
Madhya Prant Aur Barar Mein Adivasi Samsyayen
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
575
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
1150 mins
Book Description
जनजातीय समाज की अवहेलना सदियों से की जाती रही है और मौजूदा समय में भी बरकरार है, जिनकी अनगिनत समस्याओं को दरकिनार कर उनकी ज़मीनों के मालिकाना हक़ों को उनसे सरकारी या ग़ैर-सरकारी तरीक़ों से हड़पा जाता रहा है। उनकी कठिनाइयों और समस्याओं का सूक्ष्म दृष्टि से आकलन करता यह दस्तावेज़ हमारे सम्मुख उस जीवन-दृश्य को प्रस्तुत करता है, जो नारकीय है।</p> <p>प्रस्तुत पुस्तक मध्यप्रान्त और बरार में रहनेवाले जनजातीय समाज की उन विषम समस्याओं से हमें अवगत कराती है कि कैसे समय-समय पर उनकी ज़मीनों, परम्पराओं, भाषाओं से अलग-थलग करके उन्हें ‘निम्न’ जाँचा गया है और कैसे उन्हें साहूकारी के पंजों में फँसाकर बँधुआ मज़दूरी के लिए बाध्य किया गया है।</p> <p>यहाँ उनकी समस्याओं का एक गम्भीर विश्लेषण है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पशु-चिकित्सा आदि के नाम पर उन पर जबरन एक ‘सिस्टम’ थोपा गया जिससे उनकी समस्याएँ कम होने के बजाय और बढ़ी हैं।</p> <p>डब्ल्यू.वी. ग्रिग्सन की अंग्रेज़ी पुस्तक से अनूदित यह पुस्तक जहाँ एक तरफ़ जनजातीय समस्याओं पर केन्द्रित हिन्दी पुस्तकों के अभाव को दूर करती है, वहीं दूसरी ओर शोधकर्ताओं और समाज के उत्थान में जुटे कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन भी करती है।