
Pollyanna
Author:
Eleanor H. PorterPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
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Price: ₹ 120
₹
150
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789351866671
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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कवि नंद चतुर्वेदी मनुष्य की स्वाधीनता और गरिमा की रक्षा के संकल्प के साथ उसके लिए तमाम अवसरों की उपलब्धता चाहते हैं। उनकी आकांक्षा है कि ये अवसर मनुष्य के सम्पूर्ण अभ्युदय के हों, उसके जीवन में सम्पूर्ण प्रकाश और तमाम उल्लासों के हों। वे मनुष्य होने की गरिमा के निर्वाह के लिए किसी भी लड़ाई के लिए तैयार हैं और उसके लिए लोकतंत्र को एक जरूरी उपाय मानते हैं। आकस्मिक नहीं कि औपनिवेशिक दासता के दौर से निकलकर भारतीय लोकतंत्र के बनने और उस पर हो रहे आघातों को वे अपनी कविताओं का विषय बनाते हैं। मनुष्य की स्वाधीनता में उन्हें धर्म जहाँ भी बाधक लगता है वे उसका मुँहतोड़ प्रतिकार करते हैं। इस बिन्दु पर वे बड़े सेक्युलर (सांसारिक) हो जाते हैं जो निर्भय होकर किसी भी सत्ता से भिड़ना जानता है।
राजनीति वह क्षेत्र है जहाँ से नंद बाबू का कवि ऊर्जा ग्रहण करता है। वे आततायी राजनीति का चेहरा उघाड़ते हैं और मनुष्यधर्मी राजनीति की प्रस्तावना भी करते हैं। उनका स्वाधीन भारत के समाजवादी दलों से सीधा जुड़ाव भी रहा और वे किसी कार्यकर्ता की तरह आन्दोलनों, रैलियों और चुनावों में भागीदारी करते रहे। उनके ये जीवनानुभव जब कविताओं में रूपान्तरित होकर आते हैं तब नॉस्टेल्जिया उनकी कविताओं की रूढ़ि नहीं शक्ति प्रतीत होता है।
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नंद चतुर्वेदी की काव्य यात्रा केवल कविताएँ लिखने तक सीमित नहीं थी। इस काव्य यात्रा में प्रभूत गद्य भी लिखा गया है। यह गद्य मोटे तौर पर दो प्रकार का है। चिन्तन-आलोचना-समीक्षा का गद्य और स्मृतियों का गद्य। ‘रचनावली’ के दूसरे खंड में चिन्तन-आलोचना-समीक्षा का गद्य संकलित कर लिया गया है। इस गद्य को पढ़ना नंद बाबू के काव्य सरोकारों को समझने का रास्ता देता है। ‘सप्त किरण’ शीर्षक से उन्होंने राजस्थान के कवियों की एक पुस्तक का सम्पादन भी किया था और इसे वे अस्तित्व रक्षा की संज्ञा देते थे। तो कहना न होगा कि अस्तित्व रक्षा के साथ प्रारम्भ हुआ आलोचना, सम्पादन और समीक्षा का यह सिलसिला पूरी शताब्दी तक नंद बाबू को सक्रिय बनाए रखता है। उन्होंने राजस्थान के हिन्दी कवियों के एक बड़े चयन का सम्पादन भी किया। गद्य लेखन नंद बाबू के लिए जीवनपर्यन्त आपद धर्म बना रहा। वे कवि थे और कविता के सम्बन्ध में निरन्तर विचार करना उन्हें प्रिय था।
नंद बाबू कवि होने के साथ सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विचार के समर्थक भी हैं। वे साहित्य को लोक शिक्षण का सस्ता औजार भले न मानते रहे हों तब भी उन्हें लोक रुचियों के विविध पक्षों पर लिखना जरूरी लगता था। उनके ऐसे ही निबन्धों की किताब ‘यह हमारा समय’ में उनके दो दर्जन से अधिक निबन्ध संकलित हैं जो हमारे जीवन और समय के विविध समकालीन पक्षों पर विचार करते हैं। नंद बाबू के इन निबन्धों में प्रवाह और ताजगी तो है ही भाषा की सुन्दर छवियाँ भी हैं। मनुष्य की मुक्ति उनकी चिन्ताओं का सबसे बड़ा केन्द्र है और उसके लिए वे समता को आवश्यक शर्त मानते हैं। गैर-बराबरी से अधिक मनुष्य विरोधी उन्हें शायद कुछ नहीं लगता और इस विषय पर वे अनेक बार लिखते हैं।
नंद बाबू ने ‘धर्मयुग’ जैसी पत्रिका के लिए लिखा तो लघु पत्रिकाओं और लघु समाचार-पत्रों के लिए भी लिखा। उनके इस गद्य लेखन में जहाँ काव्य की सौन्दर्यपक्षीय चिन्ताएँ हैं वहीं काव्य के उपयोगपक्ष की वस्तुनिष्ठ चिन्ताओं पर भी लगातार जिरह भी। कवि का यह गद्य उनके काव्य संसार को बेहतर ढंग से समझने का रास्ता देता है, मनुष्यता के रास्तों का संधान करता है तो इसे पढ़ना प्रसन्न गद्य को पढ़ना भी है।
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नंद बाबू राजस्थान में समाजवादी आन्दोलन के जमीनी सिपाहियों में रहे हैं। अपने साथियों पर लिखते हुए सम्बन्धों की ऊष्मा की आँच नंद बाबू पाठकों तक पहुँचाते हैं। हीरालाल जैन और नरेंद्रपाल सिंह जैसे अपने स्थानीय साथियों के अलावा देश में समाजवादी आन्दोलन के अगुआ रहे जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया पर भी उन्होंने लिखा।
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कथेतर की विभिन्न विधाओं में संकलित इस खंड में नंद चतुर्वेदी की रचनाशीलता के अनेक रूप विद्यमान हैं जो कवि के व्यापक दाय का प्रमाण बन गए हैं।
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‘नंद चतुर्वेदी रचनावली’ के चौथे और अन्तिम खंड में मुख्यत: कवि का अनुवाद कर्म है। नंद बाबू ने कविता और गद्य दोनों का अनुवाद किया। माना जाता है कि काव्यानुवाद बहुत मुश्किल साहित्य कर्म है क्योंकि अनुवादक ऐसा ही व्यक्ति होना चाहिए जो दोनों भाषाओं को ठीक से जानता हो। नंद बाबू ने साहित्यिक पत्रिकाओं के आग्रह पर काव्यानुवाद किये। ये काव्यानुवाद बहुत पुरानी प्राकृत की कविताओं के थे जो हाल कवि की गाथा सप्तशती से अंग्रेजी के रास्ते आए थे। ठीक इसी तरह कुछ संथाली कविताओं का अनुवाद भी उन्होंने किया जिन्हें अंग्रेजी में कवि सीताकांत महापात्र ने प्रस्तुत किया था। इन दोनों काव्यानुवादों में नंद बाबू की अपनी मेधा दिखाई देती है जो इन कविताओं की मूल संवदेना तक पाठकों को पहुँचाने में समर्थ है। इससे पहले उन्होंने अपनी पत्रिका बिंदु और उस दौर की अनेक पत्रिकाओं के लिए साहित्य शास्त्र तथा साहित्य के अन्य प्रासंगिक विषयों पर लिखे प्रसिद्ध अंग्रेजी निबंधों का अनुवाद भी किया।
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