Hriday Ki Hatheli

Hriday Ki Hatheli

Authors(s):

Pushpita Awasthi

Language:

Hindi

Pages:

127

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

254 mins

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Book Description

‘शब्द बनकर रहती हैं ऋतुएँ’, ‘अक्षत’ और ‘ईश्वराशीष’ के बाद ‘हृदय की हथेली’ से पुष्पिता अवस्थी ने प्रणय, प्रतीक्षा, विरह, आतुरता, समर्पण और आराधना की लौकिक अनुभूतियों को लोकैषणा के सँकरे दायरे से बाहर निकालकर जैसे एक आध्यात्मिक सिहरन में बदल दिया है। ‘आँसू दुनिया के लिए आँख का पानी है/लेकिन तुम्हारे लिए दु:ख की आग है’ कहते हुए कवयित्री ने प्रबन्धन-पटु समय में प्रेम की एक सरल रेखा खींचनी चाही है। उसके यहाँ ‘प्रेम के रूपक’ नहीं हैं, प्रणय का पिघलता ताप है, आँखों की चौखट में विश्वास की अल्पना है, अन-जी आकांक्षाओं की प्यास है, प्रेम का धन-धान्य है, स्मृति के कुठले में सँजोए अन्न की तरह अतीत का वैभव है। अचरज नहीं कि कवयित्री ख़ुद यह कहती है—‘इन कविताओं की व्यंजना आकाश की तरह निस्सीम है और आकाश गंगा की तरह अछोर भी। इनके अन्दर की यात्रा मन के रंगों-रचावों की यात्रा है, रस-कलश की छलकन है। सृजन के राग का आरोहण और कृत्रिमता के तिमिर का तिरोहण है।’</p> <p>प्रेम के उद्दाम आदिम संगीत से होती—प्रेम का गान करने और उसका मान रखनेवाले कवियों—कालिदास, जयदेव, विद्यापति, घनानन्द की परम्परा की ही धात्री पुष्पिता फिर एक बार पुण्य के पारावार में संतरण करना चाहती हैं, अपनी गंगा में प्रिय की यमुना को जीते हुए कृष्ण को राधा-भाव और राधा को कृष्ण-भाव में जीते हुए देखना चाहती हैं। उनकी पदावलियों में अनुरक्त और विदग्ध अनुभवों—दोनों की उमगती कसक भरी है, रचनेवाले के भीतर जैसे अकेलेपन की पिघलती मोमबत्ती। शब्दों के ताप में प्रणय की तपश्चर्या है, प्रेम को पृथ्वी की पहली और अन्तिम चाहत की तरह महसूस करने की उत्कंठा है। प्यार की पवित्र जाह्नवी को दिनोंदिन मैला कर रहे समय के बावजूद देह की आकाश गंगा में तैरकर आँखें पार उतर जाना चाहती हैं ठहरे हुए समय से मोक्ष के लिए। इन कविताओं का सलीक़ेदार अपनत्व मन पर एक ऐसी छाप छोड़ता है जैसे इन अनुभूतियों के साथ, पढ़नेवाला भी सह-यात्रा कर रहा हो।

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