Prabandhan Ke Gurumantra

Prabandhan Ke Gurumantra

Authors(s):

Suresh Kant

Language:

Hindi

Pages:

176

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

352 mins

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Book Description

प्रबन्धन आत्म-विकास की एक सतत प्रक्रिया है। अपने को व्यवस्थित-प्रबन्धित किए बिना आदमी दूसरों को व्यवस्थित-प्रबन्धित करने में सफल नहीं हो सकता, चाहे वे दूसरे लोग घर के सदस्य हों या दफ़्तर अथवा कारोबार के। इस प्रकार आत्म-विकास ही घर-दफ़्तर, दोनों की उन्नति का मूल है। इस लिहाज़ से देखें, तो प्रबन्धन का ताल्लुक़ कम्पनी-जगत के लोगों से ही नहीं, मनुष्य मात्र से है। वह इनसान को बेहतर बनाने की कला है, क्योंकि बेहतर इनसान ही बेहतर कर्मचारी, अधिकारी, प्रबन्धक या कारोबारी हो सकता है।</p> <p>‘प्रबन्धन के गुरुमंत्र’ में विद्वान् लेखक ने ‘व्यक्तिगत विकास’, ‘औद्योगिक सम्बन्ध’ और ‘निर्णयकारिता’ पर विभिन्न आयामों से विचार किया है। लेखक के अनुसार अपनी क्षमताओं की पहचान, अच्छी आदतों का विकास, निरन्तर ज्ञान-वृद्धि और अनुशासन ऐसे मूल्य हैं जिन पर चलकर आप एक सफल प्रबन्धक बन सकते हैं। कर्मचारी को प्रतिबद्ध कैसे बनाया जाए, असहमति को कैसे सुफलदायक बनाया जा सकता है और अनिर्णय किस तरह घातक हो सकता है, इन बिन्दुओं पर भी इस पुस्तक में विचार किया गया है।</p> <p>प्रबन्धकीय कौशल व क्षमता के विकास हेतु अवश्यमेव पढ़ी जानेवाली पुस्तक।

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