
Doosari Kahani
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
176
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
352 mins
Book Description
कलि-कथा: वाया बाइपास (1998) उपन्यास के लिए विशेष रूप से चर्चित तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित युवा कथाकार अलका सरावगी की कहानियों का दूसरा संग्रह दूसरी कहानी समकालीन कहानी के प्रचलित ढर्रे से अलग जाकर कहानी के लिए एक नई संभावना का संकेत है। जिस तरह कहानी की तलाश में (1996) शीर्षक से प्रकाशित पहले कहानी-संग्रह में शामिल इसी नाम की कहानी कहानी को तलाश भी बनाती थी और इकहरे से अधिक गहरे गुमनाम प्रसंगों में जाने की हिकमतों का आभास कराती थी, उसी तरह दूसरी कहानी संग्रह की इसी नाम की कहानी कहानी को एक और तरह की कहानी बनाने की कोशिश है।</p> <p>दूसरी कहानी संग्रह की कहानियाँ यथार्थ को तथ्य-सीमित करने की रूढ़ि को ध्वस्त करती हैं। घटनाओं का बोझिल आडंबर छोड़कर वे कहानी विधा की नई मुक्ति का ऐसा संकेत देती हैं कि हम कहानी को गद्य-कथा या कथा-निबंध की तरह पढ़ सकें। वे तथाकथित यथार्थवादी कहानी के ढाँचे को विचलित कर मानव- व्यवहार और प्रकृति के आधे-अधूरे प्रारूप या पाठ की तरह दिख सकती हैं। इसी अधूरेपन, इसी अनहोनी में अलका सरावगी की कहानियों का अर्थ छिपा है।</p> <p>दूसरी कहानी संग्रह की कहानियाँ (‘पार्टनर’, ‘एक पेड़ की मौत’, ‘दूसरे किष्ले में औरत’, ‘यह रहगुज़र न होती’, ‘रिपन स्ट्रीटेर परवीन अख्तर’, ‘कनफ़ेशन’) संकेत हैं कि शायद जीवन-पूर्णता या सार्थकता की संभावना इसी अपूर्णता या अधूरेपन में है। देखने की चीज़ यह है कि इस कथा-कल्पना में क्रीड़ा-वृत्ति या विनोद-वृत्ति स्थगित नहीं है, पर वह प्रायः एक तरह के जीवन विषाद या अवसाद का ही मार्मिक प्रत्यक्ष है। इस अवसाद को महान बनाने की भावुकता से मुक्त अलका सरावगी का कथा-मार्ग साधारण या मामूली पर भरोसा टिकाता है जो फिर इस ओर इशारा है कि साधारण में ही छिपा है ग़ैर-साधारण या असाधारण का मर्म।</p> <p>–परमानंद श्रीवास्तव