Aap Na Badlenge
Author:
Mamta KaliyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
मैंने तुम्हारा नाटक पढ़ लिया था। सबसे पहली बात तो यह कि इसमें एक बहुत ही सामयिक और महत्त्वपूर्ण थीम को उठाया गया है। दहेज के सवाल पर हर स्तर पर कुछ न कुछ लिखा जाना चाहिए और मुझे ख़ुशी है कि तुमने इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए नाटक का सहारा लिया। दूसरे तुम्हारी भाषा में बहुत कसावट है और नाटकीयता भी है। प्रारम्भिक दृश्य बड़े सघन लगते हैं और कार्य-व्यापार में भी एक तरह की नाटकीय क्रूरता का अहसास होता है जो ज़रूरी है।</p>
<p>—नेमिचन्द्र जैन, प्रख्यात रंग-आलोचक</p>
<p> </p>
<p>इधर मैंने अपने विद्यार्थियों को 'यहाँ रोना मना है' एकांकी पढ़ाया। एकांकी सबको बहुत अच्छा लगा।</p>
<p>—के.एम. मालती; अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, गवर्नमेंट आर्ट्स एवं साइंस कॉलेज, कालीकट, केरल</p>
<p>
ISBN: 9788180313981
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
कृष्ण बलदेव वैद के कथा साहित्य से जिन पाठकों का परिचय है, वे जानते हैं कि उन्हें मनुष्य-जीवन के नाटकीय सन्दर्भों की गहरी पहचान है। यहाँ भी वैद जीवनगत घटनाओं को सायास नाटकीय बनाने के बजाय जीवन में निहित नाटक को पकड़ते हैं। यहाँ तक कि सामान्य लगते रंग-संकेतों को भी नाटकीय प्रसंग के रूप में विन्यस्त करने का सामर्थ्य उन्होंने प्रदर्शित किया है।
वैद बख़ूबी समझते हैं कि नाटक की सम्पूर्णता उसके मंचन में है। इस नाटक को पढ़ते ही पाठक को नाटक अपने सामने घटित होते दिखता है। हालाँकि इसकी विषयवस्तु जटिल है लेकिन सरल-सहज प्रस्तुति के कारण ऐसा मुमकिन हुआ है। गीता, अखिल, सुजाता जैसे चिर-परिचित चरित्रों के माध्यम से लेखक ने स्त्री-पुरुष सम्बन्धों का ऐसा रचनात्मक विमर्श इस रचना में सम्भव किया कि ये थोड़े से पात्र, अपने मित कथनों में ही बड़े मानवीय मूल्यों को पुनर्परिभाषित कर देते हैं। अपनी बात रखने का दार्शनिक लहज़ा पात्रों के चरित्र रचने के साथ ही अर्थ के धरातल पर जिस ‘वर्बल आइरनी’ का निर्माण करता है, वह अद्भुत है।
Yayati
- Author Name:
Girish Karnad
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Description:
हर व्यक्ति जैसे दुःख और द्वन्द्व का एक भँवर है और फिर वह भँवर एक नदी का हिस्सा भी है; और यह हिस्सा होना भी पुनः एक दुःख और द्वन्द्व को जन्म देता है। इसी तरह एक शृंखला बनती जाती है जिसका अन्त व्यक्ति की उस आर्त्त पुकार पर होता है कि ‘भगवान, इसका अर्थ क्या है?’ ‘ययाति’ नाटक के सारे पात्र इस शृंखला को अपने-अपने स्थान से गति देते हैं, जैसे जीवन में हम सब। अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं से प्रेरित-पीड़ित इस तरह हम जीवन का निर्माण करते हैं।
राजा ययाति की यौवन-लिप्सा, देवयानी और चित्रलेखा की प्रेमाकांक्षा, असुरकन्या शर्मिष्ठा का आत्मपीड़न और दमित इच्छाएँ, और पुरु का सत्ता और शक्ति-विरोधी अकिंचन भाव—ये सब मिलकर जीवन की ही तरह इस नाटक को बनाते हैं, जो जीवन की ही तरह हमें अपनी अकुंठ प्रवहमयता से छूता है।
अपने अन्य नाटकों की तरह गिरीश करनाड इस नाटक में भी पौराणिक कथाभूमि के माध्यम से जीवन की शाश्वत छटपटाहट को संकेतित करते हुए अपने सिद्ध शिल्प में एक अविस्मरणीय नाट्यानुभव की रचना करते हैं।
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