Acharya Shukla : Pratinidhi Nibandha

Acharya Shukla : Pratinidhi Nibandha

Language:

Hindi

Pages:

194

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

388 mins

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Book Description

आचार्य रामचन्‍द्र शुक्‍ल हिन्‍दी के अनन्‍य निबन्‍धकार हैं। साहित्यिक, शास्‍त्रीय और शैक्षिक दृष्टि से उनके निबन्‍धों का अध्‍ययन अनिवार्य है, पर उनके प्रतिनिधि निबन्‍धों का एक भी संकलन ऐसा नहीं है जो उनकी विधायिनी प्रतिभा का सम्‍यक् परिचय दे सके। इस परिप्रेक्ष्‍य में ‘आचार्य शुक्‍ल : प्रतिनिधि निबन्‍ध’ बेहद महत्‍त्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि शुक्‍ल जी की प्राय: सभी उपलब्‍ध और अनुपलब्‍ध कृतियों का प्रतिनिधि‍त्‍व करती है यह पुस्‍तक।</p> <p>पुस्‍तक में शुक्‍ल जी के प्रतिनिधि‍ निबन्‍धों को तीन भागों में बाँटा गया है—वैचारिक निबन्‍ध, सैद्धान्तिक निबन्‍ध और व्‍यावहारिक निबन्‍ध। संकलन के आधार हैं—‘बुद्ध चरित’, ‘विश्‍व प्रपंच’, ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’, ‘रस-मीमांसा’, ‘गोस्‍वामी तुलसीदास’, ‘हिन्‍दी निबन्‍ध माला’, ‘भारतेन्‍दु साहित्‍य’, ‘हिन्‍दी साहित्‍य का इतिहास’, ‘चिन्‍तामणि’ (भाग—दो), ‘सूरदास’ आदि। संकलन का प्रारम्भिक निबन्‍ध उनके ‘हिन्‍दी साहित्‍य का इतिहास’ से संगृहित है। यह लेख उनकी दृष्टि से निबन्‍ध का मानदंड प्रस्‍तुत करता है। इसे संग्रह की प्रस्‍तावना के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। काव्‍य-क्रम की दृष्टि से भी प्रारम्‍भ से लेकर उनके जीवन के अन्तिम समय तक लिखे गए निबन्‍धों का पुस्‍तक में समावेश किया गया है। भाषा, साहित्य शास्‍त्र तथा हिन्‍दी के भक्ति साहित्‍य से लेकर ‘कामायनी’ तक इन निबन्‍धों के विषय हैं। इसलिए उनकी व्‍यापक मान्‍यताओं और भेद में अभेद देखनेवाली तत्वग्राही दृष्टि का सम्‍यक् ये निबन्‍ध देते हैं। इस दृष्टि से इनकी परिधि बड़ी व्‍यापक है।</p> <p>शुक्‍ल जी का सर्वोत्‍तम लेखन ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ का प्रकाशन है और आजन्‍म वे उससे सम्‍बद्ध भी रहे। इसलिए ‘सभा’ के वर्तनी सिद्धान्‍त का ही व्‍यवहार किया गया है, यथा—पंचम वर्ण के स्‍थान पर अनुस्‍वार का प्रयोग और दो से अधिक सामासिक शब्‍दों में ही समास चिन्‍ह का प्रयोग। शुक्‍ल जी रखा न लिखकर ‘रक्‍खा’ लिखते थे ताकि देवनागरी के उच्‍चारण की वैज्ञानिकता—जो लिखा जाए, वही पढ़ा जाए—सुरक्षित रह सके, उसका भी पालन किया गया है।</p> <p>परिशिष्‍टों में आचार्य शुक्‍ल का जीवन-वृत्‍त और कृतियों के संकेत-सूत्र दे दिए गए हैं और उनके निबन्‍धों का संक्षिप्‍त मूल्‍यांकन हिन्‍दी निबन्‍ध-परम्‍परा के परिवेश में कर दिया गया है। शोधार्थियों, अध्‍येताओं आदि के लिए संग्रहणीय और महत्‍त्‍वपूर्ण कृति।</p> <p><strong> </strong>

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