Swami Vivekanand Sanchayita
Author:
Ramshankar DiwediPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
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Price: ₹ 796
₹
995
Available
“धर्म को ग्रहणशील होना चाहिए और ईश्वर सम्बन्धी अपने विश्वासों में भिन्नता के कारण एक-दूसरे का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। ईश्वर सम्बन्धी सभी सिद्धान्त मानव-सिद्धान्त के तहत आने चाहिए। और जब धर्म इतने उदार हो जाएँगे तो उनकी कल्याणकारी शक्ति सौ गुना हो जाएगी। धर्मों में अद्भुत शक्ति है लेकिन उनकी संकीर्णताओं के कारण उनसे लाभ की जगह हानि ज़्यादा हुई है।"
ये शब्द स्वामी विवेकानन्द के हैं जो अपने एक अन्य लेख में यह भी कहते हैं कि, “लोग भारत के पुनरुद्धार के विषय में जो जी में आए कहें, मैं अपने अनुभव के बल पर कह सकता हूँ कि जब तक तुम सच्चे अर्थों में धार्मिक नहीं होते, भारत का उद्धार होना असम्भव है।” स्वामी विवेकानन्द भारत के ऐसे चिन्तक थे जिनके विषय में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने रोम्यां रोलां को लिखा था कि अगर आप भारत को जानना चाहते हैं तो सबसे पहले विवेकानन्द का अध्ययन कीजिए।
धर्म और धार्मिक होने के सन्दर्भ में उन्हीं स्वामी विवेकानन्द के उपरोक्त दो कथन स्वयं घोषित करते हैं कि आज इक्कीसवीं सदी में वे हमारे लिए कितने उपयोगी और प्रासंगिक हैं। आज जब विचार को लेकर नहीं धर्मों के झंडों को लेकर दुनिया एक नए ध्रुवीकरण की दिशा में बढ़ रही है, हमें धार्मिक होने के सही मायने समझने की ज़रूरत है। सभी धर्म अलग-अलग समय और अलग-अलग जगहों पर उस स्थान और काल की समस्याओं से निजात पाने के प्रयासों के रूप में सामने आए, और अगर कालान्तर में चलकर वे व्यक्ति की इयत्ता का, उसकी पहचान का, उसके सामूहिक बोध और यहाँ तक कि राष्ट्रों तक का आधार बन गए तो इससे सिर्फ़ यह पता चलता है कि न तो कोई धर्म अपने आप में पूर्ण है और न ही व्यक्ति अभी इतना विकसित हुआ है कि वह धर्म के बिना अपना काम चला सके। कह सकते हैं कि हमें अभी सच्चे अर्थों में धार्मिक होना नहीं आया। धर्मों के सांसारिक-राजनीतिक दुरुपयोग की वजह भी यही है।
ऐसे समय स्वामी विवेकानन्द के लेखों, भाषणों, कक्षालापों के इस प्रतिनिधि संचयन का प्रकाशन विशेष महत्त्व रखता है। आशा है कि इसके अध्ययन से हमें धर्म, नैतिकता, भक्ति, ईश्वर और हिन्दुत्व के सच्चे अर्थों तक पहुँचने में मदद मिलेगी।
ISBN: 9788126727353
Pages: 456
Avg Reading Time: 15 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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