनेवाले तथा जीवन में एक गृहस्थ संन्यासी का आदर्श प्रस्तुत करनेवाले जैनेन्द्र कुमार का महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, विनोबा भावे, राधाकृष्णन, जयप्रकाश नारायण, इन्दिरा गाँधी आदि राष्ट्रीय नेताओं से सीधा संवाद था। पर यह संवाद राष्ट्रीय हितों के लिए था, निजी स्वार्थों के लिए नहीं। ऐसे जैनेन्द्र कुमार के विराट व्यक्तित्व को उनकी जीवनी ‘अनासक्त आस्तिक' में देखने और उनके क्रमिक विकास को परखने का एक बड़ा प्रयत्न है, जो निश्चय ही उन्हें नए सिरे से समझने में सहायक होगा। कहना न होगा कि जैनेन्द्र साहित्य के मर्मज्ञ आलोचक ज्योतिष जोशी द्वारा मनोयोग से लिखी गई यह जीवनी पठनीय तो है ही, संग्रहणीय भी है।
Ajaatshatru Atalji
- Author Name:
Bharat Bhushan
- Book Type:

- Description: "• शांति के पक्षधर होने के बावजूद प्रधानमंत्री के रूप में अटलजी ने परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को अहम संदेश दिया था। • ठंड के मौसम में बस लेकर लाहौर पहुँचकर अटलजी ने भारत-पाक रिश्तों में एक नई ऊर्जा पैदा की थी। • आज भले ही अटलजी भौतिक रूप में हमारे मध्य न हों, लेकिन अपने ओजस्वी, तेजस्वी, यशस्वी विचारों के कारण वे सदैव हम भारतीयों के हृदय में रहेंगे। • अपने राजनीतिक विरोधियों को भी अपना बना लेने में अटलजी माहिर थे। सबको साथ लेकर चलने की अद्भुत कला उनमें थी। • अपने विचारों की वजह से अटलजी देश ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय थे। • अटलजी अपनी बोलने की कला से गंभीर माहौल को भी खुशनुमा बना देते थे। • संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में दिए गए भाषण से अटलजी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग ही छवि बनी, जिसकी उनके राजनीतिक विरोधियों ने भी प्रशंसा की। अपनी मर्मस्पर्शी लेखनी, ओजस्वी वक्तृत्वकला, संवेदनशील कविता, राजनीतिक दृढ़ता, अप्रतिम राष्ट्रनिष्ठा और प्रेरणाप्रद पारस्परिकता केकारण ही अटलजी बने अजातशत्रु। "
Mahamari Ka Rojnamacha
- Author Name:
Sorit Gupto
- Book Type:

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Description:
अच्छे वक्त के बारे में तो नहीं जानता पर हर बुरे वक्त का अपना एक खास चेहरा होता है। कभी वह दंगों की शक्ल में आता है तो कभी वह अकाल, बाढ़ या युद्ध की शक्ल में। सदियों में एक बार यह महामारी की शक्ल में भी आता है। 1919 में एक महामारी आई थी—स्पेनिश फ्लू। मेरे दादाजी और उनके साथ के लोगों ने एक महामारी को जीया। उसके बाद हम थे जिन्होंने कोविड को जीया।
एक महामारी हजारों, लाखों लोगों को अपने साथ ले जाती है। इस बार भी कुछ वैसा ही होना था। वैसा हुआ भी पर इस बार की महामारी अब तक की दूसरी महामारियों से अलग थी। इस बार महामारी से ज्यादा परेशानी लोगों को उस लॉकडाउन के चलते हुई जिसे अफरातफरी में लागू किया गया।
महामारियाँ हमेशा से पूरी आबादी को दो हिस्सों में बाँट देती हैं। एक हिस्सा उन लोगों का जो इस महामारी का शिकार बने। जो आज हमारे बीच नहीं हैं। दूसरा हिस्सा हमारा-आपका जो इस महामारी में बच गए, जिन्दा रहे। महामारी में जो हमें छोड़ गए, उन्होंने हम जिन्दा बच गए लोगों पर एक जिम्मेदारी डाली कि हम आने वाली पीढ़ियों को लॉकडाउन और महामारी से उनकी लड़ाई की कहानियाँ बताएँ।
यह किताब बस उसी जिम्मेदारी को पूरा करने की एक छोटी-सी कोशिश भर है।
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