
Double Helix
Author:
James W. DouglassPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Sciencea0 Reviews
Price: ₹ 60
₹
75
Unavailable
डी.एन.ए. मूलभूत आनुवंशिक पदार्थ है और बहुत थोड़े से लोगों को साठ साल पहले यह भान हुआ कि डी.एन.ए. ही जीवन की कुंजी है। जेम्स डी. वॉट्सन उन्हीं में से एक थे जिन्होंने अपने सहयोगी फ्रांसिस क्रिक के साथ जीवन के इस अनूठे रहस्य की संरचना को खोजा और इसके साथ ही बीसवीं सदी के विज्ञान को नए पंख लगा दिए। इस खोज को बीसवीं सदी की दो सबसे महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक घटनाओं में से एक माना जाता है। इस खोज ने डी.एन.ए. पर शोध का जो तूफ़ान चलाया था, वह आज तक थमा नहीं है। बात फिर चाहे जीन्स के पशुओं में परिस्थापन की हो या फिर फ़सलों की प्रकृति बदलने की, आप जीन्स या डी.एन.ए. से बच नहीं सकते।</p>
<p>लेकिन यह शोध अपने साथ जो विवाद लाया था, वह भी आज तक ज़िन्दा है। क्रिक और वॉट्सन को कुछ रसायन विज्ञान का ज्ञान था, लेकिन दोनों में से किसी ने भी अपने शोध के परिणाम तक पहुँचने के लिए कभी प्रयोगशाला-परीक्षण नहीं किए थे। इसके विपरीत उन्होंने दूसरों द्वारा किए गए शोध को आधार बनाकर सिर्फ़ मॉडल बनाए—और बात बन गई। इस क्रम में केवेंडिश की प्रयोगशाला में रोज़ालिंड फ़्रैकलिन द्वारा लिए गए एक्स-रे चित्रों की विशेष भूमिका थी। वॉट्सन ने वह मशहूर चित्र 51 बिना रोज़ालिंड फ़्रैकलिन की जानकारी के रोज़ालिंड के सहयोगी मॉरिस विल्किन्स की मदद से देख लिया था। वह चित्र स्पष्ट रूप से डी.एन.ए. की प्रकृति को दिखा रहा था। इसके बाद वॉट्सन ज़ोर-शोर से मॉडल बनाने में लग गए। लेकिन अपने शोध में उन्होंने रोज़ालिंड के उस चित्र की भूमिका को कभी नहीं स्वीकारा, न ही अपनी खोज के श्रेय में रोज़ालिंड को कोई हिस्सा दिया। बल्कि इस पुस्तक में भी उन्होंने रोज़ी के रूप में उनका नकारात्मक चित्रण किया। बाद के वर्षों में रोज़ालिंड के सहयोगियों और तमाम स्त्रीवादियों द्वारा वॉट्सन के चित्रण की भर्त्सना भी की गई।</p>
<p>यह पुस्तक बीसवीं सदी के विज्ञान साहित्य की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में गिनी जाती है। इसकी सीधी-सपाट भाषा प्रयोगशालाओं और वैज्ञानिकों के बीच के बौद्धिक सम्बन्धों की परम्परागत तसवीर को पूरी तरह खंडित करती है और दर्शाती है कि वैज्ञानिक भी मनुष्य हैं—ईर्ष्या, अभिलाषाओं और कुंठाओं से भरे मनुष्य। भारत में यह पुस्तक पहली बार 2003 में हिन्दी में प्रकाशित हुई और अपने विशेष महत्त्व के कारण आज भी पाठकों की प्रिय बनी हुई है।
ISBN: 9788126707704
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
धरती का समूचा जीवन सूर्य पर निर्भर है। इसलिए यदि यह कहा जाए कि सूर्य के बारे में जानना विश्व-जीवन को जानना है, तो ग़लत न होगा। इस नाते खगोल विज्ञान विषयक हिन्दी लेखकों में अग्रगण्य गुणाकर मुळे की यह पुस्तक न सिर्फ़ अद्यतन जानकारियों, बल्कि अपने सरल और रोचक भाषा-शिल्प की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
विद्वान लेखक ने इस कृति को ‘सूर्य और हम’, ‘सूर्य देवता’, ‘सूर्य : एक सामान्य तारा’, ‘सूर्य का परिवार’, ‘किरणों की भाषा’, ‘सूर्य की भट्ठी’, ‘सूर्य की सतह और इसका बाह्य वातावरण’, ‘पृथ्वी पर सूर्य का प्रभाव’, ‘सूर्य का जन्म और अन्त’ नामक नौ अध्यायों में बाँटा है। साथ ही परिशिष्ट में सूर्य सम्बन्धी विशिष्ट आँकड़े और तत्सम्बन्धी हिन्दी-अंग्रेज़ी पारिभाषिक शब्दावली इस पुस्तक को और अधिक उपयोगी बनाते हैं। लेखक के शब्दों को उद्धृत करें तो ‘हिन्दी में सूर्य पर यह अपनी तरह की पहली पुस्तक है।’ दरअसल पृथ्वी से सूर्य की दूरी, सूर्य के व्यास, सूर्य-सतह के क्षेत्रफल, उसके आयतन, द्रव्यमान, औसत घनत्व, घूर्णन-काल, उसकी सतह और केन्द्र के तापमान आदि खगोल भौतिकी के जटिल आँकड़े कहानी की तरह रोचक होकर हमारे सामने आते हैं, फलस्वरूप ज्ञान का एक विराट कोश सहज ही हमारे भीतर समा जाता है।
