Uttari Bharat Ki Sant Parampara

Uttari Bharat Ki Sant Parampara

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‘उत्तरी भारत की सन्त-परम्परा’ कृति आचार्य परशुराम चतुर्वेदी की साहित्यिक साधना की वह अनन्यतम प्रस्तुति है, जिसके समानान्तर आज कई दशक बाद भी हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत वैसी कोई दूसरी रचना सामने नहीं आ सकी है। सन्त साहित्य के उद्भव से जुड़े अनेक प्रक्षिप्त मतों का खंडन करते हुए उसके मूल प्रामाणिक प्रेरणास्रोतों को प्रकाश में लाकर चतुर्वेदी जी ने उसकी अखंडता का जो अपूर्व परिचय प्रस्तुत किया है, वह हमारी साहित्यिक मान्यताओं से जुड़ी शोध-परम्परा का सर्वमान्य ऐतिहासिक साक्ष्य है।</p>
<p>परवर्ती काल में यह सन्त साहित्य उत्तर भारत के बीच पर्याप्त रूप से समृद्ध हुआ, किन्तु इसके प्रेरणासूत्र समग्र भारतीयता से सम्बद्ध है। महाराष्ट्र, केरल, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओड़िसा, बंगाल, आसाम, पंजाब आदि राज्यों में फैले हुए इसके प्रारम्भिक तथा परवर्ती सूत्र इस तथ्य के प्रमाण हैं कि यह जन-आन्दोलन के रूप में समग्र भारतीय लोकजीवन से जुड़ा रहा है। सन्त नामदेव, ज्ञानदेव, नानक, विद्यापति, कबीरदास, दादू आदि सन्तों ने अपनी सन्तवाणी से समग्र भारत की एकता, अखंडता को जोड़ते हुए हमें अन्धविश्वासों एवं रूढ़ मान्यताओं से मुक्त किया है। आचार्य परशुराम चतुर्वेदी की यह कृति इन तथ्यों की प्रस्तुति का सबसे प्रामाणिक और सबसे सशक्त दस्तावे़ज़ है।</p>
<p>आचार्य चतुर्वेदी की इस ऐतिहासिक धरोहर को पुन: समक्ष रखते हुए हम गर्व का अनुभव करते हैं और आशा करते हैं कि पाठक समाज इसे पूर्ववत् निष्ठा के साथ स्वीकार करेगा।

ISBN: 9789389243222

Pages: 528

Avg Reading Time: 18 hrs

Age : 18+

Country of Origin: India

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