Satrangi Dastarkhwan
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
216
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
432 mins
Book Description
आदिम इच्छाओं में भूख शामिल होती है। मन और शरीर की गहन ज़रूरत की तरह। यह किताब उस इच्छा को सम्मानित करती हुई इस बात की भी खोज करती है कि सभ्यता के विकास के साथ-साथ खाने की संस्कृति का भी क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विकास कैसे और क्योंकर हुआ। आज वैज्ञानिक, इतिहासकार और पाककला-विशेषज्ञ खाने के ज़रिये सभ्यताओं-संस्कृतियों की कहानी भी रोशनी में लाने लगे हैं। इस ज़रूरी दस्तावेज़ीकरण से खाने के इतने डायनमिक्स अनावृत हो गए कि अचम्भा होता है। उसी अचम्भे की बानगी है यह ‘सतरंगी दस्तरख़्वान’।</p> <p>भारत के सुदूर कोनों के इतिहास, विरासत, क्षेत्रीय प्रभावों और मिलीजुली संस्कृतियों से उपजी यादों से बनी यह किताब जहाँ एक ओर गोवा में प्रचलित पावरोटी की कहानी कहती है तो दूसरी ओर कलकत्ता के निराले रसोइये की कहानी भी। यहाँ सन्देश जैसी बंगाली मिठाई की कहानी एक परिवार के इतिहास से निकलकर समकाल की सामाजिक कहानी हो जाती है। अमृतसर से इंग्लैंड और असम से चेन्नई तक अपने कलाकारों, लेखकों को कैसे अपने खाने से सींचते-सँजोते हैं यह भी दर्ज है यहाँ। फिर लंगर जब इक्कीसवीं सदी में प्रतिरोध का स्वर बन जाए और साधारण दाल-भात अपने समय पर टिप्पणी करने लगें तब खाने के इस आर्काइवल महत्त्व को बखूबी जाना और समझा जा सकता है।</p> <p>बहुआयामी आस्वादों से भरी इस किताब में खाने की बायोग्राफी के बहाने कलाकारों, लेखकों, ऐक्टिविस्टों के धड़कते दिलों की कहानी भी है जिनके संग चलते-चलते हम चमत्कृत यात्री अपना देश घूम लेते हैं। असाधारण रूप से पठनीय एक किताब