Dhatu Shilpi Dr. Jaidev Baghel : Ek Shikhar Yatra
Author:
Harihar VaishnavPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Art-and-design0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल देशवासियों को ही नहीं, अपितु विदेशियों को भी अपनी विशिष्ट एवं समृद्ध आदिवासी एवं लोक-संस्कृति के कारण आरम्भ से ही आकर्षित करता रहा है। यहाँ की आदिवासी एवं लोक-संस्कृति में साहित्य कला के अन्तर्गत वाचिक परम्परा के सहारे न जाने कब से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संचरित होती आ रही लोककथाएँ, गीति कथाएँ, गाथाएँ, महागाथा, लोकगीत, कहावतें, मुहावरे, पहेलियाँ, मिथ-कथाएँ आदि लोक-साहित्य एवं प्रदर्शनकारी कलाओं के अन्तर्गत नृत्य, संगीत, नाट्य तथा रूपंकर कलाओं के अन्तर्गत मूर्तिकला, लोक-चित्रकला एवं वास्तु-कला का भी प्रमुख स्थान रहा है।
कोंडागाँव, बस्तर (छत्तीसगढ़) के धातु-शिल्पी जयदेव बघेल का सम्बन्ध इन्हीं में से एक, मूर्तिकला से है। पारम्परिक मूर्तिकला से, जो 'घड़वा-कला' के नाम से विख्यात है और शासकीय तौर पर 'ढोकरा-कला' के नाम से जानी जाती है। इस विशुद्ध लोककला को बस्तर जैसे अंचल, जो सदा से पिछड़ा कहे जाने के लिए अभिशप्त रहा है, से उठाकर देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी लोककला के साथ-साथ समकालीन कला के समतुल्य सम्मानजनक स्थान दिलाने में जयदेव बघेल का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह कहने में कोई संशय नहीं कि 'घड़वा-कला' और श्री जयदेव बघेल एक-दूसरे के पर्याय हैं।
इतना ही नहीं, श्री बघेल के ही प्रयासों से कोंडागाँव और इसके आसपास न केवल 'घड़वा-कला' अपितु अन्य आदिवासी एवं लोककलाओं का भी विस्तार एवं विकास हुआ। यही कारण है कि पहले से ही बस्तर सम्भाग की 'संस्कार-धानी' के नाम से अभिहित कोंडागाँव को अब 'शिल्प-नगरी' भी कहा जाता है। जयदेव बघेल का यह प्रामाणिक जीवन वृत्त पठनीय बन पड़ा है। उम्मीद है पाठकों को यह पुस्तक रुचिकर लगेगी।
ISBN: 9788183616829
Pages: 180
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Aaj Ki Kala
- Author Name:
Prayag Shukla
- Book Type:

- Description: देखते हम सब हैं, लेकिन देखने की कला सीखने और अभ्यास का विषय है। आज का जीवन कुछ ऐसा है कि वस्तुएँ, रंग और स्थितियाँ एक भागमभाग में हमारी आँखों के सामने आती हैं, और इससे पहले कि हम उन्हें 'देख' सकें, लुप्त भी हो जाती हैं; न तो हम उन चीजों से, उनके फैलाव से, उनकी वास्तविकता से परिचित हो पाते हैं, और न ही उन छवियों से अपने अनुभव-कोश को समृद्ध कर पाते हैं, जो वे चीज़ें हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं। यह कैसी विडम्बना है कि इतनी आँखें एक अजीब-सी अजनबीयत के बोझ तले दबी रहती हैं। वरिष्ठ कला चिन्तक और कवि प्रयाग शुक्ल एक अरसे से कला और कला के आसपास बसे संसार को बहुत ग़ौर से, बहुत बारीकी और बहुविध कोणों से देखते रहे हैं, और लगातार हमें अपने देखे हुए से तथा देखने के अपने अनुभव और कलाओं के भीतर आने-जाने की अपनी पूरी प्रक्रिया से भी परिचित कराते रहे हैं। समकालीन कला-जगत की गतिविधियों, उपलब्धियों और कला-परिदृश्य में हो रहे प्रयोगों आदि पर उनकी बराबर नज़र रही है। और, सम्भवतः इस समय हिन्दी में वे ही अकेले हैं जिनके पास आज की कला-प्रवृत्तियों के विषय में कहने के लिए बहुत कुछ हमेशा रहता है। यह पुस्तक उसकी एक बानगी है, जिसमें उन्होंने कला के एक अहम् पक्ष यानी 'देखने के हुनर' के अलावा समकालीन कला के दूसरे अनेक पक्षों पर भी प्रकाश डाला है। कहने की आवश्यकता नहीं कि उनके गद्य की आत्मीयता अपने आप में एक अलग आकर्षण है, जिसके लिए इस पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए ।
Sheershak Nahin
- Author Name:
Akhilesh 'Bhopal'
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक चित्रकारों पर लिखे गए लेखों का संग्रह है और साथ ही मेरा यात्रा-वृत्तान्त जो उन्नीस सौ सत्तासी में कारन्त महोत्सव जापान के लिए कलाकृति संग्रह अभियान था जिसमें मैंने और अर्चना ने हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान का दौरा किया था।
पुस्तक में संगृहीत बाक़ी लेख पिछले पाँच सालों में लिखे गए हैं।
—‘आरम्भिक’ से
Pandwani : Mahabharat Ki Ek Lok Natya Shaily
- Author Name:
Niranjan Mahawar
- Book Type:

