Lekhak Ka Jantantra

Lekhak Ka Jantantra

Authors(s):

Krishna Sobti

Language:

Hindi

Pages:

216

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

432 mins

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Book Description

कृष्णा सोबती के लिए लेखक की पहचान एक साधारण नागरिक का बस थोड़ा-सा विशेष हो जाना है। समाज की मंथर लेकिन गहरी और शक्तिशाली धारा में अपनी क़ीमत पर पैर जमाकर खड़ा हुआ एक व्यक्ति जो जीवन को जीते हुए उसे देखने की कोशिश भी करता है। उनके अनुसार लेखक का काम अपनी अन्तरभाषा को चीन्हते और सँवारते हुए अज्ञात दूरियों को निकटताओं में ध्वनित करना है।</p> <p>लेखक की इस पहचान को स्वयं उन्होंने जिस अकुंठ निष्ठा और मौन संकल्प के साथ जिया, उसके आयाम ऐतिहासिक हैं। उनका लेखक सिर्फ़ लिखता नहीं रहा, उसने अपनी सामाजिक, राजनैतिक और नागरिक ज़िम्मेदारियों का आविष्कार भी किया और लेखकीय अस्तित्व के सहज विस्तार के रूप में उन्हें स्थापित भी किया।</p> <p>उन्होंने कई बार पुरस्कारों और सम्मानों को लेने से इनकार किया, क्योंकि वह उन्हें लेखक होने की हैसियत से ज़रूरी लगा। उन्होंने दशकों-दशक एक सम्पूर्ण रचना के अवतरण की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की,  क्योंकि लेखक होने की उनकी अपनी कसौटी बहुत ऊँची और कठोर रही। लेखक के रूप में अपने युवा दिनों में ही उन्होंने अपने पहले और बड़े उपन्यास को एक प्रतिष्ठित प्रकाशक से छपाई के बीच में ही इसलिए वापस ले लिया कि उन्हें अपनी भाषा से खिलवाड़ स्वीकार नहीं था। उन्होंने जीवन के लगभग तीन दशक कॉपीराइट की सुरक्षा के लिए लोकप्रियता और राजनीतिक पहुँच की धनी ताक़तों से अकेले अदालती लड़ाई लड़ी।</p> <p>और आज उन्हें अपने स्वास्थ्य से ज़्यादा चिन्ता इस बात की है कि सत्तर साल की आज़ादी के बाद देश फिर एक ख़तरनाक मोड़ पर है। वे रात-दिन सोचती हैं कि भेदभाव की राजनीति के चलते जैसे उन्हें 1947 में विभाजन की विभीषिका से गुज़रना पड़ा, कहीं आज की राजनीति वही समय आज के बच्चों के लिए न लौटा लाए! मौजूदा सरकार की राजनीतिक और वैचारिक संकीर्णताएँ उन्हें एक सात्त्विक क्रोध से भर देती हैं जिसमें पूरी सदी छटपटाती दिखाई पड़ती है।</p> <p>इस पुस्तक में हमने उनके कुछ चुनिन्दा साक्षात्कारों को संकलित किया है जो अलग-अलग कालखंडों में अलग-अलग आयु और भिन्न अनुशासनों के लेखकों, पत्रकारों और विचारकों ने उनसे किए। पाठक इन्हें पढ़कर स्वयं महसूस करेगा कि साहित्य की, लेखक की और नागरिक की मुकम्मल तस्वीर कैसे बनती है।

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