
Jeevanshatak
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
480
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
960 mins
Book Description
आज की भागम-भाग और चमक-दमक की जिन्दगी में पैसा है, गाड़ी-घोड़ा है, बँगला है, ए.सी. है, पद-प्रतिष्ठा है, बैंक बैलेंस, फैशन और न जाने क्या-क्या है! फिर भी आँखों से रातों की नींद गायब है। मन अशान्त है। मूड खराब है। डिप्रेशन एक पैनडेमिक के रूप में मानव जाति को खुली चुनौती दे रहा है। डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों के पास इलाज के नाम पर बहुत थोड़े बिकाऊ टिप्स और कुछ ट्रैन्कुलाइजर्स ही उपलब्ध हैं। अब लाख टके का सवाल यह है कि क्या तड़पती हुई मानव जाति को इन्हीं मनोचिकित्सकों और नींद की पेटेंट दवा देने वालों के सहारे छोड़ दिया जाए? या हमें कुछ ऐसा करना होगा कि हमारे जीवन में सुख और शान्ति अपने मूल रूप में वापस आ सकें।</p> <p>दिगम्बर बन्दर से सूटेड-बूटेड मॉडर्न मानव बनने तक के करोड़ों वर्षों के सफर में हम विज्ञान, तकनीक एवं सुपर कम्प्यूटर के दम पर भस्मासुरी परमाणु बम तक बना चुके हैं। इस भूमंडल पर कुल मिलाकर जीवित प्राणियों की चौरासी लाख प्रजातियाँ बताई जाती हैं। उनमें से केवल इंसान ही इतना बलवान शैतान निकला, जिसने प्रकृति की ‘ग्रेविटी’ का शाश्वत नियम तोड़ दिया। वह पृथ्वी की कक्षा से बाहर भी छलाँग लगाने में सफल हो गया। ‘ग्रेविटी’ के अटल प्राकृतिक विधान को ध्वस्त करते हुए वह मंगल ग्रह पर भी अपनी दस्तक दे चुका है।</p> <p>इतने बड़े-बड़े कारनामे करते-करते हम शायद यह भूल ही गए कि औसतन 70 किलोग्राम के मनुष्य-शरीर में लगभग 1 किलोग्राम से भी कम वजन वाले अति जटिल ब्रेन-पिंड के लिए कुछ और भी चाहिए। उसको विकास की अंधी दौड़ न तो वर्तमान में दे पा रही है और न ही भविष्य में दे पाएगी। मन व्यथित है। दिलो-दिमाग पर अवसाद के काले बादल घनघोर घटाओं के रूप में छाये हुए हैं। लोग आए दिन आत्मघात कर रहे हैं। इस अवसाद की महामारी ने भारतीय परम्परा में जन्म-जन्मान्तर तक टिकाऊ माने जाने वाले पति-पत्नी के सम्बन्धों में भी उथल-पुथल एवं टूटन मचा दी है। अब दावे के साथ कोई यह नहीं कह सकता कि आज सम्पन्न हुआ शुभ विवाह कब अशुभ तलाक में नहीं बदल जाएगा? आखिर किसी को तो आगे आना होगा, जो मनुष्य जाति के लिए असाध्य साबित हो रही मानसिक अव्यवस्था को व्यवस्थित करने का मार्ग प्रशस्त कर सके।</p> <p>दुनिया में सर्वकाल और सर्वसमाज में मानव व्यथा को निवारित करने के लिए विद्वान एवं एकेडेमिया रास्ता दिखाते रहे हैं। इसी कड़ी में ‘जीवनशतक’ नामक इस पुस्तक में आज की दुनिया में मानव जीवन के समक्ष खड़ी चुनौतियों का सामना करने एवं सद्जीवन का शतक पूरा करने के लक्ष्यार्थ कथ्य को 100 अध्यायों में समाहित किया गया है।