Nij Brahma Vichar
Author:
Purushottam AgarwalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
धर्म के सामान्य अनुयायी, साधारण आस्थावान् लोग हों या धर्म को हिंसक राजनीति में बदलनेवाले चतुर सुजान, धर्म के अध्येता हों या कठोर आलोचक और घोर विरोधी—अपने सारे मतभेदों के बावजूद इनमें से अधिकांश एक बात पर सहमत हैं। वह यह कि धर्म और अध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। या तो अध्यात्म फ़िज़ूल की बात है, या फिर धर्म ही अध्यात्म का एकमात्र आधार और माध्यम है। या तो अध्यात्म का आशय है—समाजनिरपेक्ष आत्मलीनता या अध्यात्म का अर्थ है प्रतिक्रियावादी रहस्यवाद। दोनों में से किसी भी तर्क-पद्धति को अपनाइए, निष्कर्ष पहले से तय है : यदि अध्यात्म के प्रश्नों में आपकी दिलचस्पी है तो आप धर्म को अपनाइए; यदि आप धर्म से असुविधा महसूस करते हैं तो अध्यात्म को भी साथ-साथ ख़ारिज कर दीजिए।</p>
<p>परस्पर विरोधी तर्क-पद्धतियों का निष्कर्ष के धरातल पर यह सामंजस्य अद्भुत है। धर्मेतर अध्यात्म की सम्भावनाओं पर विचार का प्रस्ताव, जो यह पुस्तक आपको देती है, विरुद्धों के इस सामंजस्य से टकराने का, और हो सके तो इसके परे जाने का प्रस्ताव है।</p>
<p>पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से दैनिक ‘जनसत्ता’ में चिन्तक-आलोचक <br />डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल का चर्चित कॉलम ‘मुखामुखम’ एक समग्रबोध की साधना करने की भरसक कोशिश करता रहा है। सैद्धान्तिक प्रश्नों से जूझने से लेकर अटलांटा, वर्धा और गोपेश्वर के अनुभव-संवेदनों को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने तक के रूप में ये लेख लगातार उत्सुकता के साथ पढ़े गए। जाने-माने बुद्धिजीवियों से लेकर पाठकों तक सभी ने इनमें विशेष दिलचस्पी ज़ाहिर की। बहसें भी हुईं। शुरुआती एक वर्ष (मई 2003-मई 2004) में प्रकाशित चर्चित लेख यहाँ पुस्तक रूप में प्रस्तुत हैं। लेखक ने इनमें वे आवश्यक पाद-टिप्पणियाँ और सन्दर्भोल्लेख भी जोड़ दिए हैं, जो अख़बार में नहीं आ सकते थे, लेकिन ज़रूरी थे।
ISBN: 9788126709786
Pages: 132
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Siddharameshwara : Vyakti-Kriti
- Author Name:
Kashinath Ambalge
- Book Type:

- Description: वाचन से जो अनुभवी नहीं होता वह प्रेत है, वाचन से जो अनुभवी होता है वह पंडित है। विद्या तो परिश्रमी के वश में है, विद्या-अविद्या की पहचान से जग के लिए वेदज्ञ हो सका तो वही महापंडित है। हे कपिलसिद्ध मल्लिकार्जुन! भक्त का मन कामिनी में अनुरक्त होता है तो विवाह कर संग रहना चाहिए, भक्त का मन भूमि पर अनुरक्त होता है तो प्राप्त कर घर बनाना चाहिए, भक्त का मन कनक में अनुरक्त होता है तो सप्रयास प्राप्त करना चाहिए, हे कपिलसिद्ध मल्लिकार्जुन!
Motivating Thoughts of Swami Vivekananda
- Author Name:
Swami Vivekanand
- Book Type:

- Description: Swami Vivekananda was an Indian Hindu monk, a chief disciple of the 19th-century Indian mystic Ramakrishna. He was a key figure in the introduction of the Indian philosophies of Vedanta and Yoga to the Western world and is credited with raising interfaith awareness. Swamiji has been an awe-inspiring persona for many people and this book continues the legacy of his ideas and philosophies. This book is a one-of-a-kind condensed version of Swamiji’s life and principles, For every reader; this compilation would mean an enriching and learning experience. May his quotes inspire you to believe in yourself so that you may live your dream
Soorsagar Saar Satik
- Author Name:
Dr. Dhirendra Verma
- Book Type:

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Description:
सूरदास हिन्दी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं, किन्तु इस महाकवि की प्रसिद्ध कृति ‘सूरसागर’ का पठन-पाठन का रसास्वादन उतना नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए। इसके अनेक कारण हैं। एक तो यह ग्रन्थ बहुत बड़ा है, दूसरे इसमें अनेक स्तरों की सामग्री मिश्रित रूप में पाई जाती है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘सूरसागर’ के लगभग 5000 पदों में से 831 अत्यन्त उत्कृष्ट पदों का चयन इस पुस्तक में किया गया है। विनय तथा भक्ति के पदों के उपरान्त कृष्णचरित सम्बन्धी पद, गोकुल लीला, वृन्दावन लीला, राधा-कृष्ण, मथुरा गमन, उद्धव-सन्देश और द्वारिका चरित तथा कृष्ण-जन्म से लेकर राधा-कृष्ण के अन्तिम मिलन तक के
सम्पूर्ण कृष्णचरित क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है। इस प्रकार का प्रयास पहली बार प्रस्तुत है।
आशा है, अध्येता इस ग्रन्थ से पूरा लाभ उठा सकेंगे।
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