Bhootlen Ki Katha
Author:
Totaram SanadhyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
‘गिरमिटियों’ के ‘गिरमिट’ के अनुभवों के बारे में अधिकांशतः इतिहासकारों अथवा प्रवासियों के उत्तराधिकारियों द्वारा ही लिखा गया है। हम यहाँ एक ऐसे ‘गिरमिटिया’ के बारे में जानने जा रहे हैं जिसने अपने अनुभवों को एक लेखक के माध्यम से कलमबद्ध कराया है। वह असाधारण गिरमिटिया थे—तोताराम सनाढ्य। गिरमिट प्रथा को बन्द कराने में तोताराम के वृत्तान्तों का ही राष्ट्रवादियों ने सहारा लिया।
सन् 1914 में फीजी से भारत लौटने के तत्काल बाद ही तोताराम सनाढ्य ने फीजी में बिताए अपने 21 वर्ष के जीवन और गिरमिट प्रथा के अनुभवों को प्रकाशित कराया।
तोताराम के सारे बयान बनारसीदास चतुर्वेदी ने ‘फिजीद्वीप में मेरे 21 वर्ष’ में न लिखकर वे ही भाग प्रकाशित करवाए जो उस वक्त चल रहे कुली-प्रथा अभियान के लिए उचित थे। तोताराम के वे संस्मरण अप्रकाशित ही रहने दिए जो फीजी गए भारतीयों तथा फीजीवासियों
की सामाजिक और धार्मिक-सांस्कृतिक स्थिति के बारे में थे। यह पांडुलिपि सुरक्षित रखी रही। प्रस्तुत पुस्तक में तोताराम अपनी स्मृति से बनारसीदास चतुर्वेदी को फीजी के अपने संस्मरण सुना रहे हैं और लिप्यन्तर कराते जा रहे हैं। चतुर्वेदी जी ने लेखक के संस्मरण के मूल रूप की चीड़-फाड़ न करके उन्हें ज्यों-का-त्यों लिखा है।
‘भूतलेन की कथा’ एवं अन्य अप्रकाशित वृत्तान्तों में बनारसीदास चतुर्वेदी का हस्तक्षेप न के बराबर दिखता है और संवाद को ज्यों-का-त्यों रखने का प्रयास किया है। इसी कारण जहाँ-तहाँ व्याकरण की ख़ामियाँ आई हैं।
गिरमिटियाओं के इतिहास-लेखन में इतिहासकारों ने गिरमिटियाओं की ख़ुद की आवाज़ को उतनी महत्ता नहीं दी जितनी कि अन्य पक्षों को। यह पुस्तक इतिहास लेखन की उसी कमी को पूरा करने तथा गिरमिटियाओं की ख़ुद की आवाज़ की महत्ता को सामने लाने का एक प्रयास है।
— भूमिका से
ISBN: 9788126723003
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इस शताब्दी की प्रमुख हिन्दी साहित्यिक हस्तियाँ नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी, अज्ञेय, अश्क, श्रीकान्त वर्मा, नेमिचन्द्र जैन, मंटो, अरविन्द कुमार, बलवन्त सिंह, राजेन्द्र सिंह बेदी, उमाशंकर जोशी, सत्येन कुमार, मंज़ूर एहतेशाम, सौमित्र मोहन, स्वदेश दीपक, प्रयाग शुक्ल, कमलेश्वर, नासिरा शर्मा और कन्हैयालाल नंदन मात्र फ़ोटोग्राफ़ी मुखाकृति में ही नहीं, बाक़ायदा अपनी-अपनी अदबी शख़्सियत में मौजूद हैं।
‘हम हशमत’ के पहले भाग में जो लेखक-गुच्छा प्रस्तुत किया गया था उसमें थे निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, कृष्ण बलदेव वैद, अमजद भट्टी, महेन्द्र भल्ला, गोविन्द मिश्र, मनोहर श्याम जोशी, नागार्जुन, शीला संधू, नितिन सेठी, रमेश पटेरिया, सुधीर पंत, मियाँ नसीरुद्दीन और सरदार जग्गा सिंह।
हिन्दी के सुधी पाठकों और आलोचकों ने ‘हम हशमत’ को संस्मरण विधा में मील का पत्थर माना था। ‘हम हशमत’ की विशेषता है तटस्थता। कृष्णा सोबती के भीतर पुख़्तगी से जमे ‘हशमत’ की सोच और उसके तेवर विलक्षण रूप से एक साथ दिलचस्प और गम्भीर हैं। नज़रिया ऐसा कि एक समय को साथ-साथ जीने के रिश्ते को निकटता से देखे और परिचय की दूरी को पाठ की बुनत और बनावट जज़्ब कर ले। ‘हशमत’ की औपचारिक निगाह में दोस्तों के लिए आदर है, जिज्ञासा है, जासूसी नहीं। यही निष्पक्षता नए-पुराने परिचय को घनत्व और लचक देती है और पाठ में साहित्यिक निकटता की दूरी को भी बरकरार रखती है।
‘हम हशमत’ हमारे समकालीन जीवन-फलक पर एक लम्बे आख्यान का प्रतिबिम्ब है। इसमें हर चित्र घटना है और हर चेहरा कथानायक। ‘हशमत’ की जीवन्तता और भाषायी चित्रात्मकता उन्हें कालजयी मुखड़े के स्थापत्य में स्थित कर देती है।
Lok Ka Prabhash
- Author Name:
Ramashankar Kushwaha
- Book Type:

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Description:
प्रभाष जोशी ने हिन्दी पत्रकारिता को नए मुक़ाम तक पहुँचाया। शब्द और कर्म की एकता के विश्वासी प्रभाष जोशी ने जन-सम्बद्ध पत्रकारिता के एक नए दौर की शुरुआत की। उनके द्वारा सम्पादित 'जनसत्ता' अपने समय की जन-संवेदना का नायाब दस्तावेज़ है।
हिन्दी पत्रकारिता के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभानेवाले प्रभाष जोशी के जीवन की यह कहानी उनके समय की भी कहानी है, क्योंकि उनके लिखने और जीने की एक ही मंज़िल थी—लोक-सम्बद्धता।
इस लोक-सम्बद्ध व्यक्तित्व की जीवन-गाथा के अनेक पड़ाव हैं। इस जीवनी में आपको उन पड़ावों का विस्तृत और प्रामाणिक विवरण मिलेगा। प्रभाष जी के व्यक्तिगत जीवन के अनजाने प्रसंगों से आप रू-ब-रू होंगे। उनके सार्वजनिक जीवन के निर्भय सोच के सन्दर्भों से आप अवगत होंगे।
हिन्दी के जीवनी साहित्य की परम्परा में प्रभाष जी की यह शोधपरक जीवनी एक नई पहल है। प्रभाष जी की लोक-सम्बद्ध जीवन-दृष्टि को समझने और उसका विस्तार करने में यह जीवनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
Haadse
- Author Name:
Ramanika Gupta
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Description:
इस आत्मकथा को स्त्री के अपने चुनाव की कहानी भी कहा जा सकता है। पटियाला के बड़े मिलिटरी अफ़सर की ज़िद्दी और अपने मन का करनेवाली लड़की जो अपनी हरकतों से बार-बार बाप और उनके परिवार को असुविधाओं में डालती है, खुली मीटिंगों में उनके सामन्ती दोमुँहेपन पर प्रहार करती है, विभाजन की त्रासदी झेलती मुस्लिम महिलाओं की आवाज़ बनकर जवाब माँगती है और फिर अपने मन से क्षत्रिय (राजपूत) परिवार छोड़कर अन्य जाति के लड़के (गुप्ता) से शादी करके बिहार (झारखंड समेत) चली आती है। यहाँ आकर पति से विद्रोह करके मज़दूरों-कामगारों के बीच उनके संघर्ष का जीवन चुनती है।
इस आत्मकथा को सामन्तवाद और लोकतन्त्र के खुले द्वन्द्व की तरह भी पढ़ा जा सकता है।
इन्हीं तूफ़ानी झंझावातों से गुज़रकर आई है रमणिका गुप्ता। आर्य समाज, कांग्रेस, समाजवादी और कम्युनिस्ट होने की उनकी यह यात्रा भारतीय राजनीति के नाटकीय मोड़ों का इतिहास भी है और विकास भी।
Tumhare Naam : Jan Nisar Akhtar ko Safia Akhtar ke khat
- Author Name:
Safia Akhtar
- Book Type:

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Description:
जाँ निसार अख़्तर और उनकी शरीके-हयात सफ़िया अख़्तर को साथ रहने का मौक़ा बहुत कम मिला। उस ज़माने में जब औरतों के लिए घर से बाहर जाकर काम करना बहुत आम बात नहीं थी, वे स्कूल में अपनी नौकरी करती रहीं और न सिर्फ़ अपनी और अपने बच्चों, बल्कि मुम्बई की फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी ज़मीन तलाश रहे जाँ निसार साहब के लिए भी सम्बल जुटाती रहीं।
ये ख़त उन्होंने इसी संघर्ष के दौरान लिखे, लेकिन ये ख़त सिर्फ़ उनके हाल-अहवाल की सूचना-भर नहीं देते, बल्कि वे एक बड़े सृजक की क़लम से उतरे शाहकार की तरह हमारे सामने आते हैं। ज़िन्दगी उन्हें कुछ और वक़्त देती तो निश्चय ही वे साहित्य की दुनिया को कुछ बड़ा देकर जातीं। इन ख़तों में उनकी मुहब्बत और हिम्मत के साथ-साथ उनकी और बेशक जाँ निसार अख़्तर की ज़िन्दगी खुलती जाती है, साथ ही उनका अपना दौर भी अपने तमाम स्याह-सफ़ेद के साथ रौशन होता जाता है। ये ख़त प्यार और हौसले से भरे एक दिल की अक़्क़ासी करते हैं। ये जादू की तरह असर करते हैं; इनका बेहद ताक़तवर और सधा हुआ ‘प्रोज़’ कहीं आपको रुकने नहीं देता, और इनकी तुर्श मिठास में डूबे-डूबे बारहा आपकी आँखें भर आती हैं।
उनके निधन के बाद जाँ निसार साहब ने उनके इन ख़तों को दो जिल्दों में प्रकाशित कराया—’हर्फ़े-आश्ना’ और ‘ज़ेरे-लब’। इस किताब में इन दोनों जिल्दों में संकलित ख़तों को दे दिया गया है।
Main Jahan-Jahan Chala Hun
- Author Name:
Dr. Gyaneshwar Muley
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Description:
मैं जहाँ-जहाँ चला हूँ पारम्परिक अर्थ में न सिर्फ़ यात्रा-वृत्त है, न सिर्फ़ संस्मरण, यह इन दोनों का मिला-जुला रूप है। हम इसे लेखक का प्रवास-वृत्त कह सकते हैं; वे स्वयं इन्हें ‘मेरे पड़ाव’ कहते हैं। गहरी उत्सुकता, जिज्ञासा, सहज ग्रहणशीलता और उत्फुल्ल हास्यबोध के साथ लेखक ने इन संस्मरणात्मक निबन्धों में उन स्थानों का वर्णन किया है, जहाँ-जहाँ उन्हें कुछ समय रहने का मौक़ा मिला जैसे जापान, मॉरीशस व पाकिस्तान और जहाँ-जहाँ उनका मन रुका, जैसे रेलवे स्टेशन, दिल्ली की सड़कें और देश-विदेश के नाई।
ज्ञानेश्वर मुले भारतीय विदेश सेवा में अधिकारी रहे हैं और मराठी के चर्चित लेखक, कवि तथा स्तम्भकार हैं। इस पुस्तक में वे हमें सूचनाओं और संवेदनाओं में सन्तुलित एक सुग्राह्य और आकर्षक गद्य उपलब्ध कराते हैं। जापान के लोगों का ‘साकुरा-प्रेम’ हो, या मॉरीशस के नागरिकों का ‘भारत-प्रेम’, पाकिस्तान के सरकारी तंत्र का सशंक बर्ताव हो या दिल्ली में फैला भारतीय इतिहास, उलझी सड़कें और अपने वंशजों को सीधी चुनौती देने वाले बन्दर, हर चीज़ और स्थान को वे एक रचनात्मक उछाह के साथ देखते हैं और उसी उछाह के साथ उसे पाठक तक पहुँचाते हैं। जहाँ ज़रूरत हो वहाँ व्यंग्य करते हैं, जहाँ ज़रूरत हो वहाँ संवेदना का भीना वितान बुन देते हैं और जहाँ ज़रूरत हो प्राकृतिक दृश्यों के सजीव-सचल चित्र खींच देते हैं।
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