Parmanu Vigyan Ke Badhte Charan
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:
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परमाणु, जीवन का भी स्रोत हो सकता है, और विनाश का भी। मनुष्य ने उसे ऊर्जा के उत्पादन के लिए प्रयोग किया है तो बमों के रूप में इस ऊर्जा का विनाशकारी संचयन भी किया है जो एक ही बार में समूची पृथ्वी और जीव-जगत को नष्ट कर सकता है।
विज्ञान-लेखक गुणाकर मुळे की यह पुस्तक परमणु की खोज, उसके इतिहास और संभावनाओं के बारे में तथ्यपरक जानकारी देते हुए उन सवालों पर भी विचार करती है जो परमाणु के ग़ैर जिम्मेदार इस्तेमाल के सन्दर्भ में हमारी स्थायी चिन्ता बने हुए हैं। विश्व के मौजूदा हालात को देखते हुए आज यह और भी ज़रूरी हो गया है कि 'परमाणु क्या है' से लेकर 'परमाणु क्या कर सकता है' तक के सभी पहलुओं की जानकारी बतौर एक जिम्मेदार नागरिक हमारे पास हो।
यह पुस्तक यही करती है। न सिर्फ़ परमाणु, बल्कि उसकी आन्तरिक संचरना के बारे में अब तक की खोजों की विस्तृत पड़ताल करते हुए उन वैज्ञानिकों के बारे में यहाँ हमें पर्याप्त सूचनाएँ प्राप्त होती है जिन्होंने इस पर काम किया। भारत के प्राचीन ऋषि कणाद को भी मुळे जी चिन्तकों की उसी परम्परा में मानते हैं। उनका नाम ही 'कणाद' इसलिए पड़ा था कि उन्होंने सबसे पहले यह कल्पना की थी कि संसार का सब कुछ अत्यन्त छोटे-छोटे कणों से निर्मित है।
छात्रों और सामान्य पाठकों के लिए सरल और सुग्राह्य भाषा में लिखित यह पुस्तक परमाणु विज्ञान की वृहत्तर समझ प्रदान करती है।
Aakash Darshan
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:
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धरती का मानव हज़ारों सालों से आकाश के टिमटिमाते दीपों को निहारता आया है। सभी के मन में सवाल उठते हैं—आकाश में कितने तारे हैं? पृथ्वी से कितनी दूर हैं? कितने बड़े हैं? किन पदार्थों से बने हैं? ये सतत क्यों चमकते रहते हैं? तारों के बारे में इन सवालों के उत्तर आधुनिक काल में, प्रमुख रूप से 1920 ई. के बाद, खोजे गए हैं; इसलिए भारतीय भाषाओं में सहज उपलब्ध भी नहीं हैं। प्रख्यात विज्ञान-लेखक गुणाकर मुळे ने इस भारी अभाव की पूर्ति के लिए ही प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की है। आधुनिक खगोल-विज्ञान में आकाश के सभी तारों को 88 तारामंडलों में बाँटा गया है। गुणाकर मुले ने हर महीने आकाश में दिखाई देनेवाले दो-तीन प्रमुख तारामंडलों का परिचय दिया है। साथ में तारों की स्पष्ट रूप से पहचान के लिए भरपूर स्थितिचित्र भी दिए हैं। बीच-बीच में स्वतंत्र लेखों में आधुनिक खगोल-विज्ञान से सम्बन्धित विषयों की जानकारी है, जैसे—आकाशगंगा, रेडियो-खगोल-विज्ञान, सुपरनोवा, विश्व की उत्पत्ति, तारों की दूरियों का मापन आदि। तारामंडलों के परिचय के अन्तर्गत सर्वप्रथम इनसे सम्बन्धित यूनानी और भारतीय आख्यानों की जानकारी है। उसके बाद तारों की दूरियों और उनकी भौतिक स्थितियों के बारे में वैज्ञानिक सूचनाएँ हैं। ग्रन्थ में तारों से सम्बन्धित कुछ उपयोगी परिशिष्ट और तालिकाएँ भी हैं। अन्त में तारों की हिन्दी-अंग्रेज़ी नामावली और शब्दानुक्रमणिका है। संक्षेप में कहें तो ‘आकाश-दर्शन’ एक ओर हमें धरती और इस पर विद्यमान मानव-जीवन की परम लघुता का आभास कराता है, तो दूसरी ओर विश्व की अति-दूरस्थ सीमाओं का अन्वेषण करनेवाली मानव-बुद्धि की अपूर्व क्षमताओं का भी परिचय कराता है। ‘आकाश दर्शन’ वस्तुतः विश्व-दर्शन है।
