Gautam Buddh Aur Unke Updesh
Author:
Anand ShrikrishnaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
इस पुस्तक में न सिर्फ़ भगवान बुद्ध के जीवन की झलकियाँ, उनके विचार व जीवमात्र के प्रति उनकी करुणा का वर्णन है, बल्कि लेखक ने भगवान बुद्ध के बारे में गहन अध्ययन के पश्चात् अपने मौलिक विचारों और कई तथ्यों से भी पाठकों को अवगत कराया है।
पुस्तक में इन तथ्यों के कई प्रमाण हैं कि दुःख, हिंसा और ग़रीबी से तड़पते लोगों की समस्याओं के हल के लिए भगवान बुद्ध ने आख़िर त्याग पर बल क्यों दिया। उनका मानना था कि एक प्रसन्न व्यक्ति ही इस जगत को सुखमय बना सकता है। बुद्ध युद्ध के विरोधी थे और उनका मानना था कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
पुस्तक में अंगुलिमाल का एक लुटेरे से सन्त बन जाना, सम्राट बिम्बिसार, सम्राट प्रसेनजित सहित अनेकों राजपुरुषों की धम्म दीक्षा और चिंचाया द्वारा बुद्ध के ख़िलाफ़ किए गए षड्यंत्र पर भी प्रकाश डाला गया है।
वर्तमान युग में बुद्ध के उपदेशों की प्रासंगिकता की विस्तृत विवेचना की गई है। बुद्ध के जीवन, उनके अनुयायियों, उनके विरोधियों, उनकी शिक्षा, उनके उपदेश देने का ढंग, प्रतीत्यसमुत्पाद, विपस्सना, विपस्सना केन्द्रों की जानकारी, बौद्ध साहित्य और बुद्ध से सम्बन्धित तीर्थस्थलों की विस्तृत जानकारी सात अध्यायों में दी गई है। धम्म के अनुयायियों के लिए यह पुस्तक पथ-प्रदर्शक का काम करेगी।
ISBN: 9788126714230
Pages: 228
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: वैशम्पायन ने आज़ाद की एक मनुष्य, एक साथी और क्रान्तिकारी पार्टी के सुयोग्य सेनापति की छवि को विस्तार देते हुए उनके सम्पूर्ण क्रान्तिकारी योगदान के सार्थक मूल्यांकन के साथ ही आज़ाद के अन्तिम दिनों में पार्टी की स्थिति, कुछेक साथियों की गद्दारी और आज़ाद की शहादत के लिए ज़िम्मेदार तत्त्वों का पर्दाफाश किया है। अपनी पुस्तक में वैशम्पायन जी बहुत निर्भीकता से सारी बातें कह पाए हैं। उनके पास तथ्य हैं और तर्क भी। आज़ाद से उनकी निकटता इस कार्य को और भी आसान बना देती है। आज़ाद और वैशम्पायन के बीच सेनापति और सिपाही का रिश्ता है तो अग्रज और अनुज का भी। वे आज़ाद के सर्वाधिक विश्वस्त सहयोगी के रूप में हमें हर जगह खड़े दिखाई देते हैं। आज़ाद की शहादत के बाद यदि वैशम्पायन न लिखते तो आज़ाद के उस पूरे दौर पर एक निष्पक्ष और तर्कपूर्ण दृष्टि डालना हमारे लिए सम्भव न होता। एक गुप्त क्रान्तिकारी पार्टी के संकट, पार्टी का वैचारिक आधार, जनता से उसका जुड़ाव, केन्द्रीय समिति के सदस्यों का टूटना और दूर होना तथा आज़ाद के अन्तिम दिनों में पार्टी की संगठनात्मक स्थिति जैसे गम्भीर मुद्दों पर वैशम्पायन जी ने बहुत खरेपन के साथ कहा है। वे स्वयं भी एक क्रान्तिकारी की कसौटी पर सच्चे उतरे हैं। आज़ाद के साथ किसी भी कठिन परीक्षा में वे कभी अनुत्तीर्ण नहीं हुए। आज़ाद को खोकर वैशम्पायन ने कितना अकेलापन महसूस किया, इसे उनकी इस कृति में साफ़-साफ़ पढ़ा जा सकता है। आज़ाद-युग पर वैशम्पायन जी की यह अत्यन्त विचारोत्तेजक कृति है जो आज़ाद की तस्वीर पर पड़ी धूल को हटाकर उनके क्रान्तिकारित्व को सामने लाने का ऐतिहासिक दायित्व पूरा करती है। —सुधीर विद्यार्थी
Swaatantrya Samara Simha Lokamaanya Baala Gangaadhara Tilak
- Author Name:
M S Mannar Krishna Rao
- Book Type:

- Description: DESCRIPTION AWAITED
Yahi Tum The : Smaran "Viren Dangwal"
- Author Name:
Pankaj Chaturvedi
- Book Type:

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Description:
किसी भी मृत्यु के शोक से हर कोई अपनी तरह उबरता है। कई बार तो इस प्रक्रिया का भान नहीं होता और हम उस व्यक्ति को अपने भीतर से भी खो देते हैं, जिसे दैहिक तौर पर पहले खो चुके हैं। हिन्दी के विलक्षण कवि वीरेन डंगवाल के निधन के बाद अवसन्न छूट गई हिन्दी की दुनिया भी जब अपने ढंग से इस शोक से उबरने की कोशिश कर रही थी, तब कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी कवि के साथ अपनी स्मृति को पुनर्जीवित कर रहे थे। इसी का परिणाम है यह सुविचारित और संवेदनसिक्त किताब यही तुम थे; जिसके ज़रिए हम कुछ अचरज के साथ दो कवियों के बीच अंतर्गुम्फित उस संसार को देख सकते हैं, जो अपनी तरह से बेहद अर्थपूर्ण और तहदार था।
पंकज चतुर्वेदी की यह किताब दो लोगों के सम्बन्धों के बारे में ही नहीं है, यह इस बात के बारे में भी है कि हम अपने सम्बन्धों को किस तरह देखें और महसूस करें। फिर कहने की ज़रूरत है कि यह काम कोशिश करके सम्भव नहीं है; यह रिश्तों की उस संलग्नता, ऊष्मा और तीव्रता से ही सम्भव है, जो इस किताब के दोनों किरदारों—पंकज चतुर्वेदी और वीरेन डंगवाल के बीच बनती रही और दोनों को बनाती भी रही।
मूलतः स्मृतिविन्यस्त होने के बावजूद यह किताब शास्त्रीय या प्रचलित अर्थों में संस्मरण नहीं है। यह किताब अपने छोटे-छोटे प्रसंगों में हमें साहित्य, कविता, विचार और ज़िन्दगी के बारे में सोचने पर मजबूर तो करती ही है, लेकिन सबसे ज़्यादा इस बात की तरफ़ ध्यान खींचती है कि दो मनुष्य कैसे एक-दूसरे को देख और सिरज सकते हैं।
—प्रियदर्शन
Meri Jindagi Mein Chekhov
- Author Name:
Lydia Evilov
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Description:
लीडिया एविलोव चेख़व से चार वर्ष छोटी थीं। उनका जन्म 1864 में मॉस्को में हुआ और पहली बार जब वे चेख़व से मिलीं तो केवल पच्चीस की थीं। चेख़व के साथ अपने सम्बन्ध के ब्यौरे में—जो 1942 में, 78 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के कई वर्ष बाद ‘चेख़व इन माई लाइफ़’ शीर्षक से छपा—उन्होंने 1889 और 1899 के बीच चेख़व के साथ अपनी केवल आठ मुलाक़ातों का वर्णन किया है, मगर साफ़ मालूम होता है कि वे अक्सर ही मिलते रहे होंगे। संस्मरण में काफ़ी कुछ दिलचस्प सामग्री है मगर उसमें भी ख़ास महत्त्व चेख़व के जीवन की उन घटनाओं का है जो उनके सबसे कल्पना-प्रणव नाटक ‘द सी गल’ की पृष्ठभूमि में थीं। इस नाटक ने उनके कई आलोचकों की बुद्धि की आज़माइश की और नाटक के कई पात्रों के विषय में उनके अनुमान अब सर्वथा निराधार मालूम देते हैं।
इस पुस्तक में लीडिया ने अपने और चेख़व के, दस वर्ष तक चले दुखद प्रेम-प्रसंग का वर्णन किया है। यही समय चेख़व के लेखकीय जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण समय भी था। चेख़व के जीवन के अब तक अनजाने इस अध्याय से उनकी कहानियों और नाटकों में उपस्थित उस वेदना और विषाद को समझने में अन्य किसी भी बात से ज़्यादा मदद मिलती है जो ‘चेरी ऑर्चर्ड’ में वायलिन के तार टूटने की मातमी आवाज़ की तरह ही उनकी सृजन-प्रतिभा और लेखनी से निकली हर प्रेमकथा की विशेषता है।
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