Khushdesh Ka Safar
Author:
Pallavi TrivediPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Travelogues0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
हर इनसान के भीतर एक यायावर सोया होता है। लेकिन कम ही लोग होते हैं जो अपने भीतर सोये हुए यायावर को जगा पाते हैं; और उसकी उँगली पकड़कर घर से निकल पड़ते हैं। ज़्यादातर लोग ज़िन्दगी की ख़ुशहाली को बनी-बनाई हदों के भीतर तलाश करते हैं। अपने सुरक्षित दायरों के बाहर क़दम रखने से वे हिचकते हैं। इस तरह वे ज़िन्दगी के असल एडवेंचर का लुत्फ़ नहीं ले पाते। उनके विपरीत कुछ लोगों को बनी-बनाई हदें, दूसरों की बनाई लीकें क़तई मंजूर नहीं होतीं। वे न केवल अपनी हद ख़ुद तय करते हैं बल्कि उसको बार-बार तोड़ते हैं।</p>
<p>इस तरह के ‘एडवेंचर’ का माद्दा न हो तो यायावर होना मुश्किल है। हमारी ख़ुशक़िस्मती कि पल्लवी त्रिवेदी में यह माद्दा है। वह अपने भीतर के यायावर को सोने नहीं देतीं और हर-हमेशा नई-नई जगहों तक, अदेखे-अजाने प्रदेशों तक जाती रहती हैं। ‘ख़ुशदेश का सफ़र’ उनकी इसी अनूठी यायावरी का दिलकश दस्तावेज़ है। कोई और होता तो वह भूटान के लिए सीधे फ़्लाइट बुक करता, समय बचाता और पहले से टैक्सी और होटल सुनिश्चित कर इस ख़ुशदेश की दर्शनीय जगहों को अपना चेहरा दिखाकर लौट जाता—यह उन अनगिनत यात्राओं में से एक होती जिनमें दूसरों को बताने के लिए कुछ नहीं होता। पल्लवी ने पर्यटन की इस पुरानी लीक को पकड़ने के बजाय भूटान के अपने सैर-सफ़र के लिए जो रास्ता पकड़ा, उसका एक-एक क़दम उन्होंने ख़ुद गढ़ा है। यही वजह है कि इस किताब में दर्ज उसका वृत्तान्त न केवल किसी रोचक उपन्यास जैसा पठनीय बन गया है, बल्कि हर उस शख़्स के लिए एक ज़रूरत भी जो अपने भीतर सोये यायावर को जगाने की तरकीब ढूँढ़ रहे हैं।</p>
<p>—यूनुस खान
ISBN: 9789393768551
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
अजय सोडानी जानते हैं कि देखे हुए को दिखाया कैसे जाए। जैसे कि सफ़र के दौरान अगर एक कैमरा उनके हाथ में है तो एक भीतर भी है जो बाहर के चित्रों को शब्दों की शक्ल में कहीं अंकित करता चलता है। यही कारण है कि उनके यात्रा-वृत्तान्त, ख़ासकर जब वे हिमालय के बारे में लिखते हैं, सिर्फ़ हमारा ज्ञान नहीं बढ़ाते, अनुभूति की सतह पर हमें एक गहरा अनुभव देते हैं। एक समग्र यात्रा-अनुभव जिसमें भूगोल, इतिहास, परम्परा, लोक, समकालीन समाज, साहित्य, आत्मचिंतन, प्रकृति-चिन्ता, भविष्य-दृष्टि तथा रोमांच, सब एकसाथ शामिल होता है।
हिमालय को वे सागर, नदी, देवता, पशु आदि चराचर की तरह अपना और हम सबका सहोदर कहते हैं। उसकी विराटता के सम्मुख हमारे अस्तित्व की गौणता का एक विचित्र, सजीव लेकिन लोमहर्षक समीकरण बनता है जब उनके जैसा कोई हिमालय प्रेमी हमें गिरिराज के रहस्यों के सफ़र पर लेकर निकलता है।
‘दर्रा दर्रा हिमालय’ और ‘दरकते हिमालय पर दर-ब-दर’ के बाद हिमालय पर यह उनकी तीसरी किताब है। हिमालय जो बकौल उनके, पहली ही निगाह में देखने वाले के रक्त में घुलने लगता है, उसके अस्तित्व-बोध का अंश हो जाता है। उनके इन सफ़रनामों को पढ़कर भी हमारे साथ कुछ ऐसा ही घटित होता है।
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