Bharatiya Sanskritik Moolya
Author:
Dr. Bajrang Lal GuptaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है। समृद्ध कला, कौशल और तकनीक के बल पर विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी 25-30 प्रतिशत तक थी। लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा कई शताब्दियों तक इसे लगातार लूटे जाने और विदेशी शासन के कारण भारत का वैभव बीते दिनों की बात बनकर रह गया। उत्पीड़ित और असहाय जन-समुदाय ने इस आपदा से मुक्ति के लिए भगवान् की शरण ली। दो सौ वर्ष के अंग्रेजी राज में पश्चिम का बुद्धिजीवी वर्ग यह प्रचारित करने लगा कि भारतीय समाज केवल परलोक की चिंता करनेवाला व पलायनवादी है और आर्थिक मामलों को लेकर भारत की कोई सोच ही नहीं है। इसी अवधारणा की छाया में भारत ने स्वतंत्रता के उपरांत अपने विकास के लिए पश्चिमी वैचारिक अधिष्ठान पर आधारित सामाजिक, आर्थिक संरचना के निर्माण का प्रयोग किया। लेकिन इससे समस्याएँ सुलझने के बजाय उलझती ही जा रही हैं। यही नहीं, अनेक प्रकार की उपलब्धियों के बावजूद आज विश्व के अनेक विचारक पश्चिमी देशों की प्रगति की दृष्टि एवं दिशा से संतुष्ट नहीं हैं। आज पूरा विश्व एक वैकल्पिक विकास मॉडल चाहता है।
प्रख्यात अर्थशास्त्रा् डॉ. बजरंग लाल गुप्ता ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू अर्थचिंतन : दृष्टि एवं दिशा’ में भारतीय अर्थचिंतन की सुदीर्घ एवं पुष्ट चिंतन परंपरा का विशद् वर्णन करते हुए पश्चिमी अर्थचिंतन की उन खामियों का भी सांगोपांग विश्लेषण किया है, जिसके कारण पूरा विश्व आज आर्थिक-सामाजिक संकट के कगार पर खड़ा है। इस वैश्विक संकट से उबरने के लिए उन्होंने भारतीय अर्थचिंतन पर आधारित एक ऐसा वैकल्पिक मार्ग भी सुझाया है, जो सर्वमंगलकारी है।
ISBN: 9789352664870
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: चंपारन की संघर्ष-कथा जिस प्रकार राजकुमार शुक्ल के बिना पूरी नहीं हो सकती, उसी प्रकार ‘प्रताप’ के बिना भी पूरी नहीं हो सकती। ‘प्रताप’ ही वह पत्र है, जिसने पहली बार मोहनदास करमचंद गांधी को ‘महात्मा’ कहा था। 4 जनवरी, 1915 के अंक में ‘प्रताप’ ने चंपारन की पीड़ा सुनाते हुए कहा, ‘‘देश के एक भाग के सीधे-सादे शांतिप्रिय आदमियों की यह हालत है। विदेशों में भारतवासियों पर जो अत्याचार हुआ या हो रहा है, वह इस अत्याचार के मुकाबले में अधिक नहीं है।...बाहर के अत्याचार की जड़ उखाड़ फेंकने से घर के इस अँधेरे को दूर करना अधिक हितकर है। निःसंदेह जो अपनी सहायता आप नहीं करता, उसकी सहायता मनुष्य तो दूर रहा, परमात्मा भी नहीं करता। बिहार में क्रियाशीलता की कमी है, पर हम इस बात को कदापि नहीं भूल सकते कि च्यूँटी में भी दम है और बहुत तंग किए जाने पर वह काट खाती है।’’ महेश्वर प्रसाद के ‘बिहारी’ पत्र से विदा होने के पश्चात् चंपारन के दुःख को देश-दुनिया को सुनाने का दायित्व ‘प्रताप’ ने सँभाल लिया। ‘प्रताप’ को गांधी अपने सिद्धांत, व्यवहार, करुणा एवं परदुःखकातरता के लिए ‘प्रिय’ थे तो ‘चंपारन’ अपनी ‘ट्रेजडी’ के कारण। इस पुस्तक में ‘प्रताप’, ‘अभ्युदय’, ‘भारतमित्र’, ‘द बिहार हेराल्ड’, ‘हितवाद’, ‘पायोनियर’ जैसे पत्रों में प्रकाशित चंपारन से संबंधित समाचार-रिपोर्ट आदि संकलित हैं। चंपारन की अंतर्कथा को प्रामाणिकता से समझने के लिए यह प्राथमिक स्रोत है। निस्संदेह, भारतीय इतिहास के इस महत्त्वपूर्ण अध्याय को पढ़ने-समझने के लिए ‘चंपारन आंदोलन 1917’ एक पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक है।
Parkeey Haat
- Author Name:
Ravi Amle
- Book Type:

- Description: परकीय हात. फॉरिन हँड.विदेशी शक्तींचा, त्यांच्या हेरसंस्थांचा...तो भारतात सतत फिरत होता. फिरत आहे.तो अमेरिका, ब्रिटन, रशिया यांसारख्या मित्रराष्ट्रांचा आहे, तसाच पाकिस्तान, चीनसारख्या शत्रूंचाही.तो भारतात हेरगिरी करत आहे. येथील माणसे फोडत आहे. पण ते एवढ्यापुरतेच मर्यादित नाही.येथील राजकारण, अर्थकारण, समाजकारण यांत तो हस्तक्षेप करत आहे. सरकारी धोरणे आणि निर्णयांवर प्रभाव टाकत आहे. येथील लोकमानसास हवे ते वळण लावण्याचा प्रयत्न करत आहे. यातून तो आपल्या मन-मेंदूपर्यंत पोचू पाहत आहे. हेच ते सायवॉर!आज त्याला जोड लाभली आहे सायबरयुद्धाची. हे युद्धही केवळ येथील गोपनीय माहिती पळवणे एवढ्यापुरते मर्यादित नाही. भारतात घातपात घडवण्यासाठीही सायबरशस्त्रे वापरली जात आहेत. ही बखर आहे त्या थरारक कारवाया आणि कुटील कारस्थानांची.त्या विदेशी शक्तींच्या, सीआयए, केजीबी, एमआय-सिक्स, आयएसआय, चीनची क्वोचानछांपू अशा हेरसंस्थांच्या उद्योग आणि उपद्व्यापांची... स्वातंत्र्यपूर्वकाळापासून आजपर्यंतची... Parkeey Haat | Ravi Amale परकीय हात | रवि आमले
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