Kamayani Ka Punarmulyakan
Author:
Ramswaroop ChaturvediPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
प्रस्तुत कृति के माध्यम से डॉ. चतुर्वेदी ने ‘कामायनी’ के पुनर्मूल्यांकन को सही दिशा दी है। जैसा कि उन्होंने स्वयं विवेचन किया है, आकर्षण-विकर्षण, आतंक-उपेक्षा तथा महानता-विश्वविद्यालयीयता के बीच कवि ‘प्रसाद’ का अब तक विवेचन ‘भाषा और संवेदना’ की रचनात्मक उपलब्धि के केन्द्रीय सत्य को व्याख्यायित करने में असमर्थ रहा है। डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार बिना इस पकड़ के ‘प्रसाद’ के काव्य का न सही मूल्यांकन हो सकता है और न उनके काव्य के अध्ययन के दौरान उठनेवाले सवालों का ठीक जवाब ही खोजा जा सकता है।</p>
<p>लेखक ने बहुत सधे ढंग से ‘प्रसाद’ काव्य और मुख्यत: ‘कामायनी’ के गहरे और सूक्ष्म सांस्कृतिक सन्दर्भों को विवेचित करने की चेष्टा की है, और बिम्ब-विधान के माध्यम से उनकी रचनात्मक क्षमता को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है। वस्तुत: काव्य रचनात्मक संश्लेष को उसकी सम्पूर्ण जटिलता में विवृत करने का सबसे दक्ष उपाय यही है। यह एक संक्षिप्त अध्ययन है, और इस कारण अध्येता पाठक अतृप्त रह जाने के कारण कुछ असन्तोष का अनुभव कर सकता है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि इस असन्तोष को जिज्ञासा में रूपान्तरित करती हुई यह कृति ‘प्रसाद’ काव्य को समझने में दूर तक हमारी सहायता करती है, और साथ ही काव्य की हमारी समझ को बढ़ाती है।
ISBN: 9788180310737
Pages: 64
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी आलोचना में डॉ. नंदकिशोर नवल का मुख्य कार्य-भार रहा है पाठ से हटी हुई आलोचना को पाठाधारित करना। यह काम उन्होंने इस तरह किया है कि आलोचना पाठ-केन्द्रित भी हो और वह अपने भीतर रचना के अदृश्य विस्तार को भी समेट सके। वे निराला-काव्य के समर्पित अध्येता रहे हैं और उन्होंने निराला पर शोध करने के साथ विश्वविद्यालय में लम्बे समय तक निराला-काव्य का अध्यापन भी किया है। हिन्दी संसार उनके द्वारा सम्पादित ‘निराला रचनावली’ के आठ खंडों में उनका श्रम और निष्ठा देख चुका है। प्रस्तुत पुस्तक के दो खंडों में उन्होंने निराला की महत्त्वपूर्ण काव्य-कृतियों का ऐसा पाठाधारित विश्लेषण किया है, जो जितना ही पांडित्य के पाखंड से शून्य है, उतना ही सरस और रचनात्मक। उचित ही उन्होंने कहा है कि उन्होंने निराला की कविता की पंखुड़ियाँ छिन्न-भिन्न नहीं कीं, सिर्फ़ इसके लिए प्रयास किया है कि वह अपनी नाल पर प्रस्फुटित हो जाए।
‘कृति से साक्षात्कार’ के प्रथम खंड में निराला की कालजयी पूर्ववर्ती कविताओं का विवेचन है और द्वितीय खंड में गीतों के साथ उनकी मध्यवर्ती और परवर्ती उन कविताओं का, जिन्होंने हिन्दी कविता में नए-नए वाग्द्वार खोले। 1936 में निराला ऐसा मानते थे कि उनकी शमा पूरी-पूरी नहीं जली, उसमें हज़ार-दो हज़ार बत्तियों की ताक़त नहीं आई। उनके पूर्ववर्ती कृतित्व के साथ मध्यवर्ती और परवर्ती कृतित्व को भी दृष्टि में रखने पर वह अपनी रोशनी से आँखें चौंधियाती दिखलाई पड़ती हैं।
डॉ. नवल के इस अध्ययन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह परवर्ती पीढ़ी के एक आलोचक द्वारा किया गया अध्ययन है, जिसमें दृष्टि की वस्तुपरकता तो है ही, नई काव्य-संवेदना की दीप्ति भी है।
Aacharya Ramchandra Shukla : Aalochana Ke Naye Mandand
- Author Name:
Bhavdeo Pandey
- Book Type:

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Description:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के पहले हिन्दी आलोचना का कोई व्यवस्थित ढाँचा तैयार नहीं हुआ था। कृति के गुण-दोष-दर्शन में दोष ढूँढ़ने का प्रचलन अधिक था। दोष-दर्शन में भी भाषागत त्रुटियों को ज़्यादा महत्त्व दिया जाता था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आलोचना के ऐतिहासिक और समाजशास्त्राीय स्वरूप की प्रस्तुति की और ‘लोक के भीतर ही कविता क्या किसी भी कला का प्रयोजन और विकास होता है’—के सिद्धान्त का निरूपण किया। उन्होंने आलोचना को व्यवस्थित रूप देने के लिए कुछ निश्चित मानदंड स्थापित किए।
यह पुस्तक आचार्य शुक्ल के जीवन, आलोचक के रूप में, के विकास और उनकी दृष्टि का एक सम्पूर्ण ख़ाका खींचने की कोशिश करती है। उनके प्रामाणिक जीवन-वृत्त के साथ ‘बीसवीं शताब्दी का काव्यात्मक आन्दोलन’ (कविता क्या है?); ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’; ‘वैचारिक निबन्धों के प्रथम आचार्य’; ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना दृष्टि’ और ‘उनकी साहित्येतिहास दृष्टि’—इन पाँच अध्यायों में विभक्त यह पुस्तक आचार्य शुक्ल को समझने और पढ़ने के नए द्वार खोलती है। इसके अलावा डॉ. पांडेय ने गहन शोध के बाद इस पुस्तक में आचार्य शुक्ल से सम्बन्धित अभी तक अनुपलब्ध कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ भी जुटाई हैं।
Shrilal Shukla Sanchayita
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

- Description: स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज को समझने के लिए जिन रचनाकारों ने अपने तर्क निर्मित किए हैं, उनमें श्रीलाल शुक्ल का महत्त्व अद्वितीय है। विलक्षण गद्यकार श्रीलाल शुक्ल वस्तुतः हमारे समय का विदग्ध भाष्य रचते हैं। उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वह जटिल और संश्लिष्ट जीवन के प्रति पूर्ण सचेत दिखते हैं। उनका लेखन किसी आन्दोलन या विचारधारा से प्रभावित नहीं रहा, वह भारतीय समाज के आलोचनात्मक परीक्षण का रचनात्मक परिणाम है। राग दरबारी उनकी ऐसी अमर कृति है जिसने हिन्दी रचनाशीलता को राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सुयश दिलाया। इस संचयिता के छह भाग हैं, जिनमें उनके उपन्यास, कहानी, व्यंग्य, निबन्ध, विनिबन्ध और आलोचनात्मक रचनाएँ समाहित हैं। उन तमाम चीज़ों को इस पुस्तक में शामिल करने का प्रयास किया गया है, जिनकी सार्थकता सार्वकालिक है।
Bhartiya Puralipi
- Author Name:
Rajbali Pandey
- Book Type:

- Description: पुरालिपि-शास्त्र बड़ा ही रोचक विषय है। यह लिपि के विकास का अध्ययन सम्मुख रहता है। श्री डब्ल्यू.जी. बुहलर और महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के बाद पुरालिपि के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण खोज हुए हैं। मुअनजोदड़ों और हड़प्पा की खुदाइयों के बाद इस क्षेत्र में क्रान्तिकारी और नई स्थापनाएँ हुई हैं। इन स्थानों से प्राप्त सामग्रियों से भारतीय लेखन-कला की प्राचीनता और उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस हालत में भारतीय पुरालिपि पर एक ऐसी पुस्तक की बड़ी उपयोगिता है। इस पुस्तक ने पुरालिपि क्षेत्र के तीस वर्षों का व्यवधान पाटने का काम किया है। प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन काल से सन् 1200 ई. तक भारतीय लेखन-कला का इतिहास प्रस्तुत है। विषय को सुगम बनाने के लिए क्रमबद्ध प्रकरणों में उसका विवेचन प्रस्तुत है। अन्त में आवश्यक सारणियाँ भी दी गई हैं। पुरालिपि-शास्त्र के छात्रों, भावी शोधकर्ताओं और अनुसन्धित्सु पाठकों के लिए यह ग्रन्थ विशेष उपयोगी है।
Aadhunik Hindi Sahitya Ka Itihas
- Author Name:
Bachchan Singh
- Book Type:

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Description:
आधुनिक युग इतनी तेजी से बदल रहा है कि साहित्य के बदलाव से भी उसे समझा जा सकता है। इस बदलाव को, क्षिप्रतर बदलाव को साहित्य और इतिहास दोनों के संदर्भों में एक साथ पकड़ना ही इतिहास है। यह पकड़ तब तक विश्वसनीय नहीं हो सकती जब तक समसामयिक अखबारी साहित्य को श्रेष्ठ भविष्योन्मुखी साहित्य से अलगाया न जाय। प्रत्येक युग का आधुनिक काल ऐसे साहित्य से भरा रहता है जो साहित्येतिहास के दायरे में नहीं आता। किन्तु यह जरूरी नहीं है कि हम अपने इतिहास के लिए ग्रंथों का जो अनुक्रम प्रस्तुत करेंगे वह कल भी ठीक होगा, अपरिवर्तनीय होगा।
इस नये संस्करण में कुछ पुरानी बातों को बदल दिया गया है और नये तथ्यों के आधार पर उनका नया अर्थापन किया गया है। इस संस्करण को अद्यतन बनाने के लिए बहुत सारे लेखकों, कवियों और रचनाकारों को भी सम्मिलित कर लिया गया है अब यह अद्यतन रूप में आपके सामने है।
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