
Anrahani Rahane Do
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
208
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
416 mins
Book Description
विचारक और संगीतविद् मुकुन्द लाठ चार दशकों से अधिक कविता लिखते रहे हैं। उनका यह संग्रह 1970 से लेकर 2012 के दौरान लिखी कविताओं का संग्रह है। जितना अचरज की बात है कि उन जैसा अधीत विद्वान चुपचाप इतने बरसों से कविता लिख रहा है, उससे कम अचरज की बात यह नहीं है कि ये कविताएँ किसी भी काव्य-निकष या काव्य-रुचि के आधार पर कविताएँ हैं।</p> <p>इन कविताओं में शास्त्र और लोक दोनों समाहित हैं—उनमें परम्परा की आधुनिक अन्तर्ध्वनियाँ हैं और आधुनिकता के कई मर्म और उत्सुकताएँ गुँथी हुई हैं। वे बहुत सहजता से तत्सम और तद्भव को एक साथ साधती हैं। उन पर विचार हावी नहीं है और वे कविता की काया में हस्तक्षेप नहीं करते हैं बल्कि अनुभव की तरंगित सघनता में घुल-मिलकर आते हैं।</p> <p>हमारे समय या शायद सभी समयों में मनुष्य की स्थायी विडम्बना यह है कि उसकी स्थिति हमेशा ही अन्तर्विरोध की है। मुकुन्द लाठ की कविता इस स्थायी और अटल अन्तर्विरोध से न मुँह मोड़ती है, न ही उसको सरलीकृत करती है।</p> <p>मुकुन्द जी के यहाँ शब्द और बिम्ब की लीला के साथ-साथ गहरा विनोद भाव भी सक्रिय है।</p> <p>कविता अगर एक स्तर पर सार्थक होने के लिए एक समूचे जीवन को उसकी जटिलता और सूक्ष्मता में प्रकट करती है और एक ऐसी मानवीय गरमाहट और हमआहंगी देती है जो अन्यथा सम्भव नहीं है तो मुकुन्द लाठ की कविता भरी-पूरी जीवन-कविता है। </p> <p>—अशोक वाजपेयी