Gramya
Author:
Sumitranandan PantPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
‘ग्राम्या’ में मेरी ‘युगवाणी’ के बाद की रचनाएँ संगृहीत हैं। इनमें पाठकों को ग्रामीणों के प्रति केवल बौद्धिक सहानुभूति ही मिल सकती है। ग्राम जीवन में मिलकर, उसके भीतर से, ये अवश्य नहीं लिखी गई हैं। ग्रामों की वर्तमान दशा में वैसा करना केवल प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देना होता। 'युग', 'संस्कृति' आदि शब्द इन रचनाओं में वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए प्रयुक्त हुए हैं, जिसे समझने में पाठकों को कठिनाई नहीं होगी; ‘ग्राम्या’ की पहली कविता 'स्वप्न पट' से यह बात स्पष्ट हो जाती है।
ISBN: 9789386863027
Pages: 108
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Ek Parityakt Pul Ka Sapna
- Author Name:
Saumya Malviya
- Book Type:

- Description: ये कविताएँ बीते दो-एक दशकों में उपजी बेचैनियों और निराशाओं को स्वर देने का प्रयास करती हैं। वक़्त की चोट को शब्दों में महसूसना चोट पर मरहम का ही काम नहीं करता, बल्कि उसे ज़िन्दा भी रखता है। यह संग्रह अपने ज़ख़्मों के प्रति उत्तरदायी बने रहने की अपील करता हुआ, उनके भरने की उम्मीद की व्यर्थ और अश्लील सकारात्मकता से मुक्त उम्मीद भी करता है। जैसे-जैसे इस दौर की अलामतें हम पर नुमायाँ हुई हैं, कविता, विचार और संवेदना में भ्रम और कुहासा बढ़ा है। दृश्य के धुँधलाने के साथ दृष्टि भी क्षीण होती-सी महसूस हुई है। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ इस सन्दर्भ में दृष्टि की खोज भी हैं और उसके थिर और स्पष्ट बने रहने की टॉर्च भी। हालाँकि इन कविताओं में रोशनी की दिशोन्मुखता नहीं, आग की दहनप्रियता अधिक है और इस जलने में केवल सन्ताप नहीं, प्रतिदिन की, सम्बन्धों की, स्थितियों और संघर्षों की ऊष्मा भी है जो जीवन को ठंडेपन से दूर रखते हुए जीवन्त-जाग्रत बनाए रखती है। शिल्प और भाषा के स्तर पर अपने को परस्पर काटते हुए प्रयोग भी उस विकलता को अपने में विन्यस्त करते हैं जो अन्तर्वस्तु की ज़मीन पर जगह-जगह उद्घाटित हुई है। इन कविताओं में एक कवि की यात्रा भी है जो गणित, विज्ञान, दर्शन और समाजशास्त्र की गलियों में भटकती हुई बार-बार कविता के दयार पर लौटती है। ये लौटना ही उसका अरमान भी है और उसका निकष भी। नतीजन इनमें जो धधक रहा है, कई पाँवों का चक्कर, कई हाथों की दुआ है जो हर बार कविता पर आकर ख़त्म होती है। इसलिए तमाम उत्कंठाओं और व्याकुलताओं के बाद भी इन कविताओं में एक बसेरापन भी है और अपनी जगह की ठसक भी।
Ek Anam Kavi Ki Kavitayen
- Author Name:
Doodhnath Singh
- Book Type:

-
Description:
गद्य में जिस यथार्थ को उसके भौतिक विवरणों में अंकित किया जाता है, कविता उसे अक्सर उन बिम्बों से खोलती है जो उस यथार्थ को भोगते हुए मनुष्य के मन और जीवन में बूँद-बूँद संचित होते रहते हैं। यह जैसे सत्य को, उसकी सम्पूर्णता को दूसरे सिरे से पकड़ना है। विषय यहाँ भी वही ठोस यथार्थ और उसकी छवियाँ हैं लेकिन कवि की कविता उसे सीधे न देखकर उसके उपोत्पादों के आइनों में रखकर जाँचती है। जो भाषा में, शब्दों में, विभिन्न अर्थ-परम्पराओं और अवधारणाओं में आकर एक अमूर्त लेकिन कहीं ज़्यादा प्रभावशाली सत्ता हासिल कर लेते हैं; मसलन—इस संग्रह की कविता 'कामयाबी’। यह कामयाब आदमी को नहीं उसके उस पद को सम्बोधित है जो उसने हासिल किया है—कामयाबी। यहीं से कवि उस पूरी सामाजिक प्रक्रिया को खोलता है जिसका अर्थ इस शब्द में समाहित होकर हमारी चेतना का हिस्सा हो जाता है। और हम उसे नैतिक-अनैतिक के परे एक मूल्य के रूप में धारण कर लेते हैं। इस संग्रह में और भी ऐसी अनेक कविताएँ हैं जो समाज से नहीं, उसके फ़लसफ़े को सम्बोधित हैं, जिसे हम पहले धीरे-धीरे रचते हैं और फिर उसके सहारे जीना शुरू कर देते हैं।
उसके बरक्स खड़ी है कविता जो कवि के अपने एकान्त, अपने मूल्यों और मनुष्यता की अपनी बड़ी परिभाषा के साथ सृष्टि को बचाने-बढ़ाने की चिन्ता में व्यस्त है। संयोग नहीं कि 'भाषा’, 'शब्द’ और 'कविता’ आदि शब्दों का प्रयोग यहाँ अनेक कविताओं में अनेक बार होता है। दरअसल यही वे हथियार हैं जो यथार्थ की अमूर्त व्याप्तियों का मुक़ाबला कर सकते हैं। 'शब्द की चमक और उसकी ताक़त का ख़याल/चारों ओर की बेचारगी में/एक विस्मय था/ताक़त का इकट्ठा होते जाना/लोग जान गए थे/और वे अपने बचाव में/छिप रहे थे/हालाँकि शब्द उन्हें बाहर निकलने के लिए/पूरी ताकत से दे रहे थे आवाज़।’
ये कविताएँ पाठक को अपने समय को एक अलग ढंग से समझने के उपकरण देंगी।
Dukh Koi Chidiya To Nahi
- Author Name:
Amit Manoj
- Book Type:

- Description: Poems
Gada Tola
- Author Name:
Rahi Dumarchir
- Book Type:

- Description: पहले अन्दर मारी जाती है नदी/तब मिटता है नक़्शे से गाडा टोला। गाडा टोला यानी नदी टोला। राही डूमरचीर की ये कविताएँ नदी, पहाड़, जंगल और उनके साथ बसे मनुष्यों के विस्थापन, विलोप और निर्वासन से उपजे अफ़सोस और पीड़ा की कविताएँ हैं। कुछ ‘बनने’ के लिए या सिर्फ़ ‘जी सकने’ के लिए लोग अपनी ज़मीनों से उठकर शहरों की ओर निकल जाते हैं, पहाड़ उन्हें रास्ता देते हुए पीछे रह जाते हैं, नदियाँ भी, सखुआ के जंगल भी। राही अकसर इस विवशता की सबसे भीतरी कोर से अपनी कविता उठाते हैं। इसके लिए उन्होंने अपना एक खुला मुहावरा गढ़ा है, जो ख़बरों से भी कोई मार्मिक कविता निकाल लेता है, चिट्ठियों और संवादों से भी। इस तरह वह जीवन जस-का-तस सम्प्रेषित हो पाता है, जिसकी पीड़ा को कवि हम तक पहुँचाना चाहता है। ‘ऐदेल किस्कू’ और ‘हिम्बो कुजूर’ जैसी कई कविताएँ हैं, जो इसी प्रविधि से पंक्ति-दर-पंक्ति और सघन होती जाती हैं। ‘गीतों के आयोजन को तुम लोग सुरों का महासंग्राम कहते हो’—कहा रिमिल टुडू ने। राही जीवन के इस पहलू को भी देखते हैं जो जंगल से दूर सभ्यता के बीच गढ़ा जा रहा है, जहाँ ज्ञान किताबों में बन्द है, और किताबें अलमारियों में। सभ्यता की विडम्बनाओं को आईना दिखाते हुए, एक कवि के रूप में राही समय के, प्राकृतिक अवयवों के, पेड़ों, पत्तों, दूब, पानी, बच्चों और नदियों के मन से बतियाते हैं और हर हाल में उनके पक्ष में खड़े रहते हैं— अच्छा आप उसी गाँव के हैं न/जहाँ मन्दिर के किनारे नदी है देवघर के उस भले मानुष से कहा मैंने—जी नहीं/उस गाँव का हूँ/जहाँ नदी के किनारे मन्दिर है।
Mera Dawa Hai
- Author Name:
Sudha Om Dhingra
- Book Type:

- Description: Book
Aalap Mein Girah
- Author Name:
Geet Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
अपनी प्रतिबद्ध विवेकशील विश्वचेतना में रघुवीर सहाय के बाद की समर्थ हिन्दी कविता समसामयिक, प्रतिभावान युवा कवियों द्वारा इस कदर समृद्ध और अग्रेषित की जा रही है कि अपने पाठक, आस्वादक, समीक्षक और विश्लेषक के सामने अपूर्व, कभी-कभी तरद्दुद और सांसत में डाल देनेवाली, किन्तु शायद हमेशा रोमांचक चुनौतियाँ खड़ी करती जाती है।
गीत चतुर्वेदी की ये कविताएँ राष्ट्र ओर व्यक्ति-दशा ('स्टेट ऑफ़ द नेशन एंड द इंडीविजुअल') की कविताएँ हैं।
उनकी काव्य-निर्मित और शिल्प की एक सिफ़त यह भी है कि वे 'यथार्थ' और 'कल्पित', ठोस और अमूर्त, संगत से विसंगत, रोज़मर्रा से उदात की बहुआयामी यात्रा एक ही कविता में उपलब्ध कर लेते हैं।
इतिहास से गुज़रने का उनका तरीक़ा कुछ-कुछ चार्ली चैप्लिन-सा है और कुछ काल-यात्री (टाइम ट्रैवलर) सरीखा है...
भारतीय समाज के लुच्चाकरण और अमानवीयता पर जो बहुत कम हिन्दी कवि नज़र रखे हुए हैं, गीत चतुर्वेदी उनमें भी एक निर्भीक यथार्थवादी हैं।
—विष्णु खरे
Kavita Ka Shuklapaksh
- Author Name:
Bachchan Singh
- Book Type:

-
Description:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ सिर्फ़ इसलिए हिन्दी का एक गौरव ग्रन्थ नहीं है कि उसने पहली बार साहित्य की समग्र परम्परा का एक वयस्क और उत्तरदायी परिप्रेक्ष्य से निदर्शन कराया, बल्कि इसलिए भी कि उसमें शुक्ल जी की गहरी रसिकता, सावधान और सटीक पहचान और सजग सुरुचि से चुनी हुई कविताओं या कवितांशों का एक विलक्षण संकलन भी है।
इस संकलन से शुक्ल जी का निजी रागबोध और काव्य-दृष्टि प्रगट होती है, साथ ही हिन्दी कविता-संसार की जटिल लम्बी परिवर्तन-कथा भी शुक्ल जी के विश्लेषण और चयन से विन्यस्त होती है। महत्त्वपूर्ण आलोचक डॉ. बच्चन सिंह ने अपने सहकर्मी डॉ. अवधेश प्रधान के साथ शुक्ल जी के चयन के आधार पर हिन्दी की एक ‘गोल्डन ट्रेजरी’ एकत्र की है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह हिन्दी काव्य की, छायावाद-पूर्व की सम्पदा से आकलित, एक रत्न-मंजूषा है। इस संकलन की एक और विशेषता की ओर भी ध्यान देना चाहिए—कविताओं में रूप का नैरन्तर्य और परिवर्तन। कुछ लोगों का विचार है कि साहित्य का इतिहास रूपों और उनके परिवर्तन का इतिहास होता है। शुक्ल जी को यह एकांगिता स्वीकार्य नहीं है। शुरू से ही रूपों के नैरन्तर्य, परिष्कार और परिवर्तन के प्रति वे सतर्क हैं। इन परिवर्तनों को वे कभी शब्द-शक्तियों के आधार पर, कभी क्रियारूपों और लय के आधार पर पहचानते हैं। इसमें केवल ‘श्रेष्ठ’ और ‘प्रिय’ का मनचाहा संकलन नहीं है, बल्कि ‘विविध’ और ‘प्रतिनिधि’ का सावधान चयन है जिसमें उत्कृष्ट काव्य-खंडों के साथ कुछ कमज़ोर काव्य-प्रयोग भी है जिनका ऐतिहासिक मूल्य है—काव्य-वस्तु और काव्य-भाषा के विकास की दृष्टि से। इसमें सफल काव्य-सृष्टि की ‘सिद्धावस्था’ के साथ असफल काव्य-प्रयत्नों की ‘साधनावस्था’ भी मौजूद है।
इस इतिहास-यात्रा में जगमगाते शिखरों के साथ कुछ गुमनाम घाटियाँ भी शामिल हैं। आप केवल ‘इतिहास’ में उद्धृत काव्य-रचनाओं को एक क्रम में देख जाएँ तो हिन्दी काव्यधारा का एक व्यापक और प्रतिनिधिमूलक गतिशील प्रवाह-चित्र सामने आ जाता है। यह संचयन ऐसी ही विविधवर्णी चित्रमाला है।
Ghar Ka Rasta
- Author Name:
Mangalesh Dabral
- Book Type:

-
Description:
मंगलेश डबराल की कविता में रोज़मर्रा ज़िन्दगी के संघर्ष की अनेक अनुगूँजें और घर-गाँव और पुरखों की अनेक ऐसी स्मृतियाँ हैं जो विचलित करती हैं। हमारे समय की तिक्तता और मानवीय संवेदनों के प्रति घनघोर उदासीनता के माहौल से ही उपजा है उनकी कविता का दु:ख। यह दु:ख मूल्यवान है क्योंकि इसमें बहुत कुछ बचाने की चेष्टा है। कविता की एक भूमिका निश्चय ही आदमी के उन ऐन्द्रीय और भावात्मक संवेदनों को सहेजने की भी है जिन्हें आज की अधकचरी और कभी-कभी तो मनुष्य-विरोधी राजनीति और एक बढ़ती हुई व्यावसायिक दृष्टि लगातार नष्ट कर रही है।
प्रकृति के साथ मनुष्य के सम्बन्धों पर भी एक हिसाबी-किताबी दृष्टि का ही क़ब्ज़ा होता जा रहा है। मंगलेश की कविता पेड़ को ‘करोड़ों चिड़ियों की नींद’ से जोड़ती हुई जैसे इस तरह के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ ही खड़ी है। महानगर में रहते हुए मंगलेश का ध्यान जूझती हुई गृहस्थिन की दिनचर्या, बेकार युवकों और चीज़ों के लिए तरसते बच्चों से लेकर दूर गाँव में इन्तज़ार करते पिता, नदी, खेतों और ‘बर्फ़ झाड़ते पेड़’ तक पर टिका है। उनकी नज़र उस अघाए हुए वर्ग के बीच जाकर बेचैन हो जाती है जो सब कुछ को बाज़ार-भाव के हवाले करने पर तुला है।
मंगलेश की कविता के शब्द करुण संगीत से भरे हुए हैं। इनमें एक पारदर्शी ईमानदारी और आत्मिक चमक है। लेकिन उनकी कविता अगर हमारे समय का एक शोकगीत है तो आदमी की जिजीविषा की टंकार भी हम उसमें सुनते हैं और उसमें स्वयं अपनी निजी स्थिति का एक साक्षात्कार भी है। बहुत सामान्य-सी लगनेवाली चीज़ों का मर्म भी मंगलेश की कविता इस तरह खोलती है कि उसमें से एक पूरी दुनिया झाँकने लगती है। ‘माचिस की तीली बराबर रोशनी’ इसी तरह की एक पंक्ति है।
दरअसल ‘घर का रास्ता’ की एक से दूसरी कविता तक हमें अनुभवों, बिम्बों और जीवन-स्थितियों का एक ऐसा संसार मिलेगा कि हम रह-रहकर पहचानेंगे कि यह तो हमारा कितना अपना है।
—प्रयाग शुक्ल
Bachi Hui Prithavi
- Author Name:
Leeladhar Jagudi
- Book Type:

-
Description:
नई कविता के सशक्त कवि लीलाधर जगूड़ी का एक उल्लेखनीय संग्रह है—‘बची हुई पृथ्वी’। इस संग्रह की कविताएँ पाठकों को शब्दों की चित्रात्मकता से प्रभावित भी करेंगी और जीवन की नई अर्थवत्ता से सम्मोहित भी।
ये कविताएँ शाब्दिक कलाबाज़ियों से मुक्त और जीवन के सही सन्दर्भों से जुड़ी हुई हैं। इन कविताओं में रचनाकार का प्रश्न गौण हो जाता है और कविताएँ स्वतः जीवन का कड़वा यथार्थ भोगती नज़र आती हैं, प्रतीक ख़ुद-ब-ख़ुद बोलने लगते हैं, शब्द मस्तिष्क पर छा जाते हैं और कथ्य हृदय को सहज ही स्पर्श करने लगता है। पाठक महसूस करेंगे कि ये कविताएँ बहुत कुछ कहनेवाले मौन की तरह मुखर हैं; जिनमें मानवीय संवेदनाएँ भी हैं, विवशताओं का त्रिकोण भी है और इस नियति को अस्वीकार करती मनःस्थितियों का आक्रोश भी।
प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में कवि अँधेरे और सन्नाटे से घिरी अपनी ‘बची हुई पृथ्वी’ पर इसलिए उगने को अधीर प्रतीत होता है कि उसके अन्दर ‘जूझने’ का हौसला भी है ताकि आसपास की ‘वर्तमान पृथ्वी’ उसे इसीलिए आकर्षक लगी है कि वह ‘मिट्टी की गन्ध’ से भरी है।
Antas Ki Khurchan
- Author Name:
Yatish Kumar
- Book Type:

-
Description:
‘यतीश कुमार की कविताओं को मैंने पढ़ा। अच्छी रचना से मुझे सार्वजनिकता मिलती है। मैं कुछ और सार्वजनिक हुआ, कुछ और बाहर हुआ, कुछ अन्य से मिला, उनके साथ हुआ और उनके साथ चला।’
—विनोद कुमार शुक्ल
यतीश की कविता का कुनबा काफ़ी बड़ा है, जिसमें आवाँ जितने पात्र भरे पड़े हैं। इनका वैविध्य उनकी संवेदना की परिधि को कहीं व्यापक बनाता है तो कहीं भरमाता है। इस विचलन को हुनर में बदल देने की सम्भावना और भरपूर क्षमता उनके कवित्व में मौजूद है, जिसका प्रमाण हैं इस संकलन की कविताएँ।
—अष्टभुजा शुक्ल
Fiza Ke Samandar Mein
- Author Name:
Ramswaroop Kisan
- Book Type:

-
Description:
ग्रामीण जीवन के अनूठे चित्र और मनुष्य के संसार के ऐसे बिम्ब जिन पर सामान्यतः हमारी निगाह कम ही ठहरती है, रामस्वरूप किसान की कविताओं में बहुतायत से मिलते हैं।
मिसाल के तौर पर इस संग्रह की पहली ही कविता-शृंखला ‘पीठ’ को लिया जा सकता है जिसमें कुल सोलह कविताएँ शामिल हैं। ‘पीठ एक कारुणिक क्षेत्र’ है जिसे देखकर कवि-मन बार-बार कभी अपने भीतर और कभी बाहर की ओर एक प्रश्नाकुल चिन्तन-यात्रा पर निकल जाता है।
‘फ़िज़ा के समन्दर में’ शीर्षक कविता-शृंखला की ग्यारह कविताएँ पुनः कवि की विशिष्ट दृष्टि का पता देती हैं जिसमें प्रेम के लिए घर से भागती हुई लड़की हमें और हमारे समाज को पुनः पुनः सवालों के घेरे में खड़ा कर देती है—
यह रहा/तुम्हारा दूल्हा/साथ-साथ रहोगे तो/प्यार हो जाएगा/पापा ने कहा।...नहीं, ऐसा कहो पापा/यह रहा तुम्हारा प्यार/साथ-साथ रहोगे/तो दूल्हा हो जाएगा।
संग्रह में शामिल अधिकांश कविताएँ इसी तरह पाठक को सहसा चौंका देती हैं और हमारी देखी जानी चीज़ों को नये ढंग से हमारे सामने ला देती हैं।
आम जन-जीवन के दैनन्दिन दुखों, व्यवस्था-जनित असहायताओं और मनुष्य की आन्तरिक और बाह्य पीड़ाओं के साथ इन कविताओं की राजनैतिक चेतना भी मुखर रूप में सामने आती है—
पब्लिक लड़ती है चुनाव—पैसों से/बातों से/लातों से/भालों-बन्दूक़ों-तलवारों से/ख़ून के फ़व्वारों से/और लड़ा-लड़ाया चुनाव/उनके गले में डाल देती है.../वे चुनाव नहीं लड़ते/वे तो पहनते हैं चुनाव।
Sanyogvash
- Author Name:
Ashutosh Dubey
- Book Type:

-
Description:
हमारे जीवन का एक उप-जीवन भी होता है। अपने दिखाई दे सकने वाले क्रियाकलापों के समानान्तर हम उसे अपने अंतर्लोक में जीते हैं। यहाँ हम चीज़ों को उनकी दृश्यमान हदों के अलावा उनकी संभावनाओं में भी देखते हैं। यह दुनिया को देखने की एक भिन्न पद्धति होती है।
आशुतोष दुबे अकसर अपनी कविता हमारे ‘होने’ के साथ-साथ चलती इसी पटरी से उठाते हैं, वह जगह जो हमें अपने वर्तमान की स्थूलताओं में छोड़कर कभी अतीत में दिपदिपाते एक आलोक-वृत्त में घुमा लाती है, कभी आगत के किसी अदेखे-अछूते लोक में लिवा ले जाती है।
ये अत्यन्त महीन रेशों में धड़कते उसी जीवन की कविताएँ होती हैं, जिन्हें अपनी दैनिक दुश्चिन्ताओं और दुष्कामनाओं के शोर से बाहर आकर पढ़ना होता है। बल्कि कह सकते हैं कि इस बोझ से ख़ाली होने में वे भी आपकी मदद करती हैं। वे आपके अनुभव-जगत और उसके यथार्थ के एक अन्य पहलू से आपको परिचित कराती हैं जो बहुत छोटी-छोटी चीज़ों की मद्धिम लेकिन अटल आभा में छिपा होता है। ख़तरनाक ढंग से पूर्वानुमेय और कल्पना-वंचित हो चुके हमारे इस समय में ये कविताएँ हमें विस्मित होने का अवसर देती हैं, हमें हमारे सूक्ष्म के सामने ले जाती हैं और इस तरह हमें अपने आप से भी बचाती हैं।
Neera Ke Liye
- Author Name:
Sunil Gangopadhyay
- Book Type:

-
Description:
सुनील गंगोपाध्याय के देहावसान के बाद विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने एक कविता लिखी—‘पत्र जिसे पढ़नेवाला चला गया’। इसकी पंक्तियाँ हैं—‘कौन जाने नीरा का पत्र हो जिसके लिए लिखता रहा वह कविताएँ और कविताएँ और कविताएँ।’
सुनील गंगोपाध्याय की रचनाशीलता में 'नीरा' का एक विचित्र स्थान है। एक साथ ऐन्द्रिक और अतीन्द्रिय। 'नीरा के लिए' कविता-संग्रह में इसका अनुभव किया जा सकता है। प्रस्तुत कविता-संग्रह की भूमिका में सुनील गंगोपाध्याय स्वीकारते हैं, “...तमाम बीते बरसों में नीरा बार-बार घूम-फिरकर आती रही मेरी कविता में। मेरी उम्र ढल रही है पर नीरा आज भी किसी स्थिर चित्र की तरह ‘नव-यौवना’ है। मैं उसे रक्त-मांस की मानवी बनाकर रखना चाहता हूँ पर कभी-कभी अचानक से वह प्रवेश कर जाती है शिल्प की सीमाओं के भीतर।
मैं उसे फिर वापस ले आना चाहता हूँ, उसके पाँव में काँटे चुभ जाते हैं, उसकी आँखों में अश्रु झिलमिलाने लगते हैं। यह दूरी, साथ ही यह आलिंगन की निकटता, नीरा के साथ यह खेल चलता ही रहा है जीवन-भर।”
मूलत: बांग्ला में लिखी इन कविताओं का सोमा बंद्योपाध्याय द्वारा किया गया यह अनुवाद मौलिक आस्वाद प्रदान करता है। आसक्ति व अनासक्ति के बीच विचरण करती अद्भुत कविताओं का प्रीतिकर संग्रह।
Kavita Abhi Zinda Hai
- Author Name:
Rameshraaj
- Book Type:

- Description: रमेशराज की मुक्तछंद कविताएँ
Uski Ichchhaon Mein Baarish Thi
- Author Name:
Devyani Bhardwaj
- Book Type:

- Description: ‘उसकी इच्छाओं में बारिश थी’ स्त्री-कविता का एक नया दस्तावेज़ है जिसमें जीवन की सच्चाइयाँ आक के पौधे-सी दिख रही हैं, खेजड़ी के पेड़-सी। जून महीने की दोपहर, निर्जन किसी इलाक़े में चलती जाती हुई यह कवि समझ चुकी है कि प्रेम की कामना प्रेम से बड़ी सच्चाई है। ऐसी कई सच्चाइयों को वह समझ चुकी है—वह न्याय माँगती है समाज से, जानती हुई कि इस पितृसत्ता में उसके लिए ऐसी कोई सुनवाई सम्भव नहीं। वह याद करती है अपनी रिश्तेदार औरतों को—बुआ को, मामी को, मौसी, दादी, नानी को—सबका जीवन इसी पितृसत्ता के विष में लिथड़ा हुआ मिलता है। वह अपनी भाषा में कविता को अपनी सहेली बनाकर लाती है, समझती हुई कि वह भी स्त्री की आदिम यात्रा में एक घायल राहगीर है। देवयानी की कविताओं की परिपक्वता उनकी अपनी ही संवेदना के परिष्कार का प्रतिफल है। कवि ने अपने हृदय में प्रेम के टूटने की आवाज़ सुनी है, कपास में किसान की मेहनत देखी है, बेटी को पितृसत्ता का पाठ पढ़ाते एक माँ को सुना है, एक स्त्री को इच्छा के पुल पर खड़ी देखा है जो कहीं जाना चाहती है। यह सबकुछ देखते हुए उनकी कविता उनके पास आती है, इसलिए उनकी कविता निराश नहीं है बल्कि विवेकसंगत ढंग से आशावान है। उसके सपनों में बादल आते हैं, न कि बसा-बसाया कोई घर जिसमें उस पर हुकूमत करने वाले लोग रहते हों। स्त्री का इन्तज़ार कितना बदल गया है इन कविताओं से पता चलता है! ये कविताएँ एक जागी हुई स्त्री की कविताएँ हैं जिसके सपने प्रौढ़ हो गए हैं, जिसकी आँखें अब कोई भ्रम नहीं पालतीं। जिस स्त्री ने बारिश का इन्तज़ार करना सीख लिया, जिसका दमन अब मुश्किल है। उसकी इच्छाओं में बारिश थी संग्रह एक शाम हो रही सुखद बारिश की तरह है जिसमें ठंडी हवाएँ चल रही हों और जो असमानता और अन्याय से उपजी भीषण उमस-भरी किसी दोपहर से निजात दिलाती हों। साथ में यह उम्मीद भी जगाती हों कि स्त्री अपनी नई संवेदना को प्रकट करने में अब हिचकिचाएगी नहीं बल्कि देवयानी की ही तरह कविता को भी साथ-साथ नया करती चलेगी। —सविता सिंह
Ujla Aasman
- Author Name:
Sangita Swarup
- Book Type:

- Description: Book
Main Yahin Rahna Chahta Hoon
- Author Name:
Suresh Sen Nishant
- Book Type:

- Description: Collection of Poems
Kiska Hai Aasman
- Author Name:
Savita Bhargav
- Book Type:

-
Description:
यह सविता भार्गव का पहला काव्य-संकलन है। इससे गुज़रना मेरे लिए एक सुखद अनुभव रहा। सविता के पास गहरा और लम्बा सर्जनात्मक धैर्य है। जिस तरह की प्रौढ़ता का धरातल इसमें दिखाई पड़ता है, वह इस बात का संकेत है कि इसके पूर्व काफ़ी शब्द-सृष्टियाँ बनती और निरस्त होती रही होंगी। कोई यशःप्रार्थी सर्जक सहज ही उन्हें छपने दे सकता था। सविता में ऐसी हड़बड़ी बिलकुल दिखाई नहीं पड़ती। संकलन तभी प्रेस में जाने दिया जब उन्हें लगा कि यह सृजन-कर्म का ऐसा पड़ाव है, जब उसे सबके सामने रखा जा सकता है। सविता की सजगता की मैं प्रशंसा करता हूँ।
विषय और रूप, दोनों दृष्टियों से प्रौढ़ कविताएँ हैं। प्रौढ़ता के भीतर तरलता का आश्चर्य में डाल देनेवाला वेग और प्रवाह।
कई रंगों की कविताएँ हैं। प्रायः सबमें सर्जक का अपना अनुभव और कई बार बेहद निजी अनुभव बोलता है। ऐसे समय में जब सृजन से निजता का लोप होता जा रहा है, सविता ने उसे थामने और अपनी अभिव्यक्ति से पुष्ट करने का प्रयास किया है।
सविता की कविता की एक बड़ी विशेषता है ‘स्पर्श गुण’ अथवा ‘स्पर्श बिम्ब’। सविता सिनेमा से भी जुड़ी हैं। यह बात शायद उसके कारण पैदा हुई हो। चलते-फिरते स्पर्शात्मक बिम्ब। ‘स्पर्श’ शृंखला की तीसरी कड़ी (स्पर्श : तीन) में मातृत्व के प्रथम अनुभव का यह विलक्षण चित्र मैं यहाँ ख़ास तौर से उद्धृत करना चाहूँगा—
ब्रह्म मुहूर्त में जन्मा था वह
जैसा बहुत मुलायम सा नन्हा सूरज
नर्स ने लाकर लिटाया था उसे मेरी बग़ल में
मेरी हथेलियों में अब भी थरथराता है
उसके गालों का पहला स्पर्श
मैंने छुआ था जैसे पहली बार
अपने से अलग अपने को।
—केदारनाथ सिंह
Chand Ki Vartani
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

- Description: राजेश जोशी का यह कविता-संग्रह हिन्दी कविता का एक नया शिखर है। तीन दशकों से भी अधिक की काव्य-साधना एवं जीवन के लगभग साठ वसन्तों की हरीतिमा से दीप्त यह संग्रह अनेक स्वरों का विलक्षण पुंज है। राजेश ने न केवल अपने को बदला है, बल्कि अपने को बदलते हुए समस्त समकालीन काव्य में सर्वथा नए घूर्ण उत्पन्न कर दिए हैं। वे सारे गुण और स्वाद जिनके लिए राजेश जोशी जाने और माने जाते हैं, यहाँ अपनी पूर्णता एवं सौष्ठव के साथ उपस्थित हैं, साथ ही बहुत कुछ ऐसा भी है जो नितान्त अप्रत्याशित पर आह्लादकारी है और वह है जीवन को उसकी जटिलता में जाकर देखने का उपक्रम, सभी तहों-परतों को उलट-पुलट अनुभव के नामिक तक उत्खनन का धैर्य—‘दिखने में जो अक्सर आसान से दिखते हैं एक कवि को करने होते हैं ऐसे कई पेचीदा काम’। और इसके लिए राजेश तदनुरूप भाषा की खोज भी करते हैं, बनी-बनाई भाषिक आदतों को छोड़ते हुए वह अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाते हैं—‘ताप से भरे शब्दों’ को ढूँढ़ते दूर बीहड़ में जाते हैं और ‘आँसुओं के लिए’ भी ढूँढ़ लाते हैं वैसे ही ‘पारदर्शी शब्द’। राजेश की कविता हमारे समय का ऐसा संघनित दस्तावेज़ है कि केवल उसके आधार पर हम समकालीन भारत का एक दृश्य-लेख बना सकते हैं। इतने तात्कालिक ब्योरे हैं यहाँ, इतने प्रसंग, पात्र और राजनीतिक-सामाजिक उद्वेलन। साथ ही उनकी कविता जीवन के उन तन्तुओं की खोज करती है जहाँ उन उद्वेलनों का कम्प सबसे तीव्र है, और उन लोगों का यशोगान करती है जो निरन्तर संघर्ष करते हुए जीवन को बदलने का ताब रखते हैं। उनकी कविता साहस के साथ सत्ता के सभी पायदानों पर वार करती है, एक विराट सत्ता जो अर्थव्यवस्था से लेकर हमारी रसोई तक व्याप्त है। नागार्जुन और धूमिल के बाद सत्ता के तिलिस्म को उघाड़नेवाले सर्वाधिक सशक्त कवि राजेशी जोशी हैं। आख्यान, कथोपकथन, लोक-कथाओं के स्वप्न-वृत्तान्त, जातीय मिथक, अतियथार्थ के खम, सपाटबयानी, शब्दों के खेल और कल्पना-क्रीड़ा, फंतासी सब कुछ मिलकर एक नया रसायन बनाते हैं जो अन्यत्र दुलर्भ है। राजेश की कविता अब भाषा के नए उपकरणों एवं आयुधों का व्यवहार करती है तथा कविता को वहाँ ले जाती है जहाँ भाषा ‘अर्थ से अधिक अभिप्रायों में निवास करती है’। यह ठोस जगत् की, ठोस जीवन की कविता है उर्फ़ चाँद की वर्तनी नीले नभ पर। — अरुण कमल
TUM AAI HO!
- Author Name:
Sujash Kumar Sharma
- Book Type:

- Description: जितना शाश्वत प्रेम है, उतनी ही शाश्वत हैं वेदनापथियों की प्रेम कविताएँ! कोई कवि इस सृष्टि में यदि शादी को युगल समाधि जैसी नई दृष्टि से देखता है तो निश्चित ही कविताएँ कुछ अलग रूप ग्रहण करने लगती हैं। दरअसल, ईश्वर के दरबार की सबसे प्यारी प्रार्थनाएँ हैं, 'तुम आई हो!’ में संगृहीत कविताएँ। पुस्तक की भूमिका में एक प्रेम-पत्र है। वस्तुत: सारी कविताओं में ही प्रेम-पत्रों का माधुर्य और सौंदर्य की उपासना के मूर्त सूत्र हैं। इसके अलावा, कविताएँ एक निश्चित घटनाक्रम में भी हैं, जो क्रमश: पवित्रता के सोपानों की तरह हैं कि जैसे-जैसे आप पृष्ठ पलटते जाएँगे, आप अपने भीतर प्रेम को और भी प्रगाढ़ और भी घनीभूत होता महसूस करेंगे। अभी उड़ान बाक़ी है, कि अभी जीवन का छप्पन भोग सजा है, कि अभी तो उठाया है पहला कौर, निवाला एक, कि अभी शेष है, दिन का भोजन पूरा, कि अभी रात बाक़ी है, रात का भोजन भी, कि अभी कितने तो दिन, जीवन भरे, प्रतीक्षा में हैं हमारे, कि अभी कई-कई भोर होना है, कितने तो सुप्रभात, अभी एक रात, आज भी कह रही कानों में-शुभ रात्रि! हाँ प्रिये! शुभ रात्रि। कि अभी शेष है, कितने सूर्यों का उदित होना, नित्य, कितने चंद्रमाओं का आना, कि बचे हैं अभी, कितने-कितने वसंत, कितनी ही बारिशों की रिमझिम, कितनी ठंडियों की रातें, कितने गुलाबी धूप तो शेष हैं, अभी बचे हैं बहुत, जीवन के रंग-बिरंगे मौसम। ऐसी ही ताज़गी और जीवंतता से लबरेज़ एक ऐसी किताब, जिसे प्रेमी-प्रेमिका भी पढ़ सकते हैं और पति-पत्नी भी। वे भी जिन्हें लगता है कि प्रेम चूक गया या कि उमर चूक गई। आप अपने प्रिय को प्रेम की उष्मा और ऊर्जा से भरा 'कुछ’ यदि भेंट करना चाहते हैं, तो इन कविताओं का गुच्छ सर्वोत्तम उपहार हो सकता है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...