Hamari Pramukh Rashtriya Prayogshalayen
- Author Name:
Gunakar Muley
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वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ आधुनिक भारत की प्रगतिशील यात्रा के पड़ाव भी हैं और उसे बल देनेवाले शक्ति–केन्द्र भी। ये प्रयोगशालाएँ देश के विद्यार्थियों को बड़े पैमाने पर शोधकार्य करने की सहूलियतें देती हैं, उन्हें अपनी प्रतिभा का उपयोग करने का अवसर प्रदान करती हैं, और इस प्रकार देश के वैज्ञानिक व आर्थिक विकास को गति देती हैं।
हमारी प्रमुख विज्ञान–संस्था ‘वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद’ (सी.एस.आई.आर.) के तहत तीस राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ और बारह सरकारी औद्योगिक संस्थाएँ कार्यरत हैं। इस पुस्तक के लेखक और वैज्ञानिक विषयों के विद्वान गुणाकर मुळे 1994–95 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की सलाहकार समिति के सदस्य थे। उसी समय उन्होंने यह विचार प्रकट किया था कि इन प्रयोगशालाओं में क्या कार्य हो रहे हैं, और उनके प्रमुख शोध–क्षेत्र क्या–क्या हैं, इस विषय में जनसाधारण को बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है, जबकि इन प्रयोगशालाओं पर देश की जनता का ही पैसा खर्च होता है। परिषद द्वारा उनके विचार का अनुमोदन मिलने पर उन्होंने देश–भर की प्रयोगशालाओं में जाकर उनके कार्य को देखा और वहाँ हो रही शोध–प्रक्रियाओं को समझा।
उनकी इन्हीं यात्राओं का नतीजा है यह पुस्तक। देश की विभिन्न प्रयोगशालाओं के इतिहास, उनके कार्यों, उपलब्धियों और सम्बन्धित विषयों की सम्पूर्ण जानकारी से लैस इस पुस्तक में गुणाकर मुळे ने अत्यन्त सरल भाषा में आधुनिक भारत के इन शक्तिपीठों का वर्णन किया है।
निस्सन्देह, यह पुस्तक देश की वैज्ञानिक प्रगति में रुचि रखनेवाले जिज्ञासु पाठकों के लिए उपादेय और रुचिकर सिद्ध होगी।
Rocket Ki Kahani
- Author Name:
Gunakar Muley
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आतिशबाज़ी में या त्योहारों के अवसरों पर जिन ‘राकेटों’ को उड़ाया जाता है, उनका आविष्कार सदियों पहले हुआ था। मनोरंजन करनेवाले इन छोटे राकेटों में और आदमी को चन्द्रमा तक पहुँचानेवाले आज के भीमकाय राकेटों में सिद्धान्तत: कोई अन्तर नहीं है। आतिशबाज़ी के ‘राकेट’ भी निर्वात में यात्रा कर सकते हैं लेकिन वह इतना शक्तिशाली नहीं होते, इसलिए कुछ मीटर ऊपर जाकर नीचे आ गिरते हैं, परन्तु अब ऐसे राकेट बन चुके हैं जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को लाँघते हुए बाह्य अन्तरिक्ष तक पहुँच जाते हैं। यही एक राकेट-यान है जो अन्तरिक्ष में यात्रा कर सकता है। इसी मानव-निर्मित यान ने अन्तरिक्ष-यात्रा के युग का उद्घाटन किया है।
राकेट-यान ने धरती के मानव को चन्द्रमा तक पहुँचाया है। निकट भविष्य में यह यान आदमी को सौर-मंडल के सभी ग्रहों तक पहुँचा देगा, और आगे यही यान आदमी को दूसरे तारों के ग्रहों तक या आकाशगंगाओं की दूरस्थ सीमाओं तक भी लेकर जा सकता है। श्री मुळे ने पी.एस.एल.वी. राकेट-यान शृंखला तक के विकास, निर्माण और उन्हें अन्तरिक्ष में छोड़े जाने की कहानी को इस पुस्तक में बड़ी ही रोचक और सरल भाषा में लिखा है और राकेट विज्ञान के तमाम सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पहलुओं से पाठकों को अवगत कराया है।
Sansar Ke Mahan Ganitagya
- Author Name:
Gunakar Muley
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वैज्ञानिकों ने भौतिक जगत् के अन्वेषण के लिए गणित का उपयोग परमावश्यक माना है। लेकिन इतने महत्त्व का विषय होते हुए भी अंग्रेज़ी तक में गणित के इतिहास और गणितज्ञों के बारे में जानकारी देनेवाले ज़्यादा ग्रन्थ नहीं हैं। जो हैं, उनमें भारत या पूर्व के अन्य देशों की गणितीय उपलब्धियों के बारे में बहुत कम सूचनाएँ मिलती हैं। इस दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक की उपादेयता स्वयंसिद्ध है। यह इसलिए और भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि हिन्दी में यह अपने विषय की सम्भवतः पहली कृति है।
इस ग्रन्थ में विद्वान लेखक ने यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड (300 ई.पू.) से लेकर जर्मन गणितज्ञ डेविड हिल्बर्ट (1862-1943) तक संसार के उनचालीस गणितज्ञों के जीवन और कृतित्व का परिचय दिया है। इनमें पाँच भारतीय गणितज्ञ भी हैं—आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, महावीराचार्य, भास्कराचार्य और रामानुजन, जो संसार के श्रेष्ठ गणितज्ञों के समुदाय में स्थान पाने के निश्चय ही अधिकारी हैं।
हम न्यूटन, गॉस, आयलर, रीमान, कान्तोर आदि महान गणितज्ञों के गणितीय सिद्धान्तों के बारे में पढ़ते हैं, उनका उपयोग करते हैं। मगर इन गणितज्ञों के संघर्षमय जीवन के बारे में हमारी जानकारी नहीं के बराबर होती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में गणितज्ञों को कालक्रमानुसार रखा गया है, इसलिए इस ग्रन्थ से प्राचीन काल से लेकर वर्तमान सदी के आरम्भ काल तक के गणित के बहुमुखी विकास की भी सिलसिलेवार जानकारी मिल जाती है। ग्रन्थ के अन्त में पारिभाषिक शब्दावली, सहायक ग्रन्थ-सूची, नामानुक्रमणिका, विषयानु- क्रमणिका आदि के छह परिशिष्ट हैं।
संसार के महान गणितज्ञों के जीवन और कृतित्व से सम्बन्धित यह प्रेरणाप्रद जानकारी इस ग्रन्थ में मिलेगी, हिन्दी में पहली बार।
Ganit Se Jhalakti Sanskriti
- Author Name:
Gunakar Muley
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गणित और संस्कृति का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध रहा है। अतीत की कौन सी संस्कृति कितनी उन्नत रही है, यह उसकी गणितीय उपलब्धियों से पहचाना जा सकता है। किसी आदिम जनजाति की भौतिक अवस्था इस बात से भी जानी जा सकती है कि वह कहाँ तक गिनती कर सकती है।
यूनानियों ने मिस्र से ज्यामितीय जानकारी हासिल करके उसका आगे विकास किया और उसे निगमनात्मक तर्कशास्त्र का इतना सुदृढ़ जामा पहनाया कि यूक्लिड (300 ई.पू.) की ज्यामिति आज भी सारी दुनिया के स्कूलों में पढ़ाई जाती है।
ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार को भारत की सबसे बड़ी देन है—शून्य सहित सिर्फ़ दस संकेतों से सारी संख्याएँ लिखने की अंक-पद्धति, जिसका आज सारी दुनिया में व्यवहार होता है।
गणित अब एक व्यापक विषय बन गया है। आज गणित के बिना किसी भी विषय का गहन अध्ययन सम्भव नहीं है। भौतिकी, रसायन, आनुवंशिकी आदि अनेक वैज्ञानिक विषयों के लिए गणित का बुनियादी महत्त्व है।
इस पुस्तक के लेखक गुणाकर मुळे आजीवन हिन्दी भाषा-भाषी समाज को वैज्ञानिक चेतना से सम्पन्न बनाने का सपना देखते रहे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रख उन्होंने अनेकानेक ग्रन्थों की रचना की। गणित और संस्कृति के अन्तर्सम्बन्धों को रेखांकित करनेवाली यह पुस्तक भी उनकी इसी साधना का फल है जिसे पाठक निश्चय ही अत्यन्त उपयोगी पाएँगे।
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