Aap Hi Baniye Krishna
Author:
Girish P. JakhotiyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Management0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
महाभारत के चरित्रों में अकेले कृष्ण हैं, जिनका किसी न किसी रूप में प्रायः सभी चरित्रों से जुडाव रहा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे सिंहासन पर विराजमान सम्राट से लेकर गली-कूचों में घूमनेवाली ग्वालिनों तक सबसे उनके स्तर पर जाकर संवाद ही नहीं कर लेते थे, उन्हें अपनी नीति और राजनीति का पोषक भी बना लेते थे। बचपन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक देश-भर में उन्होंने जो किया और जैसे किया, उनके सिवा और कौन कर सका? अपने हर काम से वे विपक्षी को पस्त-परास्त और निरस्त्र ही नहीं कर देते थे, उसे अपना अनुरक्त भी बना लिया करते थे। अपने कारनामों के औचित्य के अदभुत-अपूर्व तर्क भी वे जुटा लिया करते थे। धरती के भविष्य को सँवारने और पर्यावरण को बचाने के साथ-साथ सबको प्यार देने और सबका प्यार पाने में कृष्ण पूर्णतः सफल सिद्ध हुए। योगेश्वर कृष्ण की क्रन्तिकारी नीतियों, सफल रणनीतियों, दार्शनिक विचारों और नेतृत्व की अदभुत शैलियों को प्रबन्धन की दृष्टि से विवेचित-विश्लेषित करनेवाली <strong>हिन्दी</strong> की एक ऐसी पुस्तक, जिसे पढ़कर आप भी अपने जीवन को कृष्ण की तरह एक विजेता के रूप में ढाल सकते हैं।
ISBN: 9788126715039
Pages: 171
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Yes Mr. Finance Minister
- Author Name:
Prakash Biyani
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Sampatti ka Srijan
- Author Name:
R.M. Lala
- Book Type:

-
Description:
सन् 1868 में जमशेतजी टाटा ने एक व्यापारिक कम्पनी की शुरुआत की तो शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि वे आधुनिक भारत के निर्माण की दिशा में नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं। जमशेतजी के सामने यह स्पष्ट था कि भारत के औद्योगिक विकास के लिए तीन घटक सबसे महत्त्वपूर्ण हैं : पहला इस्पात, दूसरा हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर और तीसरा तकनीकी शिक्षा और शोध। आज लगभग डेढ़ सदी बाद टाटा परिवार दावा कर सकता है कि उन्होंने अपने संस्थापक के सपनों को पूर्णतया साकार किया है।
लेकिन सफलता की यह मंज़िल आसान नहीं रही है। इस पुस्तक में पहली बार हम जान पाते हैं कि 1992 के आर्थिक सुधारों के बाद, कम्पनी ने किस प्रकार अपना रास्ता बनाया। पुस्तक का उपसंहार स्वयं रतन टाटा ने लिखा है और इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से, सहकर्मियों के प्रतिरोध समेत, उन तमाम कठिनाइयों के बारे में बताया है जिनका सामना उन्हें नई परिस्थितियों के अनुसार ढलने में करना पड़ा।
यह बहुपठित और बहुचर्चित पुस्तक हमें विस्तार से बताती है कि भारतीय राष्ट्र के निर्माण में, न सिर्फ़ उद्यमी के रूप में बल्कि फैक्टरी सुधारों, श्रम एवं सामाजिक कल्याण, औषधीय शोध, उच्च-शिक्षा, संस्कृति-कला और ग्रामीण विकास आदि क्षेत्रों में अपने योगदान के रूप में भी टाटा ने कितनी अहम भूमिका निभाई है।
Shunya Se Shikhar
- Author Name:
Prakash Biyani
- Book Type:

-
Description:
देश की अर्थव्यवस्था को लाइसेंसी राज की बेड़ियों से मुक्त कराकर आर्थिक स्वतंत्रता के वैश्विक रास्ते पर ले जानेवाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं—‘दुनिया में लोग चीन की तरक़्क़ी से आशंकित होते हैं, लेकिन इसके विपरीत भारत की आर्थिक तरक़्क़ी को सकारात्मक नज़रिए से देखते हैं...’
व्हार्टन स्कूल ऑफ़ द यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिल्वेनिया के प्रोफ़ेसरों के अध्ययन का निष्कर्ष है—‘वैश्विक आर्थिक मन्दी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतर प्रदर्शन किया, क्योंकि भारतीय उद्योगपतियों के कामकाज का अपना तौर-तरीक़ा है...।
कभी विदेशी उद्योगपति हमारी कम्पनियाँ ख़रीदते थे, आज भारतीय ‘कॉरपोरेट-हाट’ के बड़े सौदागर हैं। यहाँ तक कि कभी भारत पर राज करनेवाली ईस्ट इंडिया कम्पनी के नए मालिक हैं—मुम्बई में जन्में उद्योगपति संजीव मेहता...।
ऐसी सकारात्मक सच्चाइयों से प्रेरित इस पुस्तक ‘शून्य से शिखर’ में इंडियन कॉरपोरेट्स’ में 35 भारतीय उद्योगपतियों की यशोगाथा दोहराई गई है, जो साबित करती है कि भारतीय ठान लें तो कुछ भी कर सकते हैं, वह भी दूसरों से बेहतर।
Management Seekhen Mahatma Se
- Author Name:
Vijay Joshi
- Book Type:

-
Description:
प्रबन्धन आज बाक़ायदा एक शिक्षा-सरणी है जिसके तहत विद्यार्थी को कुछ निश्चित और सीमित अर्थों में प्रबन्धक के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। शायद इसी कारण आज हमारे कॉरपोरेट जगत में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के होलिस्टक विकास की कोई जगह नहीं रही।
यह पुस्तक प्रबन्धन को उन आधारभूत नैतिक मूल्यों से जोड़ती है जो व्यावसायिक तथा व्यावहारिक कार्यों को भी विराटतर मानवीय हित के बड़े धरातल पर ले जा सकते हैं और इसके लिए इसमें महात्मा गांधी के जीवन तथा विचारों को आधार बनाया गया है।
हम सभी जानते हैं कि गांधी स्वयं एक कुशल प्रबन्धक थे, और उन्होंने अपनी नेतृत्व-क्षमता से अकल्पनीय जनान्दोलनों को सम्भव बनाया। और इसके लिए उन्होंने कुछ ऐसे सूत्रों को अपने दैनिक जीवन में अपनाया, जिन्हें लोग हमेशा से जानते थे लेकिन उन पर उस निष्ठा तथा सच्चाई के साथ अमल नहीं करते थे जैसा महात्मा ने किया।
झूठ से भरसक दूरी, अपनी कमियों को स्वीकार कर उन्हें सुधारना, वचनबद्धता, हर काम को समान भाव से देखना, हर किसी से सीखने को तैयार रहना, श्रम का सम्मान करना, समय के मूल्य को समझना, और जब ज़रूरत हो अकेले चलने की हिम्मत जुटाना—यह कुछ बहुत साधारण मूल्य हैं जिन्हें बापू ने अपनाया। और ये एक अनूठे नेता के रूप में सबसे ज़्यादा चमके।
यह पुस्तक बताती है कि यही बातें व्यवहार में लेकर हम आज अपने प्रबन्धनीय कौशल को प्रभावशाली बना सकते हैं।
Bharat Ki Shatabdi
- Author Name:
Kamalnath
- Book Type:

-
Description:
विगत कुछ वर्षों में भारत एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है और आज वह अपने नागरिकों और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के लिए अरबों की सम्पत्ति का सृजन कर रहा है। प्रश्न है कि भारत ने ग्लोबल मार्केट में यह निर्णायक स्थिति कैसे हासिल की? इतना ही अहम सवाल यह भी है कि भारत की व्यावसायिक सम्भावनाओं और विभिन्न उद्योगों में उल्लेखनीय वृद्धि क्षमता का उपयोग पश्चिमी विश्व कैसे कर सकता है और कैसे वह दुनिया के इस विशालतम लोकतंत्र के साथ एक लाभदायक रिश्ता क़ायम कर सकता है? इन सवालों के जवाब भला श्री कमलनाथ से बेहतर कौन दे सकता है। देश के भीतर और बाहर विश्व में इक्कीसवीं सदी के भारत का चेहरा कहे जानेवाले और भारत के आर्थिक सुधारों के प्रमुख शिल्पकार कमलनाथ का पूरा जीवन सत्ता के गलियारों में बीता है और जिन नीतियों ने भारत को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, उनके निर्माण में भी उनकी अहम भूमिका रही है।
‘भारत की शताब्दी’ पुस्तक में श्री कमलनाथ भारतीय आर्थिक चमत्कार की जड़ों तक पहुँचने के लिए ‘फ़्लैट वर्ल्ड’ की अवधारणा से आगे जाते हैं और गहन आर्थिक विश्लेषण, राजनीतिक अन्तर्दृष्टि तथा सांस्कृतिक समझ के द्वारा 1947 में औपनिवेशिक शासन के ख़ात्मे से लेकर नियोजित अर्थव्यवस्था के चार दशकों और 1990 के दशक में क्रमबद्ध उदारीकरण से होते हुए एक विश्व-शक्ति के रूप में भारत के उभरने तक की यात्रा का अन्वेषण करते हैं।
इस पुस्तक में श्री कमलनाथ भारतीय जन-गण की ‘जुगाड़’ की क्षमता को रेखांकित करते हुए उसकी सदियों पुरानी उद्यमशीलता की तरफ़ भी संकेत करते हैं जो आज फिर समाज के हर स्तर पर अपने आपको स्वतंत्रतापूर्वक अभिव्यक्त कर रही है। इसी के साथ एक राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में वे व्यवसायियों और विश्व के नीति-निर्माताओं के लिए वह आधारभूत समझ भी उपलब्ध कराते हैं जिसका उपयोग 21वीं सदी में भारत के साथ लाभदायक द्विपक्षीय सम्बन्धों और नीतियों की रचना में किया जा सकता है।
यह पुस्तक व्यावसायिक रणनीतिकारों और सार्वजनिक नीति-निर्माताओं के साथ-साथ हर उस विचार-सम्पन्न पाठक के लिए अनिवार्य है जो विश्व के सबसे विशाल और सबसे गतिशील लोकतंत्र यानी भारत के बारे में जानना चाहता है और उस भूमिका को समझना चाहता है जिसे आनेवाले वर्षों में यह देश विश्व मंच पर निभाने जा रहा है।
Upbhokta Vastuon Ka Vigyan
- Author Name:
Ramchandra Mishra
- Book Type:

-
Description:
प्रत्येक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने दैनिक जीवन में वस्तुतः उपभोक्ता होता है। उपभोक्ता वस्तुओं का प्रयोग सर्वव्यापक और नित्य क्रिया है। खाने-पीने की वस्तुओं और पहनने-ओढ़ने की चीज़ों से लेकर आवास, साफ़-सफ़ाई, सुरक्षा-बचाव, साज-सँवार तथा भोग-विलास से सम्बन्धित अनेकानेक वस्तुओं का दिन-रात निरन्तर प्रयोग किया जाता है।
दैनिक उपयोग की वस्तुओं की गुणवत्ता, संघटन, विश्वसनीयता, उपयोग के लाभालाभ, सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभाव आदि आवश्यक तथ्यों यानी उपभोक्ता वस्तुओं के विज्ञान से उपभोक्ता प्रायः कम ही अवगत होते हैं। दूसरी तरफ़ बाज़ार की नई प्रवृत्ति ने उपभोक्ता वस्तुओं को नया रूप दिया है। अब उपभोक्ता विज्ञापन की चकाचौंध में घटिया वस्तुओं को भी वरण कर लेता है। इसकी वजह है उपभोक्ता जानकारी और मार्गदर्शन का अभाव।
यह पुस्तक उपभोक्ता वस्तुओं के बारे में कही-सुनी बातों के बजाय हमें ठोस वैज्ञानिक जानकारी देती है जिसके आधार पर हम अपने उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।
Saphal Prabandhan Gandhi Darshan
- Author Name:
Vijay Joshi
- Book Type:

-
Description:
कुशल तथा सफल प्रबन्धक उसे कहा जाता है जो अपने साथ काम करनेवाले लोगों के सामने स्वयं एक नैतिक उदाहरण के रूप में खड़ा हो सके। प्रबन्धन लोगों से काम निकालने की ट्रिक नहीं, उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ देने की प्रेरणा है। यह पुस्तक बताती है कि इस लिहाज़ से गांधी जी से बड़ा कोई प्रबन्धन हमारे पास नहीं है।
गांधी ने केवल अपने जीवन-व्यवहार तथा कठोर सिद्धान्त-पालन से लाखों लोगों को प्रभावित किया। न सिर्फ़ प्रभावित बल्कि एक कठिन कार्य में उन्हें स्वयं आगे आकर हिस्सेदार बनने की प्रेरणा भी दी।
इस पुस्तक में हमें गांधी-जीवन तथा दर्शन के ऐसे ही बिन्दुओं से परिचित कराया गया है, जो हमेशा एक सक्षम नेतृत्व के लिए आधार-स्तम्भ का काम करते रहेंगे। लेखक का विश्वास है कि उन सूत्रों को अपनाकर हम आज भी अपने व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक जीवन को सन्तुलन तथा सार्थकता दे सकते हैं।
बापू के जीवन के कुछ दिलचस्प और प्रेरक प्रसंगों के हवाले से यह पुस्तक हमें उन जीवन-मूल्यों का बोध कराती है जिन्हें उन्होंने पुस्तकों से निकालकर सशक्त सामाजिक हथियारों के रूप में बदला।
विजय जोशी की यह पुस्तक भी उनके अपने प्रबन्धकीय अनुभवों पर आधारित है। वे मानते हैं कि गांधी इस सदी के सबसे बड़े मैनेजमेंट गुरु थे। साध्य के बजाय साधन की शुचिता पर ज़ोर देकर उन्होंने प्रबन्धन तथा नेतृत्व की परिपाटी को एक नितान्त भारतीय रूप दे दिया था।
Local se Global
- Author Name:
Prakash Biyani
- Book Type:

-
Description:
हाँ, हम तैयार हैं...
—देश की अर्थव्यवस्था को लाइसेंसी राज की बेड़ियों से मुक्त कराकर आर्थिक स्वतंत्रता के वैश्विक रास्ते पर ले जानेवाले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं—‘दुनिया में लोग चीन की तरक़्क़ी से आशंकित होते हैं, लेकिन इसके विपरीत भारत की आर्थिक तरक़्क़ी को सकारात्मक नज़रिये से देखते हैं...’
—व्हार्टन स्कूल ऑफ़ द यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेंसिल्वेनिया के चार प्रोफ़ेसरों के अध्ययन का निष्कर्ष है—‘वैश्विक आर्थिक मन्दी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतर प्रदर्शन किया क्योंकि वहाँ के उद्योगपतियों के कामकाज का अपना तौर-तरीक़ा है...’
—भारतीय अर्थव्यवस्था सन् 2020 में तीन ट्रिलियन डॉलर होगी...
—कभी विदेशी उद्योगपति हमारी कम्पनियाँ ख़रीदते थे, आज भारतीय ‘कॉरपोरेट-हाट’ के बड़े सौदागर हैं। यहाँ तक कि कभी भारत पर राज करनेवाली ईस्ट इंडिया कम्पनी के नए मालिक हैं—मम्बई में जन्मे उद्योगपति संजीव मेहता...
ऐसी सकारात्मक सच्चाइयों से प्रेरित इस पुस्तक ‘लोकल से ग्लोबल : इंडियन कॉरपोरेट्स’ में उदारीकरण के दूसरे दशक (2001-2010) में भारतीय उद्योग जगत की ֹ‘लोकल से ग्लोबल’ बनने की सफल कोशिश दोहराई गई है। यह पुस्तक उन पचास भारतीयों की यशोगाथा है, जिन्होंने साबित किया है कि भारतीय ठान लें तो कुछ भी कर सकते हैं, वह भी दूसरों से बेहतर।
Saphal Prabandhan Ke Gur
- Author Name:
Suresh Kant
- Book Type:

-
Description:
प्रबन्धन आत्म-विकास की एक सतत प्रक्रिया है। अपने को व्यवस्थित-प्रबन्धित किए बिना आदमी दूसरों को व्यवस्थित-प्रबन्धित करने में सफल नहीं हो सकता, चाहे वे दूसरे लोग घर के सदस्य हों या दफ़्तर अथवा कारोबार के। इस प्रकार आत्म-विकास ही घर-दफ़्तर, दोनों की उन्नति का मूल है। इस लिहाज़ से देखें, तो प्रबन्धन का ताल्लुक़ कम्पनी-जगत के लोगों से ही नहीं, मनुष्य मात्र से है। वह इनसान को बेहतर बनाने की कला है, क्योंकि बेहतर इनसान ही बेहतर कर्मचारी, अधिकारी, प्रबन्धक या कारोबारी हो सकता है।
‘सफल प्रबन्धन के गुर’ में कार्य-स्वीकृति यानी ‘वर्क कल्चर’, ‘बिक्री, विपणन और नेगोशिएशन’ तथा ‘नेतृत्व-कौशल’ शीर्षक उपखंडों में ईमानदारी, दफ़्तरी राजनीति, सहकर्मियों के पारस्परिक सम्बन्धों, व्यक्तिगत कार्यकुशलता, कार्य के प्रति प्रतिबद्धता, ग्राहक से सम्बन्ध, मार्केटिंग और व्यावसायिक साख आदि बिन्दुओं पर विचार करते हुए नेतृत्व-कौशल के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया है।
आत्मविकास और प्रबन्धन की एक व्यावहारिक निर्देशिका।
Tata Steel Ka Romance
- Author Name:
R.M. Lala
- Book Type:

-
Description:
‘टाटा परिवार’ की कहानी इतिहास ने ख़ुद अपने हाथों से लिखी। कोई सौ साल पहले जमशेतजी टाटा ने भारत के तत्कालीन राज्य सचिव लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टन से निवेदन किया था कि वे भारत का पहला इस्पात कारख़ाना शुरू करने में ब्रिटिश शासन की ओर से सहायता करें। इधर कुछ ही समय पहले टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी ने अपने पंजीकरण की सौवीं वर्षगाँठ पर एंग्लो-डच इस्पात कम्पनी ‘कोरस’ को खरीदा और इस तरह इतिहास का एक चक्र पूरा हुआ।
आर.एम. लाला ने अपनी इस पुस्तक में टाटा स्टील के सौ सालों के इतिहास का अन्वेषण किया है, जिसमें उन्होंने लौह अयस्क और कोकिंग कोल की तलाश में बैलगाड़ियों में जंगल-जंगल भटकने से लेकर, कम्पनी के मौजूदा विश्वस्तरीय स्वरूप का वर्णन किया है। इस क्रम में लेखक ने उन लोगों के साहस, दृष्टि और प्रतिबद्धता की अभी तक अनचीन्ही भावनाओं को स्वर दिया है जिन्होंने भारत की पहली आधुनिक औद्योगिक इकाई की रचना की। इस कहानी में आर.एम. लाला टाटा स्टील के सामने आई उन तमाम बाधाओं का जिक्र भी करते हैं जिनसे संघर्ष करते हुए कम्पनी ने आख़िरकार जीत हासिल की। इसमें वित्तीय संसाधनों की जद्दोजेहद, सरकारी नियंत्रणों के बावजूद आगे बढ़ने की हिम्मत, मज़दूरों के लिए मानवीय कार्य स्थितियाँ बनाने की कोशिशें, उदारीकरण के दौर में प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने का हौसला आदि तमाम पहलुओं को रेखांकित किया गया है।
दुर्लभ तथ्यात्मक सामग्री और चित्रों को समाहित कर लेखक ने इस पुस्तक को संग्रहणीय और पठनीय बना दिया है।
Beema Prabandhan Evam Prashashan
- Author Name:
M. N. Mishra
- Book Type:

-
Description:
‘बीमा प्रबन्ध एवं प्रशासन’ बीमा व्यवसाय के सफल संचालन की एकमात्र पुस्तक है। इसे गहन शोध और विस्तृत अध्ययन के बाद लिखा गया है। बीमा व्यवसाय का प्रबन्धन एवं निर्देशन कैसे किया जाए, इस पुस्तक के अध्ययन से पता लग सकता है।
इस पुस्तक में सात खंड हैं जो विभिन्न कार्यक्षेत्रों के संचालन में सहायक हैं। बीमा परिचय, प्रबन्ध एवं प्रशासन को प्रथम खंड में दिया गया है, जिसमें बीमा की परिभाषा एवं स्वभाव, बीमा का विकास एवं संगठन, बीमा प्रसंविदा, प्रबन्ध, प्रशासन एवं संगठन, जीवन बीमा निगम संगठन का रूप, सामान्य बीमा निगम, जीवन बीमा प्रसंविदा, सामुद्रिक बीमा प्रसंविदा और अग्नि बीमा परिचय एवं प्रसंविदा का वर्णन है। द्वितीय खंड में कार्यालय संगठन और प्रबन्ध की विवेचना है, जिसमें कार्यालय अभिन्यास एवं कार्य-दशाएँ, कार्यालय फर्नीचर, उपकरण एवं मशीनें, कार्यालय पद्धति, कार्यालय संगठन और कार्यालय प्रबन्ध का वर्णन है। कायिक प्रबन्ध का विश्लेषण तृतीय खंड में है जिसमें कार्यालय कार्यकर्त्ता प्रबन्धन, विक्रय संगठन एवं प्रबन्ध, अभिकर्त्ता की नियुक्ति, अभिकर्त्ता का प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण एवं प्रेरणा और अभिकर्त्ता का नियंत्रण बताया गया है। चतुर्थ खंड विपणन का है जिसमें विक्रय-कार्यकर्त्ताओं का संगठन, कार्यक्षेत्रीय कार्यकर्त्ताओं के गुण, बीमा विक्रय विधि, प्रचार एवं तर्क, आक्षेपों का उत्तर, बीमा जब्ती नए व्यापार का अभिगोपन, बीमा कराने की विधि एवं चुनाव, बीमापत्र की शर्तें, नवकरण विधियों के प्रबन्ध का वर्णन है। पंचम खंड बीमापत्रधारियों की सेवा का है जिसमें बीमापत्रधारियों की सेवा, अध्यर्थन का भुगतान का वर्णन है। वित्तीय प्रबन्ध का वर्णन षष्ठम खंड में है जिसमें प्रव्याजि निर्धारण, कोष का प्रबन्ध, मूल्यांकन, संचय, कोष का विनियोग, लागत नियंत्रण, अंकेक्षण एवं परीक्षण का विवरण है। सप्तम खंड में बीमा अधिनियम एवं प्रसंविदा, जैसे—बीमा अधिनियम, 1938, जीवन बीमा अधिनियम, 1956, सामुद्रिक बीमा अधिनियम, 1963, सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972, बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, 2000 का विशद विश्लेषण है।
यह पुस्तक वर्तमान अर्थव्यवस्था के विकास और विस्तृतीकरण में मील का पत्थर है। यह पुस्तक आनेवाले समय में बीमा की विभिन्न समस्याओं के समाधान की गीता है जिसके विभिन्न सिद्धान्तों का उपयोग करके कठिन-से-कठिन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
Prabandhan Mein 5 Ka Mantra
- Author Name:
Vijay Joshi
- Book Type:

-
Description:
पाँच इन्द्रियाँ हैं जो हमारी देह के जटिलतम तंत्र का संचालन करती हैं, हमारे हाथों में पाँच-पाँच उँगलियाँ हैं जो स्पर्श से लेकर हमारे आसपास की वस्तुओं के परिचालन में हमारी सहायता करती हैं, पांडव पाँच थे जो कुरुक्षेत्र में सौ कौरवों और उनकी सेना को पराजित कर विजय के प्रतीक बने। कहने का तात्पर्य यह कि पाँच अंक का भारतीय दर्शन में भी बहुत महत्त्व माना गया है, और प्रकृति में भी।
यह पुस्तक प्रबन्धन के विस्तृत विषय को पाँच के अंक के साथ जोड़कर इच्छुक पाठकों के लिए एक सरल सूत्रावली प्रस्तुत करती है, ताकि वह अध्यात्म की मूल प्रेरणा को इस भौतिक जगत् में सम्यक् रूप में प्रयोग कर सके। शरीर के संवेदी तंत्र के माध्यम से पाँच इन्द्रियों को यहाँ प्रबन्धन के उपकरणों की तरह देखा गया है, और पाँचों पांडवों की पाँच तरह की प्रकृतियों को किसी भी कॉरपोरेट तंत्र के पाँच स्तम्भों की तरह देखना-सिखाया गया है।
इसी तरह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और परमात्मा के पाँच को हम अपने आज के आर्थिक जीवन में कैसे बरतें, इसके बहाने भारतीय दर्शन में निहित प्रबन्धन सूत्रों को भी यह पुस्तक स्पष्ट करती है।
लम्बे प्रबन्धकीय जीवनानुभव से प्राप्त ज्ञान को लेखक ने यहाँ संक्षेप में, लेकिन स्पष्टता के साथ इस तरह सँजोया है कि कोई भी पाठक इससे लाभान्वित हो सकता है।
Unchi Udan
- Author Name:
Kusum Lunia
- Book Type:

-
Description:
डॉ. कुसुम लुनिया का नाटक ‘ऊँची उड़ान’ कितना मार्मिक है, इसका अनुमान आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि इसकी भूमिका लिखने के लिए जब मैंने इसे पढ़ा तो तीन-चार बार मेरी आँखों में आँसू छलक आए। कन्या भ्रूण-हत्या जैसे शुष्क और समाज-सुधार सम्बन्धी विषय पर कोई नाटक हो और उसे भी देखना नहीं, पढ़ना हो तो वह अपने आप में चुनौती भरा काम है लेकिन इस नाटक के कथानक, पात्रों, कथनोपकथनों और जिज्ञासा ने मुझे इस क़दर बाँधे रखा, जैसे किसी महान साहित्यकार की रचना बाँधे रखती है।
मैं सोचता रहा कि यदि ‘ऊँची उड़ान’ का कोई श्रेष्ठ मंचन कर सके तो इस नाटक को देश में लाखों दर्शक मिल सकते हैं। यह अकेला नाटक लोगों को भ्रूण-हत्या से विरत करने में वह भूमिका अदा कर सकता है जो साधु-संतों और समाज-सुधारकों के सैकड़ों-सैकड़ों उपदेश नहीं कर सकते। वास्तव में कुसुम जी ने समाज-सुधारकों के हाथों में एक ब्रह्मास्त्र थमा दिया है।
यह नाटक यों तो भ्रूण-हत्या पर केन्द्रित है लेकिन इसमें स्त्री-शक्ति का चमत्कारी रूप प्रकट हुआ है। संकल्प, संस्कार और चरित्र-बल के आधार पर कोई स्त्री कहाँ से कहाँ पहुँच सकती है, यह इस नाटक से पता चलता है। जिस भ्रूण की हत्या का आयोजन किया जा रहा था, उसकी रक्षा के बाद वही भ्रूण कैसा दिव्य, कैसा भव्य और कैसा काम्य स्वरूप धारण करता है, इसका जीवन्त और प्रेरक चित्रण कुसुम जी ने अपनी कृति में किया है। भ्रूण-हत्या जैसे दुखद प्रसंग को प्रतिभाशाली लेखिका ने सुखान्त नाटक का रूप देने में जो सफलता अर्जित की है, वह दुर्लभ है।
—वेद प्रताप वैदिक
Khadan Se Khwabon Tak : Sangmarmar
- Author Name:
Prakash Biyani
- Book Type:

-
Description:
पत्थर न केवल बोलते हैं, वरन् ख़ूब मीठा बोलते हैं। यही नहीं, पत्थर मनुष्य से ज़्यादा धैर्यवान व सहनशील हैं। पत्थरों का बाह्य आवरण जितना सख़्त व निर्मम है, उनका अन्तर्मन उतना ही कोमल व उदार है। बिलकुल श्रीफल की तरह।
परिस्थितियों के साथ बदलने में तो पत्थरों का कोई सानी ही नहीं है। हाँ, वे ज़रूरत से ज़्यादा स्वाभिमानी और स्वावलम्बी हैं, अत: उन्हें सावधानी व मज़बूती से भू-गर्भ से निकालना व सँवारना पड़ता है।
पत्थर आसानी से अपना रंगरूप नहीं बदलते, पर एक बार जो बदलाव स्वीकार कर लेते हैं, उसे स्थायी रूप से आत्मसात् कर लेते हैं। हम सबने देखा है कि पत्थर जब किसी भवन की नींव बनते हैं तो सहस्रों साल के लिए स्थितप्रज्ञ (समाधि में लीन) हो जाते हैं। पत्थर अत्यन्त मज़बूत व मेहनती हैं और दूसरों से भी ऐसी ही अपेक्षा करते हैं।
याद करें, पाषाण युग। दस हज़ार साल पहले मनुष्य पशुवत् जीवन जी रहा था। पत्थरों ने ही उसे सलीक़े से जीने व ज़िन्दा रहने के लिए संघर्ष करना सिखाया। यही नहीं, पत्थर ही मनुष्य के पहले मित्र-परिजन व शुभचिन्तक बने। पत्थरों ने मनुष्य को हथियार बनकर सुरक्षा प्रदान की। पत्थरों की मदद से शिकार करके ही मनुष्य ने अपना पेट भरा। आभूषण बन पत्थरों ने मनुष्य को सजाया व सँवारा। फ़र्श व छत बन उन्हें प्रकृति के प्रकोप से बचाया। पत्थरों ने ही मानव समुदाय को वैभव व कीर्ति प्रदान की है। वस्तुत: पत्थर ही वह नींव (बुनियाद) हैं, जिन पर क़दमताल करते हुए मनुष्य सभ्य हुआ और आज आकाश में उड़ान भर रहा है। पत्थरों की धरती माँ की कोख में प्रसव पीड़ा से उनके हम तक पहुँचने की दिलचस्प कहानी है यह पुस्तक।
Open House With Piyush Pandey
- Author Name:
Piyush Pandey
- Book Type:

- Description: In Open House, Piyush Pandey invites readers into his mind—sharing his work, thoughts, and experiences. He responds to questions he's received over the years, ranging from serious and incisive to frivolous. These include inquiries like: Is advertising a good career? Should ad agencies collaborate with political parties? Why does Ogilvy work for the BJP? Should citizens take justice into their own hands if they disapprove of advertising? Is Ogilvy a lala company? What does the future hold for advertising? And is Piyush Pandey too old for this industry? Honest, irreverent, and insightful, this book offers a thrilling ride with Piyush Pandey and the skillfully curating Anant Rangaswami. Filled with practical wisdom and deep insights, Open House both entertains and enlightens.
Beema Siddhant Evam Vyavhar
- Author Name:
M. N. Mishra
- Book Type:

- Description: ‘बीमा सिद्धान्त एवं व्यवहार’ पुस्तक भारत में अपने स्तर की हिन्दी में एक सफल पुस्तक है, जिसे विभिन्न विश्वविद्यालयों और सेवा आयोगों में मान्यता प्राप्त है। इस पुस्तक में बीमा के समस्त अंगों को शामिल किया गया है। इसमें पाँच भाग हैं। प्रथम भाग परिचय का है जिसके अन्तर्गत परिभाषा, स्वभाव, विकास, बीमा प्रसंविदा का वर्णन है। भाग दो जीवन बीमा का है जिसमें जीवन बीमा प्रसंविदा, बीमापत्र के भेद, वृत्तियाँ, बीमापत्र की शर्तें, जीवन बीमा की आवश्यकता एवं महत्त्व, पिछड़े वर्ग का जीवन बीमा, बीमा कराने की विधि एवं चुनाव, मृतक तालिका, प्रव्याजि निर्धारण, अधो-प्रामाणिक जीवन का बीमा, संचय, कोष का विनियोग, समर्पित मूल्य, मूल्यांकन एवं अतिरेक वितरण, जीवन बीमा का पुनर्बीमा और जीवन बीमा की प्रगति का वर्णन है। निजी क्षेत्रों में बीमा के योगदान का भी विश्लेषण है। तृतीय भाग में सामुद्रिक बीमा के विभिन्न पहलुओं, जैसे—बीमा का प्रसंविदा, सामुद्रिक बीमा के भेद, वाक्यांश, हानियाँ, सामुद्रिक बीमा में प्रव्याजि निर्धारण और वापसी और सामुद्रिक बीमा की प्रगति का विशद विश्लेषण है। अग्नि बीमा के महत्त्वपूर्ण अंग, जैसे-परिचय, प्रसंविदा, बीमापत्र के भेद, शर्तें, प्रव्याजि निर्धारण, पुनर्बीमा, क्षतिपूर्ति निर्धारण एवं भुगतान और अग्नि बीमा की प्रगति का भाग चार में वर्णन है। भाग पाँच में विविध बीमा एवं बीमा अधिनियम का वर्णन है। इसमें महत्त्वपूर्ण बीमा, जैसे-चोरी बीमा, मोटर बीमा, फ़सल, पशु और लाभ बीमा, मशीन बीमा, निर्यात बीमा, युद्ध जोखिम बीमा और प्रगति का विश्लेषण है। अधिनियमों में बीमा अधिनियम, 1938; जीवन बीमा अधिनियम, 1956; सामुद्रिक बीमा अधिनियम, 1963; सामान्य बीमा अधिनियम (राष्ट्रीयकरण) 1972; बीमा नियमन और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2000 और उसके प्रत्यंगों का विशेष रूप से वर्णन है। इस पुस्तक के अध्ययन से छात्र बीमा व्यवसाय में सफल रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। कार्यशील बीमाकर्त्ताओं की समस्याओं का समाधान इसके माध्यम से किया जा सकता है। बीमा अधिकारियों को नई सोच की दिशा मिल सकती है।
Aadarsh Prabandhan Ke Sookta
- Author Name:
Suresh Kant
- Book Type:

-
Description:
प्रबन्धन आत्म-विकास की एक सतत् प्रक्रिया है। अपने को व्यवस्थित-प्रबन्धित किए बिना आदमी दूसरों को व्यवस्थित-प्रबन्धित करने में सफल नहीं हो सकता, चाहे वे दूसरे लोग घर के सदस्य हों या दफ़्तर अथवा कारोबार के। इस प्रकार आत्म-विकास ही घर-दफ़्तर दोनों की उन्नति का मूल है। इस लिहाज़ से देखें, तो प्रबन्धन का ताल्लुक़ कम्पनी-जगत के लोगों से ही नहीं, मनुष्य मात्र से है। वह इंसान को बेहतर इंसान बनाने की कला है, क्योंकि बेहतर इंसार ही बेहतर कर्मचारी, अधिकारी, प्रबन्धक या करोबारी हो सकता है।
‘आदर्श प्रबन्धन के सूक्त’ में संकलित आलेखों को पाँच खंडों में विभाजित किया गया है—व्यक्तित्व-विकास, कैरियर निर्माण, औद्योगिक सम्बन्ध, समय-प्रबन्धन और कौशल-विकास। इस पुस्तक से आप अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं की लगातार जाँच-परख और आशावाद की उपयोगिता को समझ सकते हैं। साथ ही ख़ुश रहने, अपनी भीतरी शक्तियों के विकास, अपनी सामर्थ्य के भरसक उपयोग और सटीक लक्ष्य-निर्धारण की व्यावसायिक उपादेयता का आकलन कर सकते हैं। इसके अलावा संघर्षों की महत्ता, पेशा बदलने से सफलता, सलाहकार व कार्यपालक के आपसी रिश्तों, और साख आदि विषयों पर भी इसमें प्रकाश डाला गया है।
प्रबन्धन और आत्मविकास के क्षेत्र में वर्षों से अध्ययन व लेखनरत लेखक की एक महत्वपूर्ण पुस्तक।
Aapsi Madad - Hard Back
- Author Name:
Prince Peter Alexeyevich Kropotkin
- Book Type:

- Description: पशु-जगत में हमने देखा है कि अधिकांश प्रजातियाँ सामाजिक जीवन जीती हैं तथा साहचर्य उनके लिए संघर्ष का सर्वोत्तम हथियार है तथा यह संघर्ष डारविन के भावानुरूप केवल अस्तित्व-रक्षा के लिए नहीं, बल्कि प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों के विरुद्ध होता है। इस प्रकार उन्हें जो पारस्परिक सुरक्षा उपलब्ध होती है, उससे उनकी दीर्घायु तथा संचित अनुभव की सम्भावना तो बढ़ती ही है, उनका उच्चतर बौद्धिक विकास भी होता है तथा प्रजाति का और अधिक विस्तार भी होता है। इसके विपरीत अलग-थलग रहनेवाली प्रजातियों का क्षय अवश्यम्भावी होता है। जहाँ तक मनुष्य का सवाल है, पाषाण-युग से ही हम देखते हैं कि मनुष्य कुनबों और कबीलों में रहता है; कुल-गोत्रों और जनजातियों में देखा जा सकता है कि किस प्रकार उनमें सामाजिक संस्थानों की एक व्यापक शृंखला पहले से ही विकसित है; और हमने देखा कि प्रारम्भिक जनजातीय रीति-रिवाजों तथा व्यवहार ने मनुष्य को उन संस्थानों का आधार दिया जिन्होंने प्रगति की प्रमुख अवस्थिति का निर्माण किया। विश्वविख्यात लेखक प्रिंस पीटर एलेक्सेयेविच क्रोपोत्किन की इस अत्यन्त चर्चित कृति में यह दर्शाया गया है कि आपसी सहयोग की प्रवृत्ति जो मनुष्य को सुदीर्घ विकास-क्रम के दौरान उत्तराधिकार स्वरूप प्राप्त हुई, उसका हमारे आधुनिक व्यक्तिवादी समाज में भी अत्यन्त महत्त्व है। विश्व की महानतम कृतियों में शुमार यह कृति हमेशा ही समाजवैज्ञानिकों और विचारकों की दिलचस्पी का विषय रही है। आज भी इस पुस्तक की लोकप्रियता उतनी ही है जितनी लगभग एक सदी पहले थी, जब यह पहली बार पाठकों के सामने आई थी।
Ghar Ki Vyawastha Kaise Karen ?
- Author Name:
Ram Krishna
- Book Type:

- Description: संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार की अवधारणा ने घर के मायने ही बदल दिए हैं। पहले हम ज़्यादातर कामों के लिए घर के दूसरे सदस्यों पर निर्भर रहते थे, अब हमें स्वयं अपनी व्यवस्था करनी पड़ती है। ऐसे में अनेक छोटी-मोटी बातों का ध्यान रखना ज़रूरी हो जाता है, घर का सही प्रबन्धन न हो तो कभी-कभी छोटी-छोटी चीज़ों के लिए भी आपको पूरा दिन तनाव में गुज़ारना पड़ सकता है। दूसरी तरफ़ घरों में जगह की कमी के चलते भी घर की व्यवस्था करना कठिन होता जा रहा है। अब एक या दो कमरों में ही अपने सामान को व्यवस्थित करना पड़ता है। फिर घर की व्यवस्था करते समय घर के बाक़ी सदस्यों का भी ध्यान रखना होता है। यह पुस्तक हमें बताती है कि देखने में छोटी लगनेवाली इन बड़ी समस्याओं से कैसे निबटा जाए। महत्त्वपूर्ण काग़ज़ात को कैसे, कहाँ सँभालें। कपड़ों की साज-सज्जा, खान-पान का चुनाव, साफ़-सफ़ाई, फ़र्स्ट एड बॉक्स और ऐसी ही तमाम चीज़ों के समुचित प्रबन्धन की जानकारी इससे मिलती है।
Prabandhan Ki Pathshala
- Author Name:
Vijay Joshi
- Book Type:

-
Description:
प्रेम से सफलता और सफलता का सम्पन्नता से बहुत गहरा रिश्ता है। प्रेम-भाव के बिना सम्पन्नता और सफलता भी मूल्यहीन हैं। जो प्रबन्धक अपने साथियों-सहकर्मियों को प्रेमपूर्वक साथ लेकर चलते हैं, वे कभी असफल नहीं होते।
‘प्रबन्ध की पाठशाला’ शीर्षक यह पुस्तक हमें कुछ ऐसे ही पाठ पढ़ाती है, जो देखने में ऐसे लगते हैं कि उनका न व्यवसाय से कोई सम्बन्ध है और न उद्यम-उद्योग से, लेकिन वास्तव में उनके बिना आप एक छोटी-सी दुकान भी सफलतापूर्वक नहीं चला सकते।
पुस्तक के लेखक को स्वयं प्रबन्धन के क्षेत्र का लम्बा अनुभव रहा है, उन्होंने स्वयं यह देखा है कि वे मानवीय मूल्य, जो परिवार से लेकर समाज तक हर संस्था की आधारशिला साबित होते हैं, व्यावसायिक सफलता भी उन पर बहुत दूर तक निर्भर करती है।
जीवन के दु:ख, कष्ट, तकलीफ़ें यहाँ अपनी कार्यकुशलता को वैसे ही बढ़ाती हैं, जैसे जीवन के किसी अन्य क्षेत्र में। इसी तरह नई चीज़ों के प्रति जिज्ञासा, मन को ताक़त देनेवाली आस्था, परिवर्तनशीलता, अनासक्ति, ईर्ष्या और वैमनस्य से सायास परहेज़, जीवन की अनिश्चितता के प्रति सजगता, उपकार के प्रति ग्रहणशीलता और परोपकार के प्रति तत्परता आदि ये सभी बीज-मंत्र हैं, जिनसे हम न सिर्फ़ अपने प्रबन्धन-कौशल को नई आभा दे सकते हैं, बल्कि अपने आसपास सभी को सकारात्मक माहौल भी मुहैया करा सकते हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...