Sebastian & Sons : A Brief History Of Mrdangam Makers

Sebastian & Sons : A Brief History Of Mrdangam Makers

Authors(s):

T.M. Krishna

Language:

Hindi

Pages:

336

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

672 mins

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Book Description

संगीत-साधक और सामाजिक कार्यकर्ता टी.एम. कृष्णा की कलम से कर्नाटिक संगीत के प्राथमिक तालवाद्य के इतिहास की तहक़ीक़ात मृदंग के अदृश्य परम्परावाहकों अर्थात उसे बनानेवाले कारीगरों का अब तक अनदेखा रहा वृत्तान्त मृदंग कर्नाटिक संगीत के मंच का अभिन्न हिस्सा है। हालाँकि ये यक़ीन करना मुश्किल है कि इस साज को जिस तरह से अब हम जानते हैं, वह सौ से कुछ ही साल पुराना है। जिन बहुतेरे मृदंग वादकों को इस साज के विकास का श्रेय दिया जाता रहा है, उनमें से कोई भी उसकी कारीगरी के बुनियादी तत्व से परिचित नहीं था। यानी जानवरों का चमड़ा, उसकी प्रकृति और वह किस तरह से साज की ताल, गहराई और आवाज़ को प्रभावित करता है। बनाने की प्रक्रिया शिल्प, मानसिक और शारीरिक तौर पर थकाने वाली है। गोल सिरों पर बांधे जाने वाले चमड़े के टुकड़े और उन्हें बाँधने के लिए पट्टियों के साथ सही लकड़ी जुटाना, फिर उसे सही तरह से तराशना, तैयार करना, अंतिम रूप देना और आख़िर में ये तसल्ली करना कि सही थाप और ताल निकल रही है, मृदंग बनाना हर स्तर पर गहरे और बारीक काम की माँग करता है। मृदंग कलाकार के अमूर्त ख़यालों को एक भौतिक सचाई में बदलने के लिए सुन पाने की बहुत महीन क़ाबिलियत चाहिए होती है। मृदंग की कला की जब भी बात की जाती है, कारीगर के योगदान को ख़ारिज कर दिया जाता है, सिर्फ़ मज़दूर या मरम्मत करने वाला बता कर। यह सच है कि महान मृदंग वादक हुए हैं, यह भी सच है कि मृदंग बनाने वाले शानदार कारीगर भी हुए हैं, ज़्यादातर दलित और वे हमेशा कर्नाटिक संगीत समुदाय के हाशिये पर रहे हैं। ‘सेबस्टियन एंड संस’ इन कलाकारों की दुनिया, उनके इतिहास, जिये गये अनुभवों, कथाओं की एक खोज है, जिससे मृदंग से आ रही आवाज़ को लेकर हमारी समझ पहले से ज़्यादा जैविक और पूरी हो पाती है।

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