Main Kyon Nahin
Author:
Paru Madan NaikPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘मैं क्यों नहीं?’ उपन्यास एक बहुत त्रासद सामाजिक विडम्बना को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। पारू मदन नाईक ने भारतीय समाज में उन व्यक्तियों की व्यथा-कथा को रेखांकित किया है जो न स्त्री हैं न पुरुष। जो ‘हिजड़ा’ कहकर सम्बोधित किए जाते हैं जिनके लिए न परिवार सदय होता है न समाज उदार। हृष्ट-पुष्ट होने के बावजूद जिनके श्रम का कोई मूल्य नहीं आँका जाता। जाने कैसी-कैसी मुसीबतें झेलते हुए ‘हिजड़ा समुदाय’ के लोग अपना जीवन यापन करते हैं। यह उपन्यास इसी समुदाय के ‘भावनात्मक पुनर्वास’ का उपक्रम है।</p>
<p>उपन्यास नाज़ के माध्यम से आकार लेता है। नाज़ एक स्थान पर कहती है, ‘‘हमें, आपको, इस प्रकृति को ईश्वर ने ही बनाया है। हमें किसी दानव ने तो नहीं बनाया। लेकिन लोगों को इस बात का स्मरण नहीं रहता। क्या बताऊँ सर, किसी डॉक्टर के पास जाना पड़े, तो ठीक से ट्रीटमेंट भी नसीब नहीं होता। सहानुभूति से पेश आनेवाला, आप जैसा कोई, मुश्किल से ही मिलता है। शिक्षा पाना तो दूर, ऐसा ज़बरदस्त मखौल उड़ाया जाता है कि पूछिए मत!’’</p>
<p>अत्यन्त भावनाप्रवण उपन्यास। मराठी से अनुवाद करते समय सुनीता परांजपे ने भाषा-प्रवाह का विशेष ध्यान रखा है।
ISBN: 9788126723362
Pages: 167
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इस्मत चुग़ताई की सधी क़लम का यह शाहकार अपने वक़्त की उस औरत की अक़्क़ाशी करता है जिसके पास अगर ख़ूबसूरत जिस्म न हो, उसे चाहनेवाले पतिंगे न हों, तो वह कुछ नहीं रह जाती और अगर हों तो भूखे-भेड़ियों की हवस की गेंद बनकर रह जाती है। इस्मत इस उपन्यास में औरत की यह हौलनाक़ तस्वीर खींचकर जैसे हर युग की औरतों को चेता रही हैं और कहने की ज़रूरत नहीं कि इक्कीसवीं सदी की चमक-दमक से चौंधियाई हमारी असंख्य उदास, नीम अँधेरी गलियों में आज भी ऐसी मासूम रूहें परवान चढ़ रही हैं, जिनको अगर एक मज़बूत चारदीवारी नसीब न हो तो वे जाने किस राह पर लावारिस पत्थर का टुकड़ा होकर जा रहें, जहाँ कोई भी आता-जाता उनसे खेले और ठुकराकर चलता बने।
नीलोफ़र होने के बाद मासूमा जिस मर्द-समाज के हवाले होती है, उसका रवैया औरत को लेकर आज भी वही है जो उत्तर-आधुनिकता और वैश्वीकरण के हड़बोंग से पहले था। इसलिए यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उर्दू में प्रकाशित होने के समय था। इसके अलावा इस्मत आपा की क़िस्सागोई समाज और आदमी की गहरी पहचान, ज़बान की मास्टरी और अपने पात्रों की तस्वीर-निगारी की महारत भारतीय साहित्य की कालजयी विरासत है, जो इस उपन्यास में भी अपने शबाब पर है।
Zanani Dyodhi
- Author Name:
Pearl S. Buck
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Description:
पर्ल एस. बक के ज़्यादातर उपन्यासों की विषयवस्तु परिवार और विवाह के इर्द-गिर्द घूमती है। ‘ज़नानी ड्योढ़ी’ भी इसका अपवाद नहीं है, लेकिन स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर जितने क्रान्तिधर्मी नज़रिए से इस उपन्यास में उठाया गया है, वह अभूतपूर्व है। 20वीं सदी के चौथे दशक में जब यह उपन्यास आया था, तब नारी-स्वातंत्र्य का विचार अपनी शुरुआती अवस्था में ही था। पर्ल एस. बक ने मैडम वू की इस कथा के माध्यम से जिस साहस और कौशल के साथ स्त्री-जीवन, सेक्स, परिवार और रिश्तों के जितने पहलुओं को उठाया था, वह आश्चर्यजनक है।
मैडम वू एक सम्पन्न चीनी परिवार की महिला है जो अपनी चालीसवीं वर्षगाँठ पर फ़ैसला करती है कि वह परिवार की ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर शान्ति के साथ अपना जीवन व्यतीत करेगी और इसके लिए वह अपने पति के लिए दूसरी पत्नी का प्रस्ताव रखती है। उसके इस फ़ैसले से उस भरे-पूरे परिवार में हड़कम्प मच जाता है। उसके बेटे और बहुओं के बीच के अभी तक दबे-छुपे द्वन्द्व भी सामने आने लगते हैं और इस प्रक्रिया में लेखिका विवाह संस्था और स्त्री-पुरुष सम्बन्ध को हर कोण से देखने-समझने का ‘स्पेस’ रच देती है।
चीनी पृष्ठभूमि में शाश्वत मानवीय प्रश्नों से जूझता यह उपन्यास विश्वसाहित्य की एक अमूल्य निधि है।
Where Has My Gulla Gone
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Padma Sachdev
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