- Description: ‘पंडवानी’ छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोकनाट्य है जो महान आख्यान ‘महाभारत’ पर आधारित है। पंडवानी का अर्थ है पांडवों की कथा। यह एकपात्रीय नाट्यरूप है जिसे पुरुष एवं महिलाएँ दोनों वर्गों के कलाकार प्रस्तुत करते हैं। ‘पंडवानी’ का स्वरूप आरम्भ में गाथा रूप में था, जिसे परधान गोंड गाते थे। परधानों से यह गाथा सम्पूर्ण गोंडवाना में प्रचलित हुई। कलाकारों की एक अन्य घुमन्तू जाति देवारों ने इसे परधानों से अपनाया और उनके द्वारा यह सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में फैल गई। 19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में इस गाथा का विकास लोकनाट्य रूप में होने लगा और बीसवीं शताब्दी में पूर्ण रूप से नाट्यरूप में विकसित होकर स्थापित हो गई। हालाँकि इसका आरम्भिक स्वरूप आज भी मंडला-डिंडोरी क्षेत्र में विद्यमान है। दरअसल, महाभारत से प्रेरित सम्पूर्ण भारत में अनेक नाट्यों एवं कलारूपों का विकास हुआ है। महावर जी की ‘पंडवानी’ न केवल इसके भिन्न रूपों की विस्तार से चर्चा करती है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि ‘पंडवानी’ की मूल गाथा तो महाभारत है लेकिन लोकरंजन एवं स्थानीय प्रभाववश इसमें लोककथाएँ, लोकनायक और स्थानों के नाम का कवित्त में समावेश प्राय: कर लिया जाता है। महावर जी की ‘पंडवानी’ के अनुसार कालान्तर में इस नाट्यरूप की विकास-यात्रा में गायकों ने—सबल सिंह चौहान के महाभारत को आधार बना लिया और इसके गोंड कथानक का परित्याग कर दिया। व्यापक शोध एवं रुचि से लिखी गई यह किताब न केवल पंडवानी बल्कि छत्तीसगढ़ की अन्य लोक परम्पराओं से भी हमारा परिचय कराती है। यह किताब पंडवानी के विश्वप्रसिद्ध कलाकार तीजन बाई, झाडुराम देवांगन, पुनाराम निषाद एवं अन्य कलाकारों की चर्चा के साथ यह भी बताती है कि वर्तमान में, छत्तीसगढ़ में, पंडवानी का विस्तार हो रहा है और इस विकासमान धारा में पंडवानी के दर्जनों कलाकार सक्रिय हैं।
Aatma Ka Tap
- Author Name:
Saiyed Haider Raza
- Book Type:

- Description: सैयद हैदर रज़ा को आधुनिक भारतीय चित्रकला का एक मूर्धन्य माना जाता है। आधी सदी से अधिक से पेरिस में रह रहे रज़ा का जन्म मध्य प्रदेश के एक जंगली इलाक़े में साधारण परिवार में हुआ था और वे कठिन संघर्ष और साधना से एक उज्ज्वल-उदात्त और विश्व स्तर के मुक़ाम पर पहुँचे थे। यह गाथा है साधारण की महिमा की, मटमैलेपन से उज्ज्वल तक पहुँचने की। उन्होंने अपने मित्र और हिन्दी कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी से पेरिस में जो आपबीती कही, वह इस पुस्तक का केन्द्रीय हिस्सा है। साथ ही, अशोक वाजपेयी ने लगभग तीन दशकों में इस अदि्वतीय कलाकार की कला और ज़िन्दगी पर जो कुछ लिखा है, वह भी यहाँ एकत्र है जैसे कि उनकी वह लम्बी कविता ‘रजा का समय’ भी जो रज़ा की अस्सीवीं वर्षगाँठ के लिए लिखी गई थी। रज़ा से उनकी कला के बारे में लम्बी बातचीत भी संग्रहीत है। ‘आत्मा का ताप’ एक श्रेष्ठ कलाकार और पारदर्शी व्यक्ति की ज़िन्दगी और कला पर हिन्दी में अपने ढंग की पहली और अनूठी पुस्तक है।
Kala Ka Rasta
- Author Name:
Vinod Bhardwaj
- Book Type:

- Description: ‘कला का रास्ता’ में सुपरिचित हिन्दी कवि, कला और फ़िल्म लेखक विनोद भारद्वाज की विगत वर्षों में अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखी गई टिप्पणियों का एक प्रतिनिधि चयन है। ज़ाहिर है, ये टिप्पणियाँ किसी ख़बर, घटना, प्रदर्शनी आदि से जुड़ी हैं। पर इन्हें पढ़ते हुए आधुनिक भारतीय कला के कुछ नए-पुराने नामों के बारे में कई तरह की आत्मीय जानकारियाँ मिलती हैं। 2007-2010 के समय में भारतीय कला बाज़ार ने ऊँचाई भी पकड़ी। और विश्व आर्थिक मन्दी ने उसके लगभग अतियथार्थवादी विकास पर ब्रेक भी लगा दी। इस पुस्तक में विभिन्न प्रसंगों में सूजा, हिम्मत शाह, मनजीत बावा, हुसेन, सुबोध गुप्ता आदि चर्चित भारतीय आधुनिक कलाकारों के दिलचस्प निजी संस्मरण भी हैं। पश्चिम के महान आधुनिक कलाकार पिकासो पर भी इस पुस्तक में दुर्लभ सामग्री है। उल्लेखनीय है कि हुसेन और सूजा दोनों ही पिकासो से प्रभावित रहे हैं। विनोद भारद्वाज ने 1970 में एम.ए. मनोविज्ञान की पढ़ाई के दौरान बहुचर्चित कवि और तत्कालीन साप्ताहिक ‘दिनमान’ के सम्पादक रघुवीर सहाय की प्रेरणा और सहयोग से कला प्रदर्शनियों और कला-पुस्तकों आदि पर लिखना शुरू किया था। रघुवीर सहाय कविता में बोलचाल की भाषा के पक्षधर थे। शुरू में वह बच्चन से इसी कारण प्रभावित भी हुए थे। विनोद भारद्वाज के कला-लेखन की शुरू से ही एक ख़ास पहचान बोलचाल की भाषा है। अकादेमिक आडम्बर से वह दूर रहते हैं। कला-लेखन या समीक्षा में वह कविता लिखने के पक्ष में नहीं रहे हैं। अख़बार की ज़रूरतों के कारण कहीं-कहीं कुछ टिप्पणियों में दोहराव पाठकों को मिलेगा, पर यह पुस्तक उन्हें कला के एक दूसरे और लम्बे रास्ते में ले जाएगी। इस रास्ते में रहस्य और रोमांच भी है। कला की दस्तावेज़ी दुर्लभ जानकारियाँ भी हैं। अमृता शेरगिल, नागजी पटेल, परमजीत सिंह, मनजीत बावा, रवीन्द्रनाथ, हुसेन, सूजा, कृष्ण खन्ना, तैयब मेहता, सुबोध गुप्ता, विकास भट्टाचार्य, संजय भट्टाचार्य, सुदीप राय, दरोज, मनीष पुष्कले, किशोर शिंदे, यूसुफ आदि नए-पुराने कलाकारों पर कई दस्तावेज़ी जानकारियाँ इस पुस्तक में संकलित हैं। साथ में हैं आज की कला के अनगिनत ज़रूरी सवाल और सन्दर्भ।
Kalaa Ki Zaroorat
- Author Name:
Ernst Ficher
- Book Type:

- Description: ऑस्ट्रिया के विश्वविख्यात कवि और आलोचक अंर्स्ट फ़िशर की पुस्तक ‘कला की ज़रूरत’ कला के इतिहास और दर्शन पर मार्क्सवादी दृष्टि से विचार करनेवाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है। कला आदिम युग से आज तक मनुष्यों की ज़रूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, पर उन्हें कला की ज़रूरत क्यों होती है? आख़िर वह कौन-सी बात है जो मनुष्यों को साहित्य, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला आदि के विभिन्न रूपों में जीवन की पुनर्रचना के लिए प्रेरित करती है? इस आधारभूत प्रश्न पर विचार करने के लिए लेखक ने आदिम युग से आज तक के और भविष्य के भी मानव-विकास को ध्यान में रखकर सबसे पहले तो कला के काम और उसके विभिन्न उद्गमों पर विचार किया है और फिर विस्तार से इस बात पर प्रकाश डाला है कि मौजूदा पूँजीवादी तथा समाजवादी व्यवस्थाओं में कला की विभिन्न स्थितियाँ किस प्रकार की हैं। इस विचार-क्रम में वे तमाम प्रश्न आ जाते हैं जो आज सम्पूर्ण विश्व में कला-सम्बन्धी बहसों के केन्द्र में हैं। आज का सबसे विवादास्पद प्रश्न कला की अन्तर्वस्तु और उसके रूप के पारस्परिक सम्बन्धों का है। अंर्स्ट फ़िशर ने इन दोनों के द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध को मार्क्सवादी दृष्टि से सही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने-समझाने का एक बेहद ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। आज भारतीय साहित्य के अन्तर्गत जो जीवंत बहसें चल रही हैं, उनकी सार्थकता को समझने तथा उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाने में फ़िशर द्वारा प्रस्तुत विवेचन अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है। साहित्य और कला के प्रत्येक अध्येता के लिए वस्तुतः यह एक अनिवार्य पुस्तक है।
Daraspothi
- Author Name:
Akhilesh 'Bhopal'
- Book Type:

-
Description:
एक चित्रकार की सुचिन्तित दृष्टि जब अपने समकालीन कला-समय पर पड़ती है, तब उससे पैदा होनेवाली एक व्यापक कला अवधारणा के तमाम सारे सीमान्त एकबारगी आलोकित हो उठते हैं। वर्तमान चित्रकला परिदृश्य पर अपने अनूठेपन एवं अमूर्त्तन के लिए समादृत रहे चित्रकार अखिलेश के निबन्धों की यह सारगर्भित अन्विति अपनी बसाहट, कला-अनुभव, अचूक प्रश्नाकुलता के चलते एक अविस्मरणीय गद्य पाठ बन पड़ी है। अखिलेश की यह ‘दरसपोथी’ एक हद तक कबीर का वह ‘रामझरोखा’ बन सकी है, जहाँ बैठकर रंगों की अत्यन्त सूक्ष्म व जटिल जवाबदेही का मुजरा वे पूरे संयत भाव से ले पाए हैं। इसी कारण इन निबन्धों के सम्बन्ध में यह देखना प्रीतिकर है कि निबन्धकार मूर्धन्य कलाकारों से संवाद, विमर्श एवं मीमांसा के उपक्रम में अपनी भूमिका एक सहज जिज्ञासु एवं कला अध्येता की बना सका है, जिसके कारण किसी प्रकार की नवधा-भक्ति में तिरोहित होने से यह सलोनी किताब बच सकी है।
एक अर्थ में यह पुस्तक शास्त्रीय संगीत के उस विलम्बित ख्याल की तरह लगती है, जिसमें उसके गानेवाले कलाकार के लिए भी सदैव एक चुनौती बनी रहती है कि वह कोई नया सुर लगाते वक़्त अथवा पुरानी सरगम की बढ़त करते हुए उसी क्षण एक नई ‘उपज’ को आकार दे रहा होता है। अखिलेश ने अपने इन उन्नीस निबन्धों में ठीक इसी विचार को बेहद रचनात्मक ढंग से बरतते हुए ढेरों उपजों का सुर-लोक बना डाला है। यह अकारण नहीं है कि अखिलेश अपने पूर्ववर्ती और समवर्ती कलाकारों पर लिखते हुए उसे ‘अचम्भे का रोना’ कहते हैं। वे रवीन्द्रनाथ टैगोर के चित्रकार मानस को पढ़ते हुए एक जगह लिखते हैं : ‘रवीन्द्र की स्याही संकोच से सत्य की तरफ़ जाती दीखती है। इसमें आत्म-सच का प्रकाश फैला है; इन रेखांकनों में दावा नहीं कवि का कातर भाव है।' तो दूसरी ओर जगदीश स्वामीनाथन के लिए उनका कथन क़ाबिलेग़ौर है : ‘वे लघु चित्रों की बात करते हैं आदिवासी नज़रिये से। वे रंगाकाश रचते हैं लोक चेतना से। स्वामी का लेखन इतिहास चेतना से भरा हुआ है। स्वामी के चित्र उससे मुक्त हैं। यह अखिलेश की कवि-दृष्टि है, जिसमें एक कलाकार या चित्रकार होने की सारी सम्भावना पूरी उदात्तता के साथ उस तरह सूर्याभिमुख है, स्वयं जिस तरह शाश्वत को खोजनेवाली एक सहृदय की निगाह सत्य की रश्मियों से चौंधियाती है, बार-बार अचम्भित होती है।
इन निबन्धों को पढ़ने से इस तथ्य को बल मिलता है कि अखिलेश जहाँ बेहद ग़ैर-पारम्परिक ढंग से अमूर्तन के धरातल पर स्वयं के चित्र बनाने की प्रक्रिया में बेहद आधुनिक और लीक से थोड़ा निर्बन्ध सर्जक का बाना अख्तियार करते हैं, वहीं वे एक निबन्धकार एवं कला-आलोचक के रूप में कहीं पारम्परिक सहृदय की तरह दृश्य पर नज़र आते हैं। उनकी कला-आलोचना दरअसल अपने रंगलोक के आदि प्रश्नों से अलग हटकर सांसारिक ऐन्द्रियता में पूरे लालित्य और प्रांजलता के साथ कुछ अतिरिक्त खोजती, बीनती, बुहारती आगे बढ़ती है।
वे इतिहास के सन्दर्भों, सांस्कृतिक स्थापनाओं के गह्वर सम्मोहन, समय और भूगोल की एकतान जुगलबन्दी, स्मृतियों की धूप-छाँही रंगोली तथा कला के निर्मम सत्य की आत्यन्तिक पड़ताल से अपने निबन्धों की भाषा अर्जित करते हैं। यह देखना भी अधिकांश लेखों में इस अर्थ में बेहद प्रासंगिक है कि कई बार आप जैसे ही किसी कलाकार की गहरी मीमांसा में मुब्तिला रहते हैं, अखिलेश हाथ पकड़कर अचानक ही निहायत भौतिक समय में आपको ले जाते हैं और महत्त्वपूर्ण या ग़ैर-इरादतन महत्त्वपूर्ण बन रही किसी तिथि या घटना का साक्षी बना डालते हैं। कई दफ़े वह अपने ढंग से कलाकार की फ़ितरत और उसके द्वारा उत्पन्न उस दृश्यावली को टटोल रहे होते हैं, जहाँ स्वयं वह कलाकार जा नहीं पाया है; तभी एकाएक वह सिलसिला टूटता है और अखिलेश उस व्यक्ति की कला सम्भावना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में सन्दर्भित करते हुए किसी दूसरे महान चित्रकार, लेखक या कलाकार का उद्धरण देकर हमारे आस्वाद में एक नए क़िस्म की मिठास घोल देते हैं। कहने का आशय इतना है कि अखिलेश स्वयं कौतुक पर विश्वास करते हैं और गाहे-ब-गाहे हमें ऐसी परिस्थिति में डालने में भी संकोच नहीं करते, जिसके अदम्य मोह से निकलकर वापस अपनी दुनिया में आना जल्दी सम्भव नहीं हो पाता।
इन निबन्धों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अखिलेश ने अपने इस कलात्मक विमर्श की पुस्तक में एक ऐसे समानान्तर संसार की पुनर्रचना की है, जो अब तक अपने सबसे शाश्वत एवं उदात्त अर्थों में सिर्फ़ मिथकीय एवं पौराणिक अवधारणाओं में बसती रही है। मगर इसी क्षण यह भी कहने का मन होता है कि एक चित्रकार की मौलिक विचार सम्पदा ने कलाओं पर विमर्श के बहाने, एक ऐसे मिथकीय संसार का सृजन कर दिया है जो आज के भौतिकवादी और बाज़ार आक्रान्त समय में उसका एक निहायत दिलचस्प और मननशील प्रतिरूपक बन गया है। हम इस तरह की शब्दावली को पढ़ते हुए अपने लिए उस नई सभ्यता का थोड़ी देर के लिए वरण भी कर पा रहे हैं जो सौभाग्य से अभी भी साहित्य और कलाओं के संसार में साँस ले रही है। क्या यह नहीं लगता कि रवीन्द्रनाथ टैगोर, नारायण श्रीधर बेन्द्रे, मक़बूल फ़िदा हुसेन, जगदीश स्वामीनाथन, के.जी. सुब्रमण्यम, भूपेन खख्खर, जनगण सिंह श्याम, नीलमणि देवी, जेराम पटेल, किशोर उमरेकर, अमृतलाल वेगड़ एवं मनोग्राही कला-मनन के बहाने अखिलेश रंग-शिखर पर दीया बार रहे हैं।
—यतीन्द्र मिश्र
Manush
- Author Name:
Haku Shah
- Book Type:

-
Description:
आज एक तरफ़ कला और व्यापार का फ़र्क़ धुँधला पड़ता जा रहा है तो दूसरी तरफ़ कला और राजनीति का : कला परोक्ष क्यों, प्रत्यक्ष रूप से भी राजनीति हो चली है। ऐसे सन्दर्भ में हकु शाह की आवाज़, उनका रचना-संसार, उनका व्यक्तित्व किसी दूसरी दुनिया की उत्पत्ति प्रतीत होते हैं। हकुभाई की कला न केवल पूरी व गहरी मानवीय संवेदना से उत्पन्न है, बल्कि वह नित नए तरीक़ों से उस सम्बन्ध को दृश्य और ग्राह्य बनाती जाती है।
अपनी लम्बी कला-यात्रा के दौरान, हकुभाई विभिन्न रूपों में मिले हैं—कभी गांधी के साथ, कभी
गुमनाम कुम्हारों की संगत में, कभी कलाकारों के साथ स्वर मिलाते हुए। अब शब्दों के रूप में हकुभाई शाह का साक्षात्कार हो रहा है—क्या कहने!
—आलोक राय
Sebastian & Sons : A Brief History Of Mrdangam Makers
- Author Name:
T.M. Krishna
- Book Type:

- Description: संगीत-साधक और सामाजिक कार्यकर्ता टी.एम. कृष्णा की कलम से कर्नाटिक संगीत के प्राथमिक तालवाद्य के इतिहास की तहक़ीक़ात मृदंग के अदृश्य परम्परावाहकों अर्थात उसे बनानेवाले कारीगरों का अब तक अनदेखा रहा वृत्तान्त मृदंग कर्नाटिक संगीत के मंच का अभिन्न हिस्सा है। हालाँकि ये यक़ीन करना मुश्किल है कि इस साज को जिस तरह से अब हम जानते हैं, वह सौ से कुछ ही साल पुराना है। जिन बहुतेरे मृदंग वादकों को इस साज के विकास का श्रेय दिया जाता रहा है, उनमें से कोई भी उसकी कारीगरी के बुनियादी तत्व से परिचित नहीं था। यानी जानवरों का चमड़ा, उसकी प्रकृति और वह किस तरह से साज की ताल, गहराई और आवाज़ को प्रभावित करता है। बनाने की प्रक्रिया शिल्प, मानसिक और शारीरिक तौर पर थकाने वाली है। गोल सिरों पर बांधे जाने वाले चमड़े के टुकड़े और उन्हें बाँधने के लिए पट्टियों के साथ सही लकड़ी जुटाना, फिर उसे सही तरह से तराशना, तैयार करना, अंतिम रूप देना और आख़िर में ये तसल्ली करना कि सही थाप और ताल निकल रही है, मृदंग बनाना हर स्तर पर गहरे और बारीक काम की माँग करता है। मृदंग कलाकार के अमूर्त ख़यालों को एक भौतिक सचाई में बदलने के लिए सुन पाने की बहुत महीन क़ाबिलियत चाहिए होती है। मृदंग की कला की जब भी बात की जाती है, कारीगर के योगदान को ख़ारिज कर दिया जाता है, सिर्फ़ मज़दूर या मरम्मत करने वाला बता कर। यह सच है कि महान मृदंग वादक हुए हैं, यह भी सच है कि मृदंग बनाने वाले शानदार कारीगर भी हुए हैं, ज़्यादातर दलित और वे हमेशा कर्नाटिक संगीत समुदाय के हाशिये पर रहे हैं। ‘सेबस्टियन एंड संस’ इन कलाकारों की दुनिया, उनके इतिहास, जिये गये अनुभवों, कथाओं की एक खोज है, जिससे मृदंग से आ रही आवाज़ को लेकर हमारी समझ पहले से ज़्यादा जैविक और पूरी हो पाती है।
Shilpa Gupta's Everyday Art
- Author Name:
Sara Vetteth
- Book Type:

- Description: Who are we? What do we fear and why? What separates us from each other? What is freedom? Many of Shilpa Gupta’s artworks ask these questions. Using everyday objects, text, video and light installations — she evokes themes of identity, borders and belonging. Written with Shilpa, the insightful narrative provides context and cues for specially curated activities inspired by the works of one of India’s leading contemporary artists. An exploration that invites young people to look at, respond to and see the world in brave new ways, just like she does. The design, too, echoes the artist’s attempts at pushing boundaries through her practice of art.
Dekhne Ke Tareeke
- Author Name:
John Berger
- Book Type:

- Description: जॉन बर्जर की इस किताब ने पेंटिंग और कला-आलोचना के बारे में सोचने का तरीक़ा बदल दिया। यह शब्दों और चित्रों के ज़रिए दिखाती है कि हम जो कुछ भी देखते हैं, वह हमेशा सुन्दरता, सत्य, सभ्यता, रूप, स्वाद, वर्ग और लिंग सम्बन्धी हमारे अनेक पूर्वग्रहों से प्रभावित होता है। जॉन बर्जर ऑयल पेंटिंग्स, फ़ोटोग्राफ़्स और ग्राफ़िक कला में छिपे अर्थों की तहदारी की पड़ताल करते हैं और यह तर्क देते हैं कि जब हम देखते हैं, तो हम केवल देख नहीं रहे होते— हम छवियों की भाषा को पढ़ रहे होते हैं। हमारे समय के सबसे प्रभावशाली बुद्धिजीवियों में से एक —ऑब्ज़र्वर कला जगत के मुँह पर एक तमाचा... इस किताब ने ललित कला को पढ़ने और समझने के तरीके में क्रांति ला दी —गार्जियन बर्जर विचारों को उसी तरह सँभालते हैं जैसे एक कलाकार रंगों को सँभालता है’ —जेनेट विंटरसन हम अपने चारों ओर की दुनिया को कैसे देखते हैं? यह उन कुछ निर्णायक कृतियों में से एक है, जिनके रचनात्मक विचारों ने कला, डिज़ाइन और मीडिया पर लेखन के ज़रिए हमारी दृष्टि को हमेशा के लिए बदल दिया।
Lokrang : Chhattisgarh
- Author Name:
Niranjan Mahawar
- Book Type:

- Description: यह ग्रन्थ छत्तीसगढ़ की प्रदर्शनकारी कलाओं पर केन्द्रित है, जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख लोकनृत्य, गीत एवं लोकनाट्यों का प्रलेखन किया गया है। छत्तीसगढ़ की लोककलाएँ अत्यन्त समृद्ध हैं। वे एक सामुदायिक जीवन की धन्यता का उत्सव और उसका मंगलगान हैं। पुस्तक में लेखक ने छत्तीसगढ़ की ग्रामीण लोककलाओं के साथ इस क्षेत्र में प्रचलित जनजातीय समुदायों की नृत्य-नाट्य परम्पराओं पर भी विचार किया है। एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में छत्तीसगढ़ का यह कला-अध्ययन व्यापक रूप में इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक परिवेश और पर्यावरण तथा प्राचीन भारतीय इतिहास में अपनी सांस्कृतिक पहचान की स्मृतियों को सँजोता है। जिन प्रमुख कला-रूपों को पुस्तक में अभिलेखित किया गया है, उनमें सेला नृत्य, भोजली, ददरिया, डंडा नाच, भतरा नाच और पंडवानी सहित सभी लोक-शैलियों को शामिल किया गया है। लोक भाषाओं के साथ जनजातीय बोलियों में भी विविध नृत्यों और सम्बद्ध गीत-परम्परा के कुछ सुन्दर उदाहरण महावर जी ने इस ग्रन्थ में शामिल किए हैं। यह किताब छत्तीसगढ़ की लोकधर्मी नृत्य-नाट्य तथा गायन-परम्पराओं के विभिन्न कला-रूपों को विस्तार से समझने के साथ उसका विश्लेषणपरक अध्ययन भी प्रस्तुत करती है। हमें आशा है कि पाठकों को यह ग्रन्थ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा से अवगत कराने में सफल होगा।
Chhattisgarh Ki Shilpkala
- Author Name:
Niranjan Mahawar
- Book Type:

- Description: छत्तीसगढ़ अपनी पुरासम्पदा की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है और यहाँ अनेक पुरातात्त्विक महत्त्व के स्थल मौजूद हैं। यहाँ का पुरातात्त्विक इतिहास पूर्व गुप्तकाल से ही उपलब्ध होने लगता है। छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक काल की सभ्यता का विकास आरम्भिक काल से हो गया था, जिसका प्रमाण यहाँ से प्राप्त हुई मुद्राएँ, शिलालेख, ताम्रपत्र एवं पुरासम्पदा हैं। यहाँ अनेक स्थानों से प्राचीन मुद्राएँ (सिक्के) प्राप्त हुई हैं। नारापुर, उदेला, ठठारी (अकलतरा) आदि स्थानों से पञ्च मार्क मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। प्रदेश में धातु-शिल्प का प्रचलन था और अत्यन्त उच्चकोटि की प्रतिमाएँ यहाँ ढाली जाती थीं। इस प्रदेश में लौह शिल्प की भी प्राचीन परम्परा विद्यमान है। अगरिया जनजाति लौह बनाती थी। इस लोहे से वे लोग खेती के औज़ार तथा दैनंदिन उपयोग में आनेवाली वस्तुएँ तैयार करते थे। छत्तीसगढ़ में ईंटों द्वारा निर्मित मन्दिर शैली भी प्राचीन काल से विद्यमान है। सिरपुर का लक्ष्मण मन्दिर इस शैली की पकाई हुई ईंटों से निर्मित एक विशाल एवं भव्य इमारत है। मृणमूर्तियों की कलाकृतियाँ छत्तीसगढ़ के अनेक पुरातात्त्विक स्थलों से प्राप्त होती हैं। मृणमूर्तियों में खिलौने, मुद्राएँ, पशु आकृतियाँ प्रमुख हैं। ये मृणमूर्तियाँ भी उतनी ही प्राचीन हैं जितनी कि पुरास्थलों से प्राप्त होनेवाली अन्य कलाकृतियाँ व सामग्री। इस पुस्तक में विद्वान लेखक ने छत्तीसगढ़ के सभी पारम्परिक शिल्प-रूपों का प्रामाणिक परिचय देते हुए प्रदेश की बहुमूल्य थाती को सँजोया है। आशा है, पाठक इस ग्रन्थ को उपयोगी पाएँगे और अपनी महान सांस्कृतिक धरोहर से परिचित होंगे।
Nirkhe Vahi Nazar
- Author Name:
Gulammohammed Sheikh
- Book Type:

- Description: इस समय भारतीय-कला जगत् में जो मूर्धन्य सक्रिय हैं उनमें गुलाममोहम्मद शेख़ ऊँचा स्थान रखते हैं। वे कला-मूर्धन्य होने के साथ-साथ गुजराती में एक बहुमान्य कवि और कला-चिन्तक भी हैं। बरसों उन्होंने वडोदरा विश्वविद्यालय के कलासंकाय में कला-इतिहास का लोकप्रिय और प्रभावशील अध्यापन भी किया है। इसलिए भी उनकी दृष्टि गहरे इतिहास-बोध में रसी-पगी है। इस पुस्तक में उन्होंने एक बड़े वितान पर गहरा विचार किया है। कला के बारे में गुलाम शेख के लेखक में चित्रकार-मन, कवि-मन और इतिहासकार सब एकमेक हैं और इस रसायन से जो अन्तर्दृष्टि वे रचते हैं वह हमें कला के इतिहास, स्वयं कला और उसके विभिन्न पहलुओं पर, कई मूर्धन्य कलाकारों पर साफ़ दिमाग़ और खुली नज़र से सोचने की उत्तेजना देती है। परम्परा, आधुनिकता, भारतीय बहुलता, सृजन-प्रकिया, जीवन, यात्रा, कला से आशा आदि के बारे में यह ऐसी नज़र है जो निरखती है और उस निरखन को हम आत्मसात् कर स्वयं अपनी नज़र गढ़ें इसके लिए उत्साहित करती है। कला पर इस अनूठी पुस्तक को हिन्दी अनुवाद में रज़ा फ़ाउंडेशन उत्साहपूर्वक प्रस्तुत करने में प्रसन्नता महसूस कर रहा है। —अशोक वाजपेयी
Panchdevo Ki Mishrit Murtiyan
- Author Name:
Bharti Kumari Rai
- Book Type:

- Description: Book Description Awaited
Prakrati Aur Prakratish
- Author Name:
Vinod Bhardwaj
- Book Type:

- Description: परमजीत सिंह (जन्म : 1935) देश के उन महत्त्वपूर्ण आधुनिक चित्रकारों में से हैं जिन्होंने अपने समय के प्रचलित आधुनिक मुहावरों की चिन्ता न करके अपना एक अलग और लम्बा रास्ता खोजा है। पिछले 55 से भी अधिक सालों में एक अद्भुत समर्पण, एकाग्रता और निजी आग्रहों के प्रति एक गहरी निष्ठा से वह अपनी कला भाषा को विकसित करते रहे हैं। एक समय उनकी कला पर अतियथार्थवादी (सररियलिस्ट) चित्र भाषा का असर था पर धीरे-धीरे उन्होंने अपने प्रकृति प्रेम को कलाकार की गहरी आध्यात्मिक साधना में रूपान्तरित कर दिया है। ‘प्रकृति और प्रकृतिस्थ’ पुस्तक में परमजीत सिंह के जीवन, विकास और कला सरोकारों की गहरी छानबीन की गई है। लेखक ने कलाकार से अनेक लम्बी अनौपचारिक भेंटवार्ताओं के अलावा परमजीत की निजी आर्काइव और उनके दौर के कलाकारों और कला समीक्षकों से बातचीत करके इस एक बड़े कलाकार की दुनिया को कला-प्रेमियों के सामने प्रस्तुत किया है। परमजीत सिंह की कला में लैंडस्केप केन्द्र में है पर उन्होंने लैंडस्केप कला को एक नई गरिमा और पहचान दिलाई है। उनके लैंडस्केप सुन्दर दृश्यों की स्मृतियाँ मात्र नहीं हैं, उनमें एक रहस्यमय दुनिया में प्रवेश की दुर्लभ कुंजियाँ हैं और चिन्ता व आशंका का एक अद्वितीय संसार भी है। आशंका की आहटें उनके लैंडस्केप चित्रों को अपने समय का स्मरणीय दस्तावेज़ बना देती हैं। इस पुस्तक में कलाकार और उनके मित्रों-स्वजनों के अनेक दुर्लभ चित्र हैं, विभिन्न चरणों में किए गए कलाकार के काम का एक प्रतिनिधि चयन है और आज़ादी के बाद के उस दौर को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने की एक सार्थक कोशिश है जो परमजीत की कला के विकास में निर्णायक साबित हुई।
Performing Arts Of Chhattisgarh
- Author Name:
Niranjan Mahawar
- Book Type:

- Description: Book Description Awaited
Achambhe Ka Rona
- Author Name:
Akhilesh 'Bhopal'
- Book Type:

- Description: अखिलेश की यह किताब कुछ चित्रकारों और उनकी कला के बारे में है; इन चित्रकारों में अखिलेश स्वयं भी शामिल हैं। चित्रकारों के बारे में कुछ संस्मरण जैसी चीजें हैं, कुछ उनकी अपनी बातें हैं, और कुछ टिप्पणियां अखिलेश के द्वारा हैं जो उन चित्रकारों की कला की कुछ विशेषताएँ ही नहीं बतातीं, चित्रकला के कुछ अहम् पहलुओं और तमाम बुनियादी सवालों पर भी रोशनी डालती हैं। इस प्रकार यह चित्रकला के बारे में भी है। यह स्वयं अखिलेश के सरोकारों के बारे में है, जो केवल चित्रकला तक सीमित नहीं हैं, साहित्य, संगीत, और कला तथा राजनीति की वर्तमान टकराहटों तक फैले हुए हैं। और अन्ततः यह रचनाकार और गद्यकार अखिलेश के बारे में है।
Bhartiya Kala
- Author Name:
Uday Narayan Rai
- Book Type:

-
Description:
कला संस्कृति की वाहिका है। भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय एवं रसात्मक तत्त्व उसके कला-रूपों में प्रकट हुए हैं। कला का प्राण है रसात्मकता। रस अथवा आनन्द अथवा आस्वाद्य हमें स्थूल से चेतन सत्ता तक एकरूप कर देता है। मानवीय सम्बन्धों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को कला उजागर करती है। अस्तु चेतना का मूल ‘रस’ है। वही आस्वाद्य एवं आनन्द है, जिसे कला उद्घाटित करती है। भारतीय कला जहाँ एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है, वहीं दूसरी ओर भाव एवं रस को सदैव प्राणतत्त्व बनाकर रखती है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में अद्यतन पुरातात्त्विक अन्वेषणों एवं निष्कर्षों के साथ-साथ कला के आधारगत शास्त्रों के आलोक में प्राचीन भारतीय कला का समग्र अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। हड़प्पा काल से लेकर पूर्वमध्य काल तक की समस्त कला शैलियों का क्रमागत विकास एवं उनमें निहित प्रतीकों, भाषाओं एवं विलक्षणताओं की गहन समीक्षात्मक व्याख्या प्रस्तुत की गई है। अब तक प्राचीन भारतीय कला का सरल हिन्दी भाषा के माध्यम से समग्र एवं मानक अध्ययन नहीं हो सका था। यह ग्रन्थ सुधी पाठकों, शोधार्थियों एवं कला के विद्यार्थियों के लिए अधुनातन सूचनाओं एवं समीक्षाओं से पूरित होने के कारण बहुत उपयोगी है।
Kala Ke Samajik Udgam
- Author Name:
Georgi Plekhanov
- Book Type:

-
Description:
कला-साहित्य-संस्कृति के प्रश्नों पर प्लेखानोव की कृतियों में सर्वोपरि और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं ‘असम्बोधित पात्र’ और ‘कला और सामाजिक जीवन’। कला और साहित्य पर प्लेखानोव की ज़्यादातर कृतियों का मुख्य उद्देश्य कला और इसकी सामाजिक भूमिका को भौतिकवादी दृष्टि से प्रमाणित करना था। इन कृतियों में ‘बेलिस्की की साहित्यिक दृष्टि’ (1897), ‘चेर्निशेव्स्की का सौन्दर्यशास्त्रीय सिद्धान्त’ (1897), ‘असम्बोधित पात्र’ (1890-1900), ‘अठारहवीं सदी के फ्रेंच नाटक और चित्रकला पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक नज़र’ (1905) तथा ‘कला और सामाजिक जीवन’ (1912) प्रमुख हैं।
कलात्मक सृजन को वस्तुगत जगत से स्वतंत्र माननेवाले और कला को मानवात्मा की अन्तर्भूत अभिव्यक्ति बतानेवाले प्रत्ययवादी सौन्दर्यशास्त्रियों के विपरीत प्लेखानोव ने दर्शाया कि कला की जड़ें वास्तविक जीवन में होती हैं और यह सामाजिक जीवन से ही निःसृत होती है। कला और साहित्य की एक वैज्ञानिक, मार्क्सवादी समझ विकसित करने का प्रयास उनकी सभी कृतियों की विशिष्टता है। ‘कला, कला के लिए’ के विचार को प्लेखानोव ने तीखी आलोचना की। उन्होंने दर्शाया कि यह विचार उन्हीं दौरों में उभरकर आता है जब लेखक और कलाकार अपने इर्द-गिर्द की सामाजिक दशाओं से कट जाते हैं। यह विचार हमेशा ही प्रतिक्रियावादी शासक वर्गों की सेवा करता है लेकिन जब समाज में वर्ग-संघर्ष तीखा होता है तो शासक वर्ग और उसके विचारक ख़ुद ही इस विचार को छोड़ देते हैं और कला को अपने बचाव के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करने लगते हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.