Satya-Vrat Katha

Satya-Vrat Katha

Language:

Hindi

Pages:

180

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

360 mins

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Book Description

यह प्रबन्धन का युग है। हर क्षेत्र में हर बात में प्रबन्धन है। जीवन में सफलता अर्जित करने के जितने सूत्र हैं, उनमें से एक प्रमुख है सत्य और सत्य का भी अपना प्रबन्धन होता है। वैसे तो ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ बहुत प्राचीन है लेकिन इसमें प्रबन्धन के जो सूत्र आए हैं, वे बिलकुल नवीन हैं, आज के लिए उपयोगी हैं और हर क्षेत्र में सफलता को सुनिश्चित करते हैं। इस कथा में पाँच अध्याय हैं और प्रत्येक में प्रबन्धन के गूढ़ सूत्र हैं। पहले अध्याय में सेवा प्रबन्धन, दूसरे में सम्पत्ति प्रबन्धन, तीसरे में सन्तान प्रबन्धन, चौथे में संघर्ष प्रबन्धन और पाँचवें में संस्कार प्रबन्धन को देखा जा सकता है।</p> <p>हम देख रहे हैं कि वर्षों से अनेक परिवारों में, कई स्थानों पर ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ हो रही है। हमने ही इसको एक पारम्परिक, पारिवारिक और सामान्य-सा धार्मिक आयोजन बना दिया है। या तो हम स्वयं कथा करते हैं या किसी विद्वान् से करवाते हैं। पंडित जी आते हैं, संस्कृत या हिन्दी में कथा करते हैं। घर की महिलाएँ रसोईघर में प्रसाद बनाने में व्यस्त रहती हैं। बच्चे इस दिन जितना हो सके उपद्रव कर लेते हैं। यजमान या तो फ़ोन सुनेंगे या कौन आया, कौन नहीं आया यह सब देखने में ही उनका समय बीत जाता है। कथा आरम्भ होती है, कथा समाप्त हो जाती है। हमने इसको एकत्र साधारण-सा आयोजन बना दिया है। यह कथा ऐसी सामान्य कथा नहीं है। इस कथा के पीछे भाव यह है कि जीवन में ‘सत्य’ उतरे। इस कथा में दो प्रमुख विषय हैं। एक है संकल्प की विस्मृति और दूसरा है प्रसाद का अपमान। संकल्प की विस्मृति और प्रसाद का अपमान ये दो थीम हैं, जिनके आसपास यह कथा चलती है। संकल्प, जीवन में सत्य उतारने का। इसका प्रसाद क्या है? क्या पंजीरी या शुद्ध घी में बना हुआ हलवा...? वास्तव में ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ का प्रसाद है ‘सत्य’।</p> <p>तो जीवन में जो भी सत्य को विस्मृत करेगा, जब-जब भी उसको भूल जाएगा, तब-तब परेशानी में पड़ेगा। जीवन में जब-जब भी हम सत्य के प्रसाद का अपमान करेंगे यानी सत्य का अपमान करेंगे, तब-तब हम अपने-आप को संकट में पाएँगे। इस कथा में जो प्रसंग आए हैं यदि उनके भाव को ठीक से समझा जाए तो स्पष्ट सन्देश निकलकर आता है कि यह सत्य के अन्वेषण की कथा है। इसमें विशेषता है कि सत्य के साथ नारायण जोड़े गए हैं। सत्य को नारायण का भगवान् का टेका, सहारा, आधार और बल दिया गया है।

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