
Angreji Raj Aur Hindi Ki Pratibandhit Patrakarita
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
191
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
382 mins
Book Description
पेशे से प्राध्यापक संतोष भदौरिया ने ब्रिटिश काल के मीडिया पर बेहद महत्वपूर्ण अनुशीलन प्रस्तुत किया है। उनकी किताब पढ़ते हुए आज के पाठक जान सकेंगे कि पराधीन भारत में किस तरह शब्दों पर पहरे बिठा दिए जाते थे। किस तरह पत्रिकाओं को प्रतिबंधित किया जाता था और प्रतिबंधों के बावजूद किस तरह तत्कालीन पत्रकारों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ाया और स्वाधीनता संग्राम में हिस्सेदारी के लिए आम जनता को प्रेरित किया। संतोष ने उन अखबारों-पत्रिकाओं के तेवर, रुझान और प्रतिबद्धता का गंभीर अध्ययन किया है, जिन पर ब्रिटिश शासनकाल में प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। क्या आज के नए पत्रकारों को पता है कि 1907 में इलाहाबाद से निकले 'स्वराज साप्ताहिक' के आठ- आठ संपादकों को जेल हुई। एक संपादक जेल जाता तो दूसरा संपादक आता। इसी तरह के कई तथ्यों का पता संतोष भदौरिया की किताब से चलता है। प्रकारान्तर से संतोष की किताब पराधीनता के उस काले दौर में हिंदी पत्रकारिता के संघर्ष का लेखा-जोखा भी है तो वहीं देश की आजादी की लड़ाई में प्रतिबंधित पत्र-पत्रिकाओं के अवदान को भी सामने लाती है। इन कृतियों से आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता के योगदान का भी पता चलता है। संतोष पत्रकारिता के इतिहास के अन्यतम अध्येता और विशेषज्ञ हैं। वे विचारों से प्रगतिशील हैं। उनके साहित्य में सुसंगत इतिहास बोध और इतिहास दृष्टि है, इसी कारण वे मूल्यवान इतिहास रच सके हैं और पाठकों को भी वे अतीत में उतरने का मौका देते हैं। पत्रकारिता के इतिहास के विद्यार्थियों को संतोष से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि तरह-तरह की किंवदंतियों के घटाटोप को पार कर कैसे तथ्यों और प्रामाणिक सूचनाओं पर आधारित अनुशीलन किया जाता है। - महाश्वेता